“सोशल साइकिट्री आफ लीमा, पेरु” संस्था के डायरेक्टर डा. सी. ए. सीगुयेन ने एक “इन्टर नेशनल कांग्रेस आफ साइकिट्रिस्ट्स” के एक सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि “वास्तविक मानवीय गौरव-गरिमा मानवीय जाति की प्राचीन परम्पराओं में ही निहित है, अतः उसी के पुनर्जागरण और पुनरुत्थान के लिए आज इस बात की आवश्यकता है कि नये सिरे से उसी की खोज की जानी चाहिए।
पैराग्वे में ट्यूपम्वेय नाम के एक विश्व ख्याति के नीम हकीम हैं। इन्होंने अपनी घ्राण-इन्द्रिय को अपने संकल्प बल से इतना अधिक विकसित कर लिया है कि वे अपने गंभीर से गम्भीरतम रोगियों का रोग निदान मात्र उनके पहनने के वस्त्रों को सूंघकर ही करते हैं वस्त्रों को सूंघकर ही रोग का पता लगाते हैं और पुनः उस बीमारी के निदान स्वरूप औषधियाँ निर्धारित करते हैं और परहेज कराते हैं आधुनिक शरीर शास्त्री उनकी इस विलक्षण क्षमता का लोहा मानने लगे हैं। भौतिक विज्ञान जहाँ असफल होता है वहाँ वे मात्र वस्त्रों की गन्ध विशेष को सूंघकर रोग लक्षण ज्ञात कर लेते हैं। अब तक उनके पास जो भी रोगी पहुँचे हैं शत-प्रतिशत रोग मुफ्त हुए हैं।
पुरातन काल के चिकित्सक जड़ी-बूटियों के सूक्ष्म गुणों से अवगत रहते थे। साथ ही रोगी के पथ्य से असाधारण परिवर्तन न करते थे। अपनी बढ़ी हुई संकल्प-शक्ति से रोगी को निश्चित रूप से निरोग होने का आश्वासन दिलाते हैं। यह उपचार पद्धति आधुनिक रोग कीटाणुओं को मारने के प्रयास में स्वस्थ कीटाणुओं को नाश करने की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी और हानि रहित थी।
इसी में एक उपचार श्रद्धा प्रयोजन का भी जुड़ता था। दैवी अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए कई प्रकार के कर्म-काण्ड कराये जाते थे। इनका भी रोगी के मनःक्षेत्र पर तथा पारिवारिक वातावरण पर प्रभाव पड़ता है।
संगीत उपचार इन्हीं अचूक प्रयोगों में ही एक है। संकीर्तन तथा दूसरे प्रकार के गायन वादन रोगी पर अपने अतिरिक्त प्रभाव छोड़ते थे और उसे जल्दी अच्छा करने में सहायक सिद्ध होते थे।
तीसरी प्रकार की एक विचित्र चिकित्सा प्रणाली भी प्रचलित है जिसे एनीमा मैगनेटिज्म (प्राणी की विद्युत) कहते हैं यह शक्ति मनुष्य में जितनी अधिक मात्रा में होती है उतना ही वह प्रभावशाली, तेजस्वी, उत्साही, आत्म-विश्वासी, आशावादी और कार्य कुशल होता है। उसका ओजस्, तेजस्, (aura) उसके चेहरे, आँख, मुँह, नाक और मस्तिष्क द्वारा निकलता रहता है।
चेहरे के अतिरिक्त हाथों और उंगलियों से भी इसकी किरणें निकलती रहती हैं। इस प्रकार का व्यक्ति अपने किसी भी रोगी को स्पर्श मात्र से रोग मुक्त कर सकता है। महापुरुष जीसस जिनके नाम पर आज संसार फूल चढ़ाता है और जिन्हें अत्यन्त आदर से भगवान का अवतार मानकर स्मरण करता है, मात्र अपने हाथ के स्पर्श से किसी भी व्यक्ति के गम्भीर से गम्भीरतम रोग को दूर कर देते थे। महापुरुष जीसस ने रोग मुक्ति के लिए प्रायश्चित विधान भी निश्चित किया था।
इन औपचारिक प्रणालियों के अतिरिक्त एक चिकित्सा प्रणाली मैस्मरेजम पर आधारित है। यूरोप में सबसे प्रथम आस्ट्रिया के वियाना नगर के मैस्मर नामक व्यक्ति ने सन् 1770 में यह सिद्धान्त ढूँढ़ निकाला था। उसी मैस्मर के नाम पर इस विद्या का नाम मैस्मरेजम और इसके प्रयोगकर्ता का नाम मैस्मेराजर प्रचलित हुआ। इस पद्धति के द्वारा रोगोपचार करने की प्रक्रिया का अध्ययन करने के लिए “फ्रैंच एकेडेमी आफ साइन्सेस” ने एक “इन्डवायरी कमेटी” का गठन किया। अध्ययन के दौरान रोगियों के उपचार करने में मैस्मर की प्रणाली पूर्ण रूपेण सफल होती पाई गयी। मैस्मर की प्रणाली पूर्ण रूपेण सफल होती पाई गयी। मैस्मर ने कमेटी के एक साक्षात्कार में बताया कि वह ईथर की शक्ति जो आकाश में विद्यमान है, जिस पर संकल्प की तरंगें भरी पड़ी हैं अतः आकर्षण शक्ति से उस संकल्प शक्ति, चुम्बकत्व शक्ति को आकर्षित करता है। जिससे अपने रोगियों का उपचार करता है।
“मैस्मरेज्म” चिकित्सा प्रणाली से ही आगे चलकर “हिप्नोटिज्म” चिकित्सा प्रणाली का विकास हुआ। मैनचेस्टर के एक डाक्टर ब्रेड न सन् 1841 में यह अनुभव किया कि कृत्रिम निद्रा को उत्पन्न करके रोगी के रोग की सूचना Suggestion (सुझाव) द्वारा निवृत्त किया जा सकता है। कृत्रिम निद्रा को हिप्नोसिस कहते हैं, इसलिए इसी के नाम के आधार पर इस चिकित्सा प्रणाली का नाम हिप्नोटिज्म पड़ा और इस विधा के प्रयोगकर्ता का नाम हिप्नोटिस्ट प्रचलित हुआ। इस चिकित्सा प्रणाली के आधार पर एक लड़की के रोग का निवारण सफलतापूर्वक हो जाने से अत्यधिक प्रभावित हुई। अतः उस मैरी बेकर एड्डी नामक लड़की ने एक नवीन चिकित्सा प्रणाली का प्रचलन किया जिसका नाम “क्रिश्चियन साइंस” रखा।
अतीन्द्रिय क्षमताओं का पाश्चात्य प्रयोग उत्साहवर्धक परिणाम उत्पन्न कर रहा है। यह शुभ लक्षण है और उस आवश्यकता का प्रतिपादन करता है कि हमें पुरातन चिकित्सा पद्धतियों की अन्यान्य पक्षों की गम्भीर शोध करके जनसाधारण की शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्त करने की उपयोगी पद्धतियाँ खोज निकालनी चाहिए।