जे. कृष्णमूर्ति कभी भगवान थे, पर अब इंसान हो गये। यह एक अचम्भे की बात है। इंसानों में से अपने को भगवान घोषित करते अनेकों देखे और सुने गये हैं, पर ऐसा कदाचित् ही कहीं हुआ हो कि भगवान ने अपना ईश्वरीय चोला उतार फेंका हो और मात्र इंसान रह गये हों।
यह कथा जे. कृष्णमूर्ति की है। इन्हें थियोसोफिकल सोसायटी ने नया मसीहा घोषित किया था। बाइबिल के एक प्रसंग में ईसा मसीह का दुबारा प्रकट होने का जिक्र है। समय का वर्णन भी ऐसा ही है, जिसकी संगति इस शताब्दी से खाती है। उसमें जो चिह्न होने चाहिए, उसका तुक भी थियोसोफिकल सोसायटी की कर्त्ता-धर्त्ता श्रीमती एनीबेसेन्ट एवं श्री लेडबीटर ने कृष्णमूर्ति के साथ मिला दिया था।
एक अवकाश प्राप्त ब्राह्मण अफसर के घर कृष्णमूर्ति का जन्म हुआ। योरोप में ख्याति प्राप्त अध्यात्म नेता लेडवीटर ने अपने दिव्यज्ञान के सहारे घोषणा की कि इस बालक में ईसा मसीह की दिव्य आत्मा है। इस घोषणा पर विश्वास किया गया और बालक को अधिक योग्य बनाने के लिए उसकी शिक्षा-दीक्षा की गई, उन्हें इंग्लैण्ड ले जाया गया, उन्हें कुलीनों के लिए विनिर्मित विद्यालयों में पढ़ाया गया। वयस्क होने पर उन्हें फ्रांस की सोरबीन यूनिवर्सिटी में पढ़ने भेजा गया। चुपके-चुपके उनकी ख्याति फैलायी गयी, फलतः उनके भक्तों की कोई कमी न रही।
सन 1929 में कैम्ब्रिज नगर के एर्डे किले के मैदान में एक सम्पन्न भक्त ने अपनी पाँच हजार एकड़ भूमि इस नये मसीहा को भेंट की, ताकि भक्तजनों के लिए एक साधक सम्पन्न नगर उस पर बसाया जा सके।
पर यह सिलसिला बहुत दिन न चल सका। कृष्णमूर्ति के कितने ही स्वागत समारोह हो चुके थे, उनमें वे नपी-तुली बातें कहते थे और बताये हुए तौर-तरीके से बैठते थे, पर हेम्पशायर के वुक्स वुड पार्क में एक नया धमाका हुआ। उस समारोह में उनने अपनी पोल स्वयं खोल दी और कहा कि “न तो मैं मसीहा हूँ, न कोई विचित्र व्यक्ति। दूसरों की तरह मैं साधारण आदमी हूँ। मुझसे किसी चमत्कार की आशाएँ कोई न करे। आप लोग अपने ही जैसा एक सामान्य व्यक्ति मुझे समझें। जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ, अन्य व्यक्ति भी मेरे ही जैसे हैं। मसीहा या उद्धारकर्ता अपने सिवाय अपने लिए और कोई नहीं हो सकता। यदि कोई व्यक्ति ऊँचा उठा, तो वह अपने प्रयास-पुरुषार्थ से स्वयं ही ऊँचा उठा है। आप में से जो ऊँचे उठना चाहते हों या उद्धार के इच्छुक हों अपने ही प्रयास-पुरुषार्थ की ओर देखें, अन्य किसी की आशा न करें। मेरे सम्बन्ध में अब तक की मान्यताओं को बदल दें, किसी भ्रम में न रहें। मैं भगवान नहीं, मात्र इंसान हूँ।”
इनका यह भाषण धमाके जैसा था। जो उनसे बड़ी-बड़ी आशाएँ लगाए बैठे थे, उन पर एक प्रकार से तुषारापात हो गया। भगवान के, ईसा नये अवतार के सम्बन्ध में जिनने बड़े-बड़े सपने देखे थे, उनकी आँखें खुल गईं।
साथ ही सत्य के अन्वेषकों को एक बड़ा सहारा मिला। जो उठा है अपने ही कर्मों या पुरुषार्थ से उठा है। जो गिरा है, उसे उसके अपने कर्मों ने ही गिराया है। दूसरे किसी को सलाह भर दे सकते हैं, पर ऐसा नहीं हो सकता कि अपने बलबूते किसी का उद्धार करें।
जे. कृष्णमूर्ति के इस भाषण से धर्मक्षेत्र में व्यापक हलचल मच गई। अवतार की आशा पर बहुत कुछ पाने की जो आशा लगाये बैठे, उनके सपनों का बालू का महल ढह गया। जिनने उन्हें भगवान बनाया था और उनके सहारे बहुत खेल खड़ा करने की आशा कर रहे थे, उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। इसके बाद जे. कृष्णमूर्ति ने साधक वेष-भूषा में सत्य का उद्घाटन करते हुए अपना प्रचार प्रारम्भ किया कि हर मनुष्य आत्मनिर्भर है, अपने विचारों और कार्यों से ही वह उठ या गिर सकता है। अभी भी वे यही कर रहे हैं।