एक अनपढ़ व्यक्ति दार्शनिक अरस्तू के पास पहुँचा और ब्रह्मज्ञान की दीक्षा माँगने लगा।
सिर से पैर तक दृष्टि डालने के बाद उन्होंने सिखावन दी- ‘नित्य कपड़े धोना और बाल संभालना आरंभ कर दो। गलतियाँ सुधारते चलना ही साधना कहलाता और परमात्मा तक पहुँचाता है।’