“जब मृत्यु निश्चित ही है, तब आप दिन-रात स्वाध्याय में सिर क्यों खपाते हैं?”
-एक व्यक्ति ने संत इमर्सन से प्रश्न किया।
-“इसलिए कि ज्ञान में घुल जाना ही अमरत्व है” इमर्सन ने संक्षिप्त उत्तर दिया और विचारों के सागर में लीन हो गए।
‘‘हमें देश तथा मानवता के लिए मन प्राण लगाकर अथक परिश्रम करना होगा। अभी तक यह आदर्श एक छोटा-सा बीज मात्र है, और जो जीवन इसे मूर्त रूप देता है वह स्वयं एक नन्हा-सा केन्द्र मात्र है, किन्तु हमारी ध्रुव आशा है कि बीज एक महान वृक्ष बनेगा और केन्द्र एक सदा विस्तृत होती हुई रचना का हृदय होगा। इस विसर्जित होते हुए जगत की अस्त-व्यस्तता में जन्म लेने के लिए नई मानवता संघर्ष कर रही है जो भावना हमें प्रेरणा दे रही है उसमें दृढ-विश्वास के साथ हम उस नई मानवता का, भावी भारत के ध्वज वाहकों का दर्शन करते हैं। यह विशद भारतीय अध्यात्म ही थके मांदे शरीर का जीर्ण देव संस्कृति का काया-कल्प करके उसे नया जीवन देगा। वह दिन जल्दी ही आएगा।
-“योगीराज अरविन्द”