मन का बुढ़ापा न आने दें

September 1984

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लोंगफैलो कहते थे कि “बचपन और यौवन के आनन्द की तरह ही वृद्धावस्था भी आनन्द और उत्साह भरी है। आयुष्य के हर पहलू की अपनी-अपनी उपयोगिता है। बच्चे कुछ कमाई नहीं करते उनसे युवकों जैसे पुरुषार्थ भी नहीं बन पड़ते तो भी यह नहीं कहा जा सकता कि बचपन निरर्थक या निरानन्द है। ठीक इसी प्रकार वृद्धावस्था भी दुःखदायी नहीं है और न ऐसी है जिसे निरर्थक कहा जा सके।”

वृद्धावस्था और थकान दो अलग-अलग चीज हैं। बुढ़ापा निरानन्द होता है, यह मानना गलत है। मन बूढ़ा होता है न जवान। वृद्धावस्था की अपनी उपयोगिता है। परिपक्व ज्ञान और अनुभव जिस स्थिति में मनुष्य के पास एकत्रित हो, उसके बारे में यह सोचा नहीं जाना चाहिए कि यह आयु बेकार है। मात्र दौड़ना ही जवानी नहीं है। जिन दिनों कोई व्यक्ति परिपक्व बुद्धि का होता है वह अवधि जवानी से किसी प्रकार कम मूल्यवान नहीं है।

सिर पर सफेद बाल और चेहरे पर झुर्रियों का होना किसी व्यक्ति का मूल्य घटाता नहीं वरन् बढ़ाता है। क्योंकि ऐसे व्यक्ति के पास संकलित अनुभव अन्य अवस्था वालों की तुलना में सम्मान पाने के लिए बहुत कुछ है। वह अपने संकलित अनुभव के सहारे परामर्श दे सकता है जिसके लिए अन्य आयु वाले तरसते रहते हैं।

हँसने और हँसाने की कला याद हो तो वयोवृद्ध अन्य आयु वालों की तुलना में अधिक प्रसन्न दीख पड़ते हैं। मात्र जवानी की मजबूती और फुर्ती ही सब कुछ नहीं है। वृद्धावस्था की गम्भीरता का अपना महत्व है। परिश्रम करने पर ही वृद्धजन ऐसे परामर्श दे सकते हैं जिनके सहारे अधिक लाभान्वित होना बन पड़े। सौजन्य और शालीनता सीखने के लिए हर आयु के व्यक्ति को वृद्ध जनों के पास जाना पड़ता है।

जो थकान, निराशा और खीज अनुभव करता है वस्तुतः वह बूढ़ा है भले ही वह आयु की दृष्टि से जवान ही क्यों न हो। इसी प्रकार वह जवान है जिसमें आशा, उत्साह और हिम्मत मौजूद है भले ही उसके चेहरे का बुढ़ापा झलकता है। शरीर की स्थिति को नहीं, मन पर छाई हुई निराशा को दुःखदायी कहते हैं।

करने योग्य काम अलग-अलग हैं। बचपन और जवानी की मजबूती और फुर्ती अपने समय पर सराहने योग्य है। किन्तु बुढ़ापे की सुन्दरता किसी प्रकार कम नहीं आँकी जा सकती। शरीर थका हुआ हो किन्तु मन में उत्साह हो तो ऐसा व्यक्ति सुन्दर भी लगता है और हर किसी के लिए आनन्ददायक और उत्साहवर्धक।

कितने व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनने अभी-अभी जवानी में प्रवेश किया है। रूपवान और धनवान भी हैं किन्तु जिन पर निराशा छाई है। जिन्हें भविष्य अन्धकार भरा दिखता है। जिन्हें अपनों से और विरानों से शिकायत ही शिकायत है। ऐसे लोगों के चेहरे पर मुर्दनी छाई रहती है। उन्हें वृद्धों से भी गया-बीता समझा जायेगा।

सम्मान दूसरे नहीं देते मनुष्य अपनी इज्जत अपने आप करता है। जिसने अपने सद्गुणों से तौर तरीका ऐसा बना रखा है जिसकी इज्जत की जा सके तो समझना चाहिए कि उसकी उपयोगिता हर अवस्था में समझी जाएगी। बुढ़ापे के कारण कोई निरुपयोगी नहीं माना जाता। जिसने अपनी आदतें, इच्छाएं और गतिविधियां ऊँचे स्तर की रखी हैं, उन्हें कभी ऐसा बुढ़ापा नहीं देखना पड़ेगा जिसकी इज्जत में कमी पड़े।


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