इनका कारण ढूँढ़ना अभी शेष है।

August 1985

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लन्दन के वीरबेक कालेज में भौतिकी के प्राध्यापक जान हस्टेड ने इस प्रसंग में भी रुचि लेनी आरंभ की कि क्या मानवी चेतना में कुछ ऐसी विलक्षणताएं भी हैं जिन्हें प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सके। इस संदर्भ में उनने तथाकथित कितने ही गूढ़ विद्या विशारदों से संपर्क स्थापित किया कि वे अपने सम्बन्ध में तथाकथित किंवदंतियों के सम्बन्ध में निराकरण करें और जन साधारण को यथार्थता से अवगत करने के सम्बन्ध में अवसर प्रदान करें।

इस चुनौती को अधिकाँश ख्यातिनामाओं ने टाल दिया। कइयों ने अपनी तलाशी देने और जिन उपकरणों का वे प्रयोग करते हैं उनकी पूर्व परीक्षा करने के अवसर दें इस बात को भी उनने अस्वीकार कर दिया। इससे हस्टेक को निराशा हुई उनने समझा जादूगरी के हथकण्डों को सिद्धि कहा और विश्वासी भावुकों की श्रद्धा का दोहन किया जा रहा है।

किन्तु एक सज्जन ने अपने को उनकी शर्त के अनुरूप अपनी परीक्षा करने और जो वे अद्भुत दिखा सकते थे उसके लिए तैयार हुए उनका नाम था- यूरी गेलर। इस इसरायली युवक ने अपनी को कैंब्रिज युनिवर्सिटी को प्रस्तुत किया और विभिन्न विचारों के तथा विभिन्न योग्यताओं के निरीक्षकों की एक मण्डली बुलाये जाने का अनुरोध किया। इनमें हस्टेड प्रमुख थे।

यूरी गेलर ने आत्मिकी क्षेत्र का भौतिक पदार्थों पर प्रभाव सिद्ध करने के लिए कुछ वस्तुएं प्रस्तुत कीं।

(1) उनने एक अति कठोर काँच का गोला कपड़ों में लपेटकर बक्से में बन्द कराया। स्वयं उससे एक फुट दूर रहे। सिर्फ उसे घूरते भर रहे। थोड़ी देर में बक्से में छेद कर उसी गोले में से छोटी-छोटी गोलियाँ निकलीं। जिन्हें बीन लिया गया। अब गोला खोला गया। वह अपने पूर्व रूप में ही था। पर वजन घट गया था। बाहर उछली हुई गोलियों को गोले के साथ रखा गया तो उसका पूर्व वजन पूरा हो गया। उपस्थित निरीक्षकों को इसी निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ा कि इस प्रयोग में कोई चालाकी नहीं हुई है।

(2) दूसरा प्रयोग उनने एक हाथी दांत की माला आकाश से टपकने का वायदा किया। अपने हाथ पीछे की तरफ बंधवा लिए और लैबोरेटरी की पूरी तरह सफाई करा ली कि कहीं उस तरह की माला छिपी हुई तो नहीं है। उनके कपड़े भी बदल दिये गये। इस पर उनके कथनानुसार मेज पर तीन फुट ऊपर से माला गिरी। उसे भी परीक्षण के लिए इसलिए भेजा गया कि कहीं हिप्नोटिज्म के आधार पर मति भ्रम तो उत्पन्न नहीं किया गया है। माला असली पाई गई।

(3) एक क्लॉक घड़ी कमरे में टाँगी गई उसमें चाबी नहीं। जिस फिनर के दबाव से घड़ी चलती है उसे भी हटा दिया गया। पर नियत समय पर घण्टे बजते रहे। जबकि टाइम बताने वाली सुई स्थिर ही बनी रही।

(4) चौथा प्रयोग उनने लन्दन से शिकागो की लैबोरेटरी में भेजा। वहाँ भी निरीक्षकों की एक मण्डली बैठी थी। हवा में तैरता हुआ एक पार्सल वहाँ पहुँचा। इस पार्सल को लन्दन के निरीक्षकों ने स्वयं ही अपने हाथ से बन्द किया था। उसमें एक गुलदस्ता, एक टमाटर और एक छोटा टेलीविजन सैट था। वह सभी वस्तुयें आधे घण्टे के भीतर उड़कर पहुंच गईं। जबकि इतनी तेजी से उड़कर और किसी साधन से उसे नहीं पहुँचाया जा सकता था।

इसके अतिरिक्त इसी जाँच पड़ताल में कुछ स्वतन्त्र घटनाएं और भी जुड़ गईं। पश्चिम जर्मनी के अन्वेषक प्रो. हेन्स वेण्डर ने बताया कि एक बार उनके कमरे में जमीन से छत्त तक गरम पत्थर उछलने गिरने का सिलसिला चला। उन्होंने किसी की दुष्टता हो तो उसे पकड़ने के लिए कई गार्ड नियुक्त किये। पर उनके होते हुए भी जब घटना न रुकी तो उन्हें वह मकान बदलना पड़ा। उनका कहना था कि इन घटनाओं को भूतों का उपद्रव समझने के अतिरिक्त और किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके।

इसी प्रकार उनने यह भी बताया कि उनकी ताला बन्द अलमारी में रखी हुई वस्तुएं अलमारी बन्द रहते हुए भी उड़ीं, एक-एक करके सारे मकान में बिखर गईं।

यह दो घटनाएं यद्यपि पूरी गेलर से सम्बन्धित नहीं पर वे इतना तो बताती ही हैं कि भौतिकी के नियमानुसार सारा जगत चलता हो ऐसी बात नहीं है। उसमें ऐसी विलक्षणताएं भी मौजूद हैं जिनका कारण ढूँढ़ निकालना अभी विज्ञान के लिए शेष है।


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