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September 1984

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अपनी-अपनी विचारणा और भावना के अनुरूप हर व्यक्ति स्वयं अपने भाव-लोक का सृजन करता है। बाह्य परिस्थितियां कुछ भी हों, जैसी तरंगें अपने चहुँ ओर आन्दोलित होती रहेंगी, वैसी ही अनुभूतियां होंगी, मनःस्थिति की प्रतिक्रिया बाहर परिलक्षित होगी। परोक्ष जगत की यह एक अद्भुत संरचना है जिसे स्थूल आंखें देख तो नहीं सकतीं, उनकी अनुभूति अवश्य कर सकती हैं। इसे बदलना, अनुकूल बना लेना हर मनुष्य के लिए अपने पुरुषार्थ के बलबूते सम्भव है।


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