तीन पहाड़ थे। तीनों में बहुत दूरी न थी। देवताओं का आगमन उधर हुआ। उनकी स्थिति और इच्छा पूछी और सहायता करने का आश्वासन दिया।
सबसे ऊंचे पहाड़ ने कहा- ‘‘उसे और ऊंचा उठा दिया जाय ताकि वह दूर दूर से लोगों को दिखने लगे।”
दूसरे ने कहा- ‘‘उसे हरा भरा बना दिया जाय ताकि साधकों को आश्रय और लाभ मिले।”
तीसरे ने कहा- ‘‘उसकी निरर्थक ऊंचाई समाप्त करके समतल खेत बना दिया जाय।”
देवताओं ने तीनों की इच्छा पूरी कर दी। उन वरदानों से किसे क्या लाभ मिला, इसकी खोज खबर लेने वालों ने बताया कि अधिक ऊंचा उठ जाने के उपरान्त बड़े पहाड़ को अधिक सर्दी-गर्मी सहनी पड़ती है। हवाएं टकराती हैं और कड़कती बिजली के आघात उसी को सहने पड़ते थे। मध्यवर्ती पहाड़ की शोभा तो बढ़ी पर ऊंचाई अधिक रहने के कारण लोग वहाँ तक पहुँच न सके और बढ़े हुए वन्य पशुओं के उपद्रवों से आये दिन अनुपयुक्त दृश्य दिखने लगे।सबसे नफे में वह रहा जिसने ऊंचाई का झंझट छोड़कर स्वयं को समतल बना लिया था। लहलहाती फसलों और फल-फूलों से लदी उस घाटी के सहारे अनेकों की अन्नपूर्णा चल रही हैं। खेत का महत्व, गौरव और मूल्य पहाड़ों की तुलना में कहीं अधिक बढ़ गया था।