प्रतिभावान क्या सचमुच पागल होते हैं?

August 1985

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विद्वान ऑफिसर होम्स का पाला अनेक प्रतिभाशालियों से पड़ा था। उनसे उनका परिचय भी था। इतना ही नहीं उनके गुण दोषों को देखते हुए निष्कर्ष स्पष्ट था कि- ‘प्रतिभावान्’ एक सीमा तक पागल होते हैं। वे अपनी सनक को इस कदर सही मानते हैं कि उन्हें यथार्थता के रूप में अनुभव करने लगते हैं। उनकी यह धारणा अकारण नहीं थी। इसके पक्ष में उनने अनेक प्रमाण और उदाहरण भी एकत्रित किये थे।

होम्स का कथन है कि प्रतिभावानों को किसी एक सनक की पूर्ति में अपनी समग्र मानसिक चेतना झोंकनी पड़ती है। इसका परिणाम यह होता है कि विभिन्न प्रयोजनों में काम करने वाली मानसिक क्षमताएं जब एक केन्द्र पर केन्द्रीभूत होती हैं, तो वे उस प्रयोजन में तो असाधारण रूप से सफल होते हैं किन्तु मस्तिष्कीय क्षमता के अन्य क्षेत्र में अविकसित रह जाते हैं। फलतः उनके दैनिक जीवन की सामान्य प्रवृत्तियाँ सीमित एवं अस्त-व्यस्त रह जाती हैं। कोई सर्वांगीण प्रतिभावान नहीं होता वरन् किसी दिशा विशेष में ही उनका चिन्तन तल्लीन रहने से उसी सीमा तक सीमित रह जाता है। फलतः उनके दैनिक जीवन की गतिविधियों को देखकर लोग जहाँ सनकी मानने लगते हैं। वहाँ उनकी कार्य विशेष में अद्भुतता की छाप भी मानते हैं।

शेक्यपीयर ने भी इस मान्यता की पुष्टि की है और कहा है कि प्रतिभावान सचमुच पागल नहीं होते। वे निर्धारित कार्यों को लगन पूर्वक करते हैं। पर इस अत्युत्साह में वे उन तथ्यों की उपेक्षा करने लगते हैं जो दूसरों की दृष्टि से किसी सुयोग्य व्यक्ति में अनिवार्य रूप से होने चाहिए।

वालट स्काट यूरोप के एक अच्छे कवि हो गये हैं। वे बहुधा स्वरचित कविताओं को महाकवि ‘वायरिन’ की मान बैठते थे और बहुत ही भावना पूर्वक उन्हें सुनाते थे। उन्हें अपनी भूल का पता तब चलता जब प्रकाशित पुस्तक में वह उन्हीं द्वारा विनिर्मित दिखाई जाती थी।

दार्शनिक स्विष्ट किन्हीं विचारों में इतना तन्मय हो जाते थे कि उन्हें सामने बैठे मित्रों तक में उनका नाम और परिचय पूछना पड़ता था। विचारों की मस्ती से जब उनकी व्यावहारिकता नीचे उतरती तब वे अपनी भूल पर पश्चाताप करते और आगन्तुक मित्र से क्षमा माँगते।

आइन्स्टीन एक मित्र के यहाँ रात्रि भोज पर गये। उन्हें जल्दी ही वापस लौटना था। पर वे यह समझ बैठे कि यह घर मेरा है और मित्र दावत पर आये हैं। वे बार-बार घड़ी देखते पर मित्र के न जाने पर उनसे शिष्टाचार वश कुछ वार्ता करने लगते। इस प्रसंग में जब बहुत देर हो गई तो उनने अपने मित्र को पधारने तथा इतना समय देने के लिए धन्यवाद दिया और उन्हें फिर कभी पधारने की बात कहकर विदाई शिष्टाचार निभाया। जब मित्र हंस पड़े तो उन्हें पता चला कि यह उस मित्र का घर है और यहाँ में ही निमन्त्रित के रूप में आया था। कई घण्टे का समय इसी भ्रम में नष्ट हुआ।

फ्राँस के साहित्यकार एलनेजेक्टर डयूमा ने बहुत लिखा है पर उनकी एक सनक थी कि वे उपन्यास नीले कागज पर कविताएं पीले कागज पर और नाटक लाल पर लिखते थे। उन्हें नीली स्याही से चिढ़ थी। जब भी लिखते किसी दूसरे रंग की स्याही का प्रयोग करते।

मोपासाँ अपने कमरे के दाँये कोने में लिखने के आदी थे पर उन्हें अक्सर दिशा भ्रम होता था और बाँये कोने में बैठकर लिखता रहता। काम समाप्त करने के बाद ही उन्हें अस्त-व्यस्तता का पता चलता।

कार्लाइल ने प्रसिद्ध साहित्यकार चार्ल्स लेम्ब की कृतियों तथा दैनिक जीवन की अस्त-व्यस्तताओं की समीक्षा करते हुए लिखा है कि वह साहित्यकारिता की दृष्टि से सर्वथा माननीय थे। पर अपने निजी तथा पारिवारिक जीवन में वे जिस तरह समय गुजारते थे उसे देखते हुए उन्हें एक विचित्र प्रकार का पागल ही कहा जा सकता था।

संसार प्रसिद्ध कलाकार वायरिन को रात्रि के समय भयंकर सपने आते थे। कई बार वे उस उनींदी अवस्था में बुरी तरह चिल्लाने लगते थे और हवा में पिस्तौल के फायर करने लगते थे। पीछे परिवार वालों ने किसी दुर्घटना की आशंका से उनकी पिस्तौल ही छीन ली थी।

अंग्रेज कवि शैली को विश्वयुद्ध की योजनाएं बनाने और उन्हें कार्यान्वित करने वालों से बड़ी चिढ़ थी। वे उन्हें समझाने बुझाने के लिए लम्बे पत्र लिखते पर उन्हें डाक में नहीं डालते थे। वे उन्हें बोतलों में बन्द करके टैम्स नदी में बहा दिया करते थे और सोचते रहते थे कि वे उन व्यक्तियों तक जल माध्यम से सहज ही पहुँच जायेंगे। ऐसे पत्र उनने सैकड़ों की संख्या में लिखे थे।

जर्मन कवि पैरों तले बर्फ की सिल्ली रखकर और ठण्ड के दिनों में भी कमरे की सभी खिड़कियाँ खोलकर बैठता था। तभी वह अच्छी कविताएं लिख पाता था।

पोलैण्ड के पियानो वादक नाटकों में बड़े सम्मान के साथ बुलाये जाते और पारिश्रमिक के अच्छे पैसे वसूल करते थे। पर उन्हें एक सनक थी कि जहाँ पियानो रखा जाता था। वहाँ न बैठकर अपना स्टूल जहाँ-तहाँ जमाते फिरते जब उनके मन की जगह मिल जाती तब वे भारी पियानो को उठवाकर वहाँ ले जाते जहाँ उनसे स्टूल जमाया था।

समरमेट अपनी मेज पर रखे कागजों पर एक कुटिल आंख का चित्र बनाया करते थे। इन चित्रों के सम्बन्ध में पूछा जाता तो वे उसका कुछ उत्तर न दे पाते और किसी अज्ञात शक्ति की प्रेरणा बताया करते थे।

फ्रांसीसी लेखक ऐमिले कभी-कभी गली से गुजरता तो उसमें लगे बिजली के खम्भों को गिनता जाता। भूल जाता तो लौटकर गली के कोने से उन्हें दुबारा गिनना शुरू करता। ऐसा करने में उसका क्या अभिप्राय हैं इसका उत्तर देते उसे कभी न बन पड़ा। मात्र उसे आदत बताता था।

बेकन वर्षा के दिनों में खुली घोड़ा गाड़ी में बैठकर बहुत देर तक घूमता रहता। उसका विश्वास था कि जिस प्रकार वर्षा के पानी में खेती को- पौधों को लाभ होता है वैसा ही उसे भी मिलेगा।

ऐसे उदाहरण एक नहीं अनेकों हैं चंगेज खाँ, सिकन्दर, तुगलक, नादिरशाह, औरंगजेब आदि की नये इलाके जीतने और नये आक्रमण करने की धुन रहती थी। वे यह नहीं देख पाते थे कि पिछले दिनों जो इलाके जीते गये थे उनकी सही व्यवस्था बनी या नहीं। अथवा जितना जीता गया है वह हजम हो सकता है या नहीं। हिटलर का मानसिक विश्लेषण करने वालों का कहना है कि वह दुस्साहसी भर था। उसे परिणामों की सही अनुमान लगाने की क्षमता नहीं के बराबर थी।

अधिक पढ़ने लिखने वालों को भी कभी-कभी सनकी पाया गया है। बाइबिल में एक स्थान पर उल्लेख हैं कि- ज्यादा पढ़ने ने तुझे पागल बना दिया है।


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