राजा श्रोणिक सदा अशांत रहते थे। निद्रा की न्यूनता, चेहरे की उदास, अतृप्ति और आशंका उन्हें हर घड़ी हैरान किये रहती थी। कारण और समाधान पूछने वे भगवान बुद्ध के पास गये।
प्रवचन चल रहा था, सभी भिक्षु अति प्रसन्न मुद्रा में उसे श्रवण कर रहे थे। चेहरे पर तेजस्विता और आनन्द की पुलकन से सभी दिव्य लग रहे थे।
राजा की जिज्ञासा को समझते हुए तथागत ने उसी प्रवचन में यह तथ्य जोड़ दिया कि मनुष्य क्लान्त और उल्लसित क्यों रहता है। उनने कहा- तृष्णाएं ही मनुष्य को खाती हैं। उनसे बचा जा सके तो राजा रंक सभी समान रूप से सुखी रह सकते हैं।