शकर के कारखाने में रहने वाली चींटी ने नमक की खदान वाली चींटी को अपने यहाँ आने की दावत दी और मिठास का आनन्द लेने के लिये कहा।
आतिथ्य प्राप्त करने के लिए वह मेहमान के यहाँ पहुँची पर उसे मिठास का आनन्द नहीं मिला। खालीपन ही पल्ले पड़ा।
निराश लौटती हुई सहेली को उसने कहा- बहन, मुँह में लगी हुई नमक की डली को छोड़ पाती तो तब कहीं मिठास का आनन्द मिलता।