स्नेह दुलार सुधार का कारगर प्रदर्शन

August 1985

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मनुष्य से लेकर थोड़ी समझ वाले पशु-पक्षियों तक में प्रशंसा के प्रति अनुराग पाया जाता है। यह प्रेम भाव का सूचक है। प्रेम एक ऐसा चुम्बकत्व है जिसमें विकसित प्राणि वर्ग में से किसी को भी लुभाया और वशवर्ती बनाया जा सकता है।

स्वामी परमानन्द ने सिंह का एक छोटा बच्चा पाल लिया था, उन्होंने उसे शाकाहारी बना लिया था। बच्चा बड़ा होने पर भी उनके साथ चलता था। समीप ही सोता बैठता यहाँ तक कि उनने अपनी दिनचर्या का क्रम वैसा ही बना लिया था। एक बार वे पालतू सिंह समेत भारत के वायसराय से मिलने गये थे।

दक्षिण अफ्रीका की उस कुतिया की सर्वत्र चर्चा है जी अपने मालिक की भेड़ें चराकर अकेली ही ले आती है। गलती से कोई भटक जाय तो उसे ढूंढ़ कर लाती थी। चरवाहे के चले जाने पर उसने यह कार्य स्वयं सम्भाल लिया था और जब तक जीवित रही अपने कार्य का अंजाम ठीक तरह देती रही।

इसी प्रकार कई शौकीनों ने चिंपेंजी, गोरिल्ला, वनमानुष जाति के बच्चों को पालकर अनुशासन में रहना और शिष्टाचार निभाना सिखाया था। इस सिखाने के पीछे प्रेम प्रदर्शन और उसके प्रमाण में छोटे-मोटे उपहार देने गोदी में उठा लेने, पीछे थपथपा देने, सिर खुजला देने जैसे प्रमाण प्रस्तुत कर दिये करते थे।

अन्य छोटे-बड़े जीव जन्तुओं में प्रेम प्रदर्शन करने वाले के प्रति सद्भावना रखने और निकटता में प्रसन्नता अनुभव करने की विशेषता पाई जाती है।

पशु मनोविज्ञान की अच्छी जानकारी रखने वाले सरकसों के पशु प्रशिक्षक अनगढ़ जानवरों को ऐसे खेल दिखाने के लिए अभ्यस्त कर लेते है जैसे कर सकना मनुष्यों के लिए भी सम्भव नहीं होता। यह कार्य वे मुख्यतया प्रेम प्रदर्शन के माध्यम से ही कर पाते हैं। भूल करने पर इतना ही दण्ड काफी होता है कि उनके प्रति रुष्ट होने, उपेक्षा दिखाने जैसा अभिनय कर दिया जाय। इतने भर में वे अपनी गलती खोजने और सुधारने का प्रयत्न करने लगते हैं।

प्रेम पाकर प्रसन्न होने और प्रेमी के साथ घनिष्ठता स्थापित करने, उसके संकेतों पर चलने की विशेषता समझदार पशु-पक्षियों में पाई जाती है। वह प्रयत्न पूर्वक विकसित भी कि जाती है। जिन्हें ऐसा अवसर नहीं मिलता वे उस विशेषता को गवाँ भी बैठते हैं और अनगढ़ प्रकृति के ही दूसरों की भाँति बचे रहते हैं। छेड़ने, डराने से भी विद्रोह बनते एवं प्रतिशोध लेते भी देखे गये हैं।

यह स्वभाव मनुष्य में और भी अधिक विकसित स्तर पर होता है। उसे दुर्गुणी अवज्ञाकारी होने का प्रधान कारण एक ही है उनसे रुष्ट रहना, प्रताड़ना देना और समय कुसमय उनकी निन्दा करते रहना। सुधारने के यह तरीके आमतौर से नाकामयाब होते हैं। क्योंकि अविकसित व्यक्तित्व में प्रताड़ना को शत्रुता गिना जाता है। उनमें इतनी समझ नहीं होती कि नाराजी का मूल कारण सोच पायें और सुधारने की पद्धति को कार्यान्वित कर पायें।

बालकों के साथ बड़ों को विशेष रूप से यही व्यवहार करना चाहिए और उनके झलकने वाले दोष-दुर्गुणों का निराकरण इसी उपाय उपचार से करना चाहिए। बड़प्पन इसमें है कि छोटों से प्यार करे और उसका प्रदर्शन करने के लिए प्रशंसा परक शब्द बोला करे। इतना ही नहीं उनकी अच्छी क्रियाओं के लिए छोटे-मोटे उपहार भी दिया करें ताकि वे अपना सम्मान समझाते हुए गर्व-गौरव कर सकें। प्रेम व्यवहार के अभ्यस्त होने पर ही अपनी तनिक सी नाराजी चोट करती है और वे गलती समझने तथा सुधारने का प्रयत्न करते हैं।


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