सूफी सन्त “सरमद”

September 1984

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औरंगजेब जब मरने लगा तो उसने कई मुल्लाओं को बुलाया कि मुझे अपने तीन पाप बहुत भारी मालूम पड़ते हैं, आप लोग किसी तरह उन्हें खुदा से माफ करा दें। तीन पाप थे (1) पिता को जेल में बन्द करा देना (2) दारा वगैरह भाइयों का कत्ल करा देना तथा (3) सूफी फकीर सरमद का सिर उतरवा लेना। गुनाह माफ हुये या नहीं यह तो ईश्वर ही जाने पर यह स्पष्ट है कि मरते समय उसे इन पापों का रंज अवश्य था।

सरमद सूफी सन्त थे। वे मध्य एशिया से भारत व्यापार के लिए आये थे। पहले वे सिन्ध में तिजारत करते रहे, साथ ही सूफी पन्त का प्रचार भी। जन्मतः वह यहूदी थे। बाद में मुसलमान हुए और अन्त में वेदान्त धर्म के अनुयायी हो गये। दारा उनकी भक्ति और विद्वता से बहुत प्रभावित थे। औरंगजेब ने जब दारा का कत्ल करा दिया तो उसे यह भय बराबर बना रहा कि दारा के मित्र और जनता में अत्यन्त लोकप्रिय सरमद कहीं उसके लिए कोई संकट खड़ा न करे। वे उसकी आंखों में काँटे की तरह खटकने लगे।

एक दिन औरंगजेब सरमद के पास से गूजरे। देखा कि वे नंग-धड़ंग पड़े हैं। कम्बल दूर पड़ा है। औरंगजेब ने कड़ककर कहा- नंगा क्यों पड़ा है, पास में पड़े कम्बल से बदन क्यों नहीं ढक लेता, सरमद ने कहा- इतनी कृपा आप ही कर दें। मुझे तो बन नहीं पड़ता। औरंगजेब ने कम्बल उठाया तो उसके नीचे उन सबके सिर थे जिन्हें उसने कत्ल कराया। औरंगजेब के बूते कम्बल न उठा। तो सरमद ने कहा- तू ही बता- तेरे पापों को ढकना ज्यादा जरूरी है या अपने बदन को ढकना।

सरमद का दिल्ली की जनता पर असाधारण प्रभाव औरंगजेब से देखा न गया। उसके इशारे पर मुल्लाओं ने इल्जाम लगाया कि वह अधूरा कलमा पढ़ता है। अदालत में पेश किया गया तो वहाँ भी उसने वह अधूरा ही सुनाया ‘ला इला इललिलाह’ जिसका अर्थ होता है। सभी दोषी हैं। शेष अंश जो शेष रह गया था। वह था। मुहम्मद ‘ रसूलिल्लाह’। सरमद का कहना था कि मैंने अभी उस देवदूत का दर्शन नहीं किया। जिन्हें देखता हूँ, दोषी पाता हूँ। इस कथन पर मुल्लाओं की अदालत में सरमद को दोषी पाया गया और उसका सिर उतार लेने का हुक्म हुआ। सरमद का सिर काट लिया गया। जब सिर कटा तो उसमें से तीन बार आवाज निकली- ‘ला इलाह इल्लिलाह’। सरमद सच्चे विश्वास की इस गवाही को देख कर सभी दंग रह गये।

जिस दिन सरमद का सिर कटा उस दिन पूरी दिल्ली में रंज मनाया गया। न किसी के घर में चिराग जला न चूल्हा। बादशाह के सामने कोई कुछ कर ही नहीं सकता था, पर इतना सभी ने अनुभव किया कि एक बेगुनाह सच्चे फकीर का कत्ल हुआ।

औरंगजेब के मन पर उस अन्याय का बोझ जिन्दगी भर लदा रहा और जब वह मरा तब भी उसे वह गुनाह बेतरह अखरता रहा।

सूफी सन्त अपनी भक्ति भावना के लिए भारत भर में लोकप्रिय रहे। अजमेर के ख्वाजा भी सूफी थे। जिनकी दरगाह पूजने हिंदू, मुसलमान सभी जाते हैं। सूफी धर्म के सिद्धान्त, हिंदुओं के वेदान्त दर्शन से पूरी तरह तालमेल खाते हैं। सरमद की कब्र दिल्ली में है जिन्हें उनका इतिहास स्मरण है उन सब के सिर उस स्थान के समीप जाकर झुक जाते हैं।


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