अनुशासित जीवन ही श्रेयस्कर है।

September 1984

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इस सृष्टि में सब कुछ नियमित और अनुशासित ढंग से चल रहा है। स्वच्छन्दता और उच्छृंखलता यदा-कदा दीखती तो है पर थोड़ी गहराई में उतरते ही उसके पीछे भी कोई न कोई अनुबन्ध काम करता दिखाई देता है। साइबेरिया के पक्षी वहाँ मौसम अनुकूल न रहने पर हजारों मील की यात्रा करके भारत आ जाते हैं और परिस्थिति बदलते ही वे उसी क्रम से वापस लौट जाते हैं। कुछ जाति की मछलियाँ प्रजनन की उमंग आते ही हजारों मील की लम्बी यात्रा पर निकल पड़ती हैं और जहाँ उनके लिए अनुकूलता है वहाँ पहुँच कर अभीष्ट प्रयोजन की पूर्ति करती हैं। यह सब इस प्रकार होता है कि मानो उसके लिए किसी ने पहले से ही प्रशिक्षित किया हो अथवा समय पर किसी सशक्त ने हण्टर लेकर वह कष्टसाध्य काम उनसे कराया हो।

सूर्य चन्द्र ग्रह नक्षत्र अपनी गतिविधियों में समय चक्र का बिना रंच मात्र व्यवधान किये पालन करते हैं। इतना ही नहीं वे अपने परिभ्रमण मार्ग पर चलते रहने में भी राई रत्ती चूक नहीं करते हैं। ऋतुएं अपने समय पर आती हैं और अवधि पूरी होते ही चली जाती हैं। सृजन, अभिवर्धन और परिवर्तन का क्रम ऐसा है, मानो नियति ने इस सुनिश्चित व्यवस्था को बहुत समझ-बूझकर बनाया हो। अणु परमाणुओं के गर्भ कलेवर में जो क्रम चलता है उसमें सौर मण्डल का नियम अनुशासन और विधि-विधान भली प्रकार लागू होता है।

मनुष्य को बाह्य जीवन में इच्छानुसार काम करने की एक सीमा तक छूट मिली हुई है। उसमें व्यतिरेक बरतने पर राजदण्ड, समाज दण्ड, प्रकृति दण्ड के हण्टर बरसने लगते हैं। फिर आन्तरिक क्रिया-कलापों में तो कहीं कोई अव्यवस्था है ही नहीं। रक्त प्रवाह, धड़कन, पाचन, शयन, जागरण, ग्रहण, विसर्जन की प्रक्रिया सुनियोजित रीति से चलती रहने तक ही जीवन स्थिर रहता है।

गर्भावस्था में स्त्रियो की हृदय की धड़कन होती तो न्यूनाधिक है पर भ्रूण की चेतना उसे प्रति मिनट 72 के हिसाब से सुनती है। उस अवधि में बच्चे को उन्हें सुनने का इतना अधिक अभ्यास हो जाता है कि उसके बिना चैन न पड़े। जन्मने के बाद भी उसे ऐसे अवसरों की तलाश रहती है जिनमें प्रति मिनट 72 धड़कनें लयबद्ध रूप से सुनने का अवसर मिले। जब भी ऐसा अवसर आता है उसे असाधारण प्रसन्नता होती है।

समय के अनुशासन में मनुष्य का भीतरी ढांचा मजबूती के साथ कसा हुआ है। मांसपेशियों का आकुंचन-प्रकुंचन, श्वास-प्रश्वास, निमेष-उन्मेष आदि में यदि तालबद्धता रहती है तो मनुष्य प्रसन्न भी रहता है और निरोगी भी। पर जब भी अस्त-व्यस्तता चढ़ती और मनुष्य स्वच्छन्दता बरतकर निर्धारित क्रम बिगाड़ता है तो क्रमबद्धता लड़खड़ाने के कारण उसे अनेकानेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। प्रकृति के अन्य जीव-जन्तु प्रकृति प्रेरणा के सहारे उस समय सारिणी का बहुत कुछ परिपालन करते हैं। एक मनुष्य ही हे जो दिनचर्या में अनियमितता बरतता है और अनेकों परोक्ष कठिनाईयां बटोर लेता है।

प्राणायाम प्रक्रिया में इसी तालबद्धता से संबंधित समय सारिणी का अभ्यास किया जाता है। उस सन्दर्भ में जितनी प्रवीणता प्राप्त होती जाती है उतनी ही कायिक स्थिरता, सुदृढ़ता और दक्षता बढ़ती देखी जाती है।

सृष्टि क्रम नियमबद्ध अनुशासन का परिपालन करते हुए चल रहा है। मनुष्य के लिए भी मर्यादा पालन और नियम निर्धारण आवश्यक है। स्वच्छन्दता का उदत्त उपयोग करने वाले अहंकारी देर तक मनमर्जी नहीं चला सकते और उन्हें अंकुश अनुशासन के परिपालन में बाधित होना ही पड़ता है। अच्छा हो, वस्तुस्थिति को समझें और अनुशासित नियमित जीवन जीने की आदत डालें।


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