१.दुर्गुणों ने बड़े-बड़ों को नीचा दिखाया है। छोटा छेद भी बड़ी नाव को नदी में डुबा देने के लिए पर्याप्त होता है।
२.चन्द्रमा को गृहस्थ जीवन में कुछ कमी न थी, पर कामुकता के प्रवाह में अहिल्या का शील लूटने के लिए चले और सदा के लिए कलंकित हो गये।
३.नहुष ने मदोन्मत्त होकर ऋषियों को पालकी में जोता और जीवन भर की कमाई गवाँ बैठे।
४.बेन का मात्सर्य उन्हें ले डूबा। प्रजा को विवश करते थे कि वह उन्हें ईश्वर माने और वैसा ही सत्कार करे।
५.लोभी सहस्रबाहु न जमदग्नि का घर खखोर लिया तो अभीष्ट संपत्ति के स्वामी बनने की अपेक्षा परशुराम के कुल्हाड़े से अपनी भुजाएं कटा बैठे।
६.पुरोहित त्वष्टा से किसी बात पर तुनक का क्रोधांध होने वाले इंद्र को सुरपति के पद से च्युत होना पड़ा।
७.व्यामोह ग्रह त्रिशंकु के पराक्रम की सीमा न थी पर वे भ्रम-जंजाल में उलझ कर न धरती पर चैन से रह सके और न स्वर्ग ही पहुँच सके।
८.काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर के पड़ोसियों में से एक भी बड़े से बड़े प्रतापियों की नीचा दिखा सकता है तो जिनने इन मनोविकारों में से कईयों को एक साथ अपना रखा है उनकी दुर्गति होने में तो संदेह ही क्यों रहेगा?