दैनिक जीवन में क्रियाशील “टैलीपैथी”

August 1985

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

विचार सम्प्रेषण को यों अभ्यास द्वारा उच्च शक्ति सम्पन्न भी बनाया जाता है पर दैनिक जीवन में भी उसके प्रमाण कम नहीं मिलते। वे घनिष्ठ प्रियजनों के बीच आन्तरिक एकात्मा के आधार पर एक की बात दूसरे तक पहुँचाते रहते हैं। इसमें टेलीफोन, टेलीविजन जैसे उपकरणों की आवश्यकता नहीं पड़ती। आन्तरिक घनिष्ठता ही यह कार्य सहज सम्पन्न कर देती है।

उत्तरी इंग्लैण्ड के कॉनिस्टन वाटर शहर की घटना है। श्रीमती जॉन सेवर्न सन् 1880 की एक प्रातः अत्यधिक व्यग्र-व्यथित और उत्तेजित अवस्था में सोने से यकायक चौंक कर जाग पड़ीं। उन्हें ऐसा जान पड़ा कि मानो किसी ने मुख पर तीव्र घूँसा प्रहार किया है जिससे निचला ओठ पूरी तरह दाँतों तले कट चुका है। अतः बहते हुए खून को रोकने के लिए आँखें मलते हुए हड़-बड़ाहट रूमाल ढूंढ़ा और ज्यों ही ओठ के बहते रक्त को पोंछकर रूमाल को आँखों के सामने लायी, तो उसमें यत्किंचित् भी खून का निशान न पाकर वह और भी हक्की-बक्की रह गयी। इस अनिश्चय की स्थिति में ज्यों ही दर्पण में अपना मुँह देखा तो किसी भी प्रकार की चोट लगने एवं ओठ कटने जैसी बात नजर नहीं आई। इससे तो उनकी हैरानी और भी बढ़ गई। पति आर्थर के बिस्तर पर नजर डाली तो बिस्तर खाली पाया। घड़ी पर नजर डाली तो पाया कि प्रातः के 9 बज रहे हैं। अतः उसने समझा कि वह प्रातः नौका विहार के लिए चला गया है। वह बड़ी असमंजस और उधेड़ बुन की धुन में गृह कार्यों में लग गई।

आर्थर के लौटने पर नाश्ते के लिए मेज लगायी इसी बीच उसने पाया कि उसका पति उसके रूमाल को बार-बार अपने मुँह से लगा रहा है जिज्ञासा वश उसने पूछ ही लिया कि आज क्या मजाक सूझी है जो मेरे रूमाल का बार-बार चुम्बन ले रहे हो। इस पर चेहरे पर अत्यधिक विषाद लाते हुए कहा कि आज मुझे नया जीवन मिला है, नौका विहार करते समय यकायक समुद्री चक्रवातीय झंझावात में वह बुरी तरह से फंस गया। हवा के तीव्र वेग से उत्पन्न उत्ताल तरंगों के बीच अथाह जल-राशि में नौका अपने असन्तुलन को खोकर डगमगाने लगी। इस विपन्नावस्था में नाव में बैठे हुए-कृषक के ऊपर गिरा, वह भी जीवन-मौत की क्षणों से गुजर रहा था। अतः रोष में आकर उसने मेरे मुँह पर एक तीव्र प्रहार किया, जिससे निचला ओठ दाँतों तले आ जाने से रक्त-रंजित हो गया था। मैं तुम्हारी सहायता पाने के लिए छटपटाने लगा। इसी बीच धीरे-धीरे चक्रवात का प्रकोप शान्त हुआ, तब कहीं जाकर जान में जान आई और घर की राह ली।

इस प्रकार का आत्मिक चमत्कार विचार सम्प्रेषण की अनेकों घटनाओं का उल्लेख “कानिस्टन वाटर इपीसोड” नाम के शोध-निबन्ध में किया गया है, जिसमें हजारों ही घटनायें परीक्षा करने पर सत्य सिद्ध हुई हैं।

कुछ लोग इस प्रकार की घटनाओं को अतीन्द्रिय क्षमताओं के विकास की फलश्रुति मानते हैं, तो फ्राँस के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक कैमायल-फ्लैमेरियन अपने प्रसिद्ध शोध ग्रन्थ “लिनकोनू” में टैलीपैथी नाम देते हैं। उन्होंने इस ग्रन्थ में उल्लेख किया है कि “टैलीपैथी” उस विधा का नाम है जिसके अंतर्गत किसी दूरस्थ व्यक्ति की भाव-सम्वेदनाओं वैचारिक निर्देशों से प्रभावित किया जा सके। इस तथ्य को उन्होंने एक घटना के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है। एक बार गृह मालिक की अनुपस्थिति में एक गृहिणी ने अपनी मित्र-मण्डली को अपने घर पर सामूहिक प्रीति-भोज के लिए आमन्त्रित किया। संयोग वश उस दिन उसका पति शिकार के लिए जंगल में गया हुआ था। यद्यपि आज का दिन अत्यधिक शान्त स्वच्छ आकाश व सुहावना मौसम था। यकायक ‘डाइनिंग रूम’ की पहले से ही खुली खिड़की तीव्र आवाज के साथ बन्द हुई और पुनः तीव्र आवाज के साथ खुल गई।

गृहिणी के हृदय में अपूर्व स्पन्दन होने लगा, उसकी मनोदशा यकायक विलक्षण हो गई। उसने अपने मित्रों को विदा करते हुए कहा कि आज कुछ अनहोनी अप्रत्याशित दुःखद घटना घटित हुई है, इसको सुनने के लिए मुझे तैयार रहना है। मुश्किल से पौन घण्टा बीता ही था कि उसके पति का मृतक शरीर लाया गया जिसकी किसी व्यक्ति ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।

इस प्रकार डा. फ्लैमेरियम का कहना है कि टैलीपैथिकी घटना वह होती है जिसमें किसी दूरस्थ स्थान से किसी भावी विपत्ति की सूचना दे दी जाती है। इस प्रकार की घटनाओं के हजारों उदाहरण पाए गए हैं, इनमें से अत्यधिक महत्वपूर्ण घटनाओं को- उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘लिनकोन्यू’ में रिकार्ड किया है।

इस प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘लिनकोन्यू’ में सर्वाधिक चर्चित एवं प्रामाणिक घटना फ्राँस की है। फ्राँस के थल सेना के कैप्टन सेनेगल सन् 1886 में एक रात्रि को 11.30 बजे पर अपने बिस्तर पर प्रगाढ़ निद्रा में सोए हुए थे इसका उल्लेख करते हुए वे लिखते हैं कि तभी मैंने यकायक यह महसूस किया कि किसी ने मेरी छाती पर अत्यधिक दबाव डाला, जिससे तहस-नहस हो मैं अत्यधिक भयभीत हो गया। जब आँख मलते हुए कुहनी के बल बिस्तर से उठा और इधर-उधर निगाह डाली तो अपनी बूढ़ी दादी माँ यह कहते हुए दिखाई पड़ी “मेरे प्रिय मुन्ने, मैं तुझे अन्तिम अलविदा करने आई हूँ, अब तू मुझे फिर कभी नहीं देख सकेगा।” जैसे ही मैं उस छाया-प्रकाश की तरफ आगे बढ़ा, वैसे ही वह अदृश्य हो गया। मैं यह सभी देख सुन स्तम्भित सा रह गया। निश्चित रूप से यह स्वप्न नहीं था।” उन्होंने आगे अत्यधिक विस्मित होते हुए बताया कि मुझे आश्चर्य तो तब और अधिक बढ़ गया जब प्रातः टेलीग्राम से रात्रि के 11.30 बजे दादी माँ की मृत्यु यह कहते हुए हुई कि मृत्यु की गोद में जाने से पूर्व मैं अपने मुन्ने को अब कभी नहीं देख सकूँगी।” श्री फ्लैमेरियम ने इस प्रकार की घटनाओं का जहाँ उल्लेख किया है वहाँ ठोस प्रमाण और पुष्टियाँ भी दी हैं।

“बीयोन्ड टैलीपैथी” ग्रन्थ के प्रसिद्ध विद्वान लेखक एन्द्रिजा पुहेरिच ने बोस्टन शहर के एक बैल्डिंग करने वाले कर्मचारी जैक सुलेवन के जीवन की एक आश्चर्यजनक घटना का विवरण देते हुए लिखा है कि एक बार जब वह वाशिंगटन नगर की एक स्ट्रीट में कार्य कर रहा था जहाँ पर अन्य कोई सहायक उस समय उसके पास नहीं था, दुर्भाग्य से उसका पैर कीचड़ की नाली में फिसल गया। फिर क्या था शारीरिक यन्त्रणाओं में जिन्दगी मौत से जूझते हुए प्राण रक्षा के लिए छट-पटा रहा था उसे इस विपन्नावस्था में अपने मित्र भिट्टेकर की याद आ रही थी, जिसने हर संकट में विपत्ति मुसीबत में साथ दिया था, मृत्यु से पहले वह उससे मिलना चाहता था। भिट्टेकर के हृदय में यकायक स्फुरणा होने लगी, उसे एकदम अपने घनिष्ठ मित्र सुलेवन की याद आयी, उसे उस रोज पता नहीं था कि सुलेवन आज कहाँ कार्य कर रहा है। उसके मस्तिष्क में रह-रहकर ये विचार कौंध रहे थे कि वाशिंगटन स्ट्रीट में कोई अप्रत्याशित घटना घट रही है उसे ऐसा लग रहा था मानो कि उस दिशा में उसे कोई खींचे लिए जा रहा है। वह अपनी ड्यूटी के कार्य भार को ज्यों का त्यों छोड़कर आनन-फानन में वाशिंगटन स्ट्रीट में दाखिल हुआ, वहाँ उसने देखा कि बैल्डिंग करने वाली जनरेटर मशीन चल रही है, किन्तु चालक कर्मचारी कोई भी नजर नहीं आया। अत्यधिक घबराहट और हड़-बड़ की स्थिति में उसने उन सड़क का नक्शा तैयार किया। तभी उसे नाली के गन्दगी लगे ढेर में किसी के छटपटाने और तड़पने जैसा दिखाई दिया। कोई व्यक्ति हाथ को ऊपर किये सहायता के लिए संकेत कर रहा था। पास पहुँचकर अपने प्रिय मित्र सुलेवन को अर्ध मृतक और अचेतन अवस्था में उस कीचड़ से निकाला।”

ऐसे सहज स्वाभाविक प्रसंग घनिष्ठता के आधार पर अनायास ही घटित होते रहते हैं। अभ्यास के द्वारा इसे और भी अधिक विकसित किया जा सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles