अनोखी सूझ-बूझों का स्रोत

September 1984

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आमतौर से अनुभव और अनुकरण के आधार पर लोग जीवन की गाड़ी अभ्यस्त लकीर पर चलाते हैं। दैनिक समस्याओं के समाधान भी इसी आधार पर होते हैं। बुद्धि का कोल्हू इसी जाने-माने ढर्रे पर चलता रहता है। अक्ल इसी सीमा में काम करती है।

किन्तु यह नहीं सोचा जाना चाहिए कि बुद्धि की सीमा इतनी ही छोटी परिधि में काम कर सकती है। यदि उसे अवसर मिले तो ऐसी सूझ-बूझ का परिचय दे सकती है जिसे देखकर दांतों तले उँगली दबाना पड़े।

बुद्धि के भण्डार में से अनोखी एवं मौलिक सूझ-बूझ के मणि मुक्तक भी निकलते रहे हैं, निकल सकते हैं। पर उसकी शर्त एक ही है कि कुछ विशेष करने की व्याकुलता उसके सामने हो। कोई असाधारण कठिनाई सामने खड़ी हो, समस्या सुलझ न रही हो, अथवा इतनी तीव्र लगन हो जो किसी उपाय से लक्ष्य तक पहुँचने के लिए आकुल हो। विशेष सूझ-बूझ का भण्डार ऐसी ही मनःस्थिति एवं परिस्थिति में खुलता है।

स्विट्जरलैंड के सुकारे क्षेत्र पर समीपवर्ती सामंतों ने हमला बोल दिया। उन दिनों मर्द किसी काम से बाहर गये हुए थे। महिलाएँ ही गाँव में रह रही थीं। आक्रमण से बचने के लिए उन्होंने विचित्र सूझ-बूझ का परिचय दिया।

अन्धेरा होते ही बकरियों के सींगों में उनने जलती मशालें बाँध दीं और उन्हें पहाड़ से नीचे की ओर खदेड दिया। दुश्मन के सैनिक नीचे से ऊपर चढ़ रहे थे तो उन्होंने मशालें लेकर आते हुए प्रेत देखे और भाग खड़े हुए। इस प्रकार महिलाओं की सामयिक सूझ-बूझ ने एक कठिन मोर्चा जीत लिया।

फारस के राजा ने पड़ोसी छोटे राज्य पर हमला किया। उस छोटे राज्य का राजा फरमैनिस संघर्ष करने की स्थिति में नहीं था। उसके पास सैनिक भी कम थे और अस्त्र-शस्त्र भी थोड़े। आत्म-रक्षा का कोई उपाय न देखकर उसने सूझ-बूझ से काम लिया। सभी सैनिकों और नागरिकों को रात्रि के अन्धेरे में सुरक्षा खाई खोदने में लगा दिया। रात भर फावड़े चलते रहे। दिन निकलने से पहले ही खाई को सूखे घास-पात से ढक दिया गया। सवेरा होते ही आक्रमणकारी विजय की सुनिश्चित सम्भावना देखकर तेजी और मस्ती के साथ दौड़े। फलतः वे धड़ाधड़ खाई में गिरते चले गये। खाई में गिरे और वापस लौटे सैनिकों का बहूमूल्य सामान जो सुरक्षा सैनिकों के हाथ लगा, वह दस करोड़ डालर का था।

फ्राँस के लैण्डेसीज नगर में सेना घिर गई थी। आक्रमणकारी सैनिकों के दल ने इस प्रकार घेराबंदी कर रखी थी कि भीतर रसद तक नहीं पहुंच सकी और घिरे हुए नागरिक तथा सैनिक भूखे मरने लगे।

बचाव का एक विचित्र उपाय जनरल डुवैले ने अपनाया। उसने घोड़ों की पीठ पर रेत के बोरे बाँधे और उसके नकली हाथ लगाकर भाले कस दिये। अन्धेरा होते ही घोड़ों के झुण्ड उन नकली सैनिकों को लेकर शत्रु की सेना में अन्धाधुन्ध घुस पड़े। रात्रि में असली नकली की पहचान नहीं हो सकी और उसे अप्रत्याशित घुड़-दौड़ से घबराकर आक्रमणकारी मोर्चा छोड़कर भाग खड़े हुए।

होलीलैण्ड में एक किला फतह नहीं हो रहा था। लगातार दो वर्ष तक आक्रमण चलता रहा पर प्रवेश का अवसर न मिला। इस पर सेनापति रिचार्ड ने एक नई सूझ-बूझ का परिचय दिया। किले की दीवारों में मधुमक्खियों के प्रायः एक सौ छत्ते लगे थे। उन सभी को उड़ा दिया गया। उड़ती मक्खियों ने किले के प्रहरियों पर हमला बोला तो जान बचाने के लिए इधर-उधर छिपने भागे। अवसर देखकर आक्रमणकारी सैनिक किले में घुस पड़े और किला फतह हो गया।

यदि अवरुद्ध मार्ग को खोलने के लिए विवेक बुद्धि जागृत हो और घबराहट का असंतुलन आड़े न आये तो ऐसी सूझ-बूझ हर किसी में उत्पन्न हो सकती है जो परम्परागत ढर्रे की अपेक्षा नया उपाय सोचे, नया मार्ग खोजे और सफलता प्राप्त करके रहे।


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