कवि के उद्गार हैं कि किसी सज्जन पुरुष द्वारा सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती- “केषां न स्यादभिमतफला प्रार्थना ह्युत्तमेषु।” प्रार्थना आत्मा का आहार है। भक्त को भगवान से जोड़ने वाला धागा है। आसन्न विपत्तियों और प्रत्यक्ष दृश्यमान प्रतिकूलताओं से जूझने हेतु आत्मबल सम्पन्न साधक के लिए प्रार्थना ही एकमात्र अवलम्बन है।