आत्मा किसी लिंग विशेष में रहने के लिए बाधित नहीं

September 1984

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मानवी संरचना के नर-नारी के दो भेद प्रत्यक्ष हैं। इतने पर भी यह विभाजन रेखा ऐसी नहीं है जिसे शाश्वत या सुस्थिर कहा जा सके। आत्मा जाति और लिंग रहित है। परिस्थितियों और संकल्पों के कारण ही वह अपना रूप गिरगिट की तरह बदलती रहती है। जो आज नर है, वह कभी नारी रहा हो इसमें आश्चर्य नहीं है। इसी प्रकार यह भी हो सकता है कि जो आज नारी है भविष्य में नर को चोला पहन ले। नाटकों के पात्र आच्छादन परिधान बदलकर कभी नर तो कभी नारी बनते रहते हैं। जो कार्य सामयिक हो सकता है, उसका स्थायी रूप से बन पड़ना भी सम्भव है।

ऐसी कितनी ही पौराणिक गाथाएं हैं जिनमें एक ही व्यक्ति को नर और नारी की दोनों ही भूमिकाएं सम्पन्न करते हुए बताया गया है। एक ही शरीर में एक साथ दोनों प्रकार की आकृति होने की बात शिव के अर्द्धनारीश्वर में दृष्टिगोचर होती है। शिखण्डी आकृति से नर और प्रकृति से नारी था। अभी भी जनखे या हिजड़े इसी प्रकार के होते हैं। उनकी जननेन्द्रियां नपुंसकों या अविकसित मर्दों जैसी होती है पर उनका स्वभाव आचरण नारियों में इतना अधिक मिलता-जुलता है कि कई बार तो पहचानना तक कठिन हो जाता है। उसी प्रकार अनेकों ऐसी महिलाएँ देखी गयी हैं जो शरीर संरचना की दृष्टि से नारी होते हुए भी आचरण सारे मर्दों जैसे करती हैं। उन्हें न तो नारी जैसे वस्त्र अच्छे लगते हैं और न इस प्रकार का जीवन यापन करने में कोई उत्साह होता है।

इन उदाहरणों से प्रकट है कि नर और नारी का विभाजन जीवात्मा की अभिरुचि, आदत या परिस्थिति के अनुरूप होता है। वह चाहे तो उसे प्रयत्नपूर्वक बदल भी सकता है।

लिंग परिवर्तन की घटनाएँ तो पहले भी रहती थीं पर उन दिनों इसकी कोई खोज-बीन नहीं होती थी और लज्जा का प्रसंग होने के कारण वह गोपनीय भी रखी जाती थी। पर अब वैसी बात नहीं रही। लिंग परिवर्तन की घटनाएँ प्रकाश में आती रहती हैं। वस्तु स्थिति का पर्यवेक्षण करने वाले इसमें कोई छल प्रयोजन भी नहीं देखते, विधाता की विविधता-विचित्रता ही देखते हैं। आये दिन होती रहने वाली ऐसी घटनाओं में से इन्हीं दिनों घटित हुई कुछ इस प्रकार हैं-

खड़गपुर बंगाल में एक उन्नीस वर्षीय विद्यार्थी आपरेशन द्वारा लड़की बनाया गया। उसके शरीर में दोनों ही जननेंद्रियां थीं, पर मूत्र त्याग वह ऐसे छिद्र से करता था जो लड़कियों में ही होती हैं। एक दिन उसका पेट फूला तो अस्पताल पहुँचाया गया। मालूम पड़ा कि मूत्राशय की नली पुरुष छिद्र से हटकर नारी अवयव के साथ जुड़ गई है। आपरेशन से उसे ठीक किया तो वह लड़की बन गया।

तेलवाड़ा के कैनाल अस्पताल में एक पच्चीस वर्षीय किसान युवक के पेट का आपरेशन किया गया। वह दर्द से चिल्लाता रहता था। आपरेशन करने पर प्रतीत हुआ कि उसके पेट में गर्भाशय था और मासिक धर्म का रक्त बाहर न निकल सकने के कारण दर्द होता था। आपरेशन करके रास्ता बना दिया गया तो वह ठीक हो गया। पुरुष जननेन्द्रिय नाम मात्र की थी सो उसे हटाया नहीं गया। अब वह लड़का- विधिवत लड़की घोषित कर दिया गया है। ऐसी एक नहीं, अनेकों घटनाएँ प्रकाश में आती हैं जो जनसामान्य को चौंकाती हैं। पर ऐसी कोई अद्भुत बात उसमें है नहीं।

बम्बई के प्लास्टिक सर्जन डा. मानेकशा के अस्पताल में दो युवक आपरेशन के उपरान्त युवती बने हैं। इनमें से एक मेहाम 23 वर्ष का और फैलिद 22 वर्ष का था। बहुत समय से वे दोनों अपने में नारी स्तर का परिवर्तन होने जैसी हलचलें अनुभव कर रहे थे फलतः अस्पताल में दाखिल हुए। उनकी मान्यता सही पाई गई। थोड़े अंग परिवर्तन के उपरान्त उनका लिंग बदल गया। एक का नाम मैरिन और दूसरे का फरह रखा गया जो उनके पुराने नामों से मिलते-जुलते हैं।

बनारस के सर सुन्दर लाल अस्पताल में एक नपुंसक स्तर के लड़के को कई छोटे आपरेशनों के उपरान्त युवती घोषित कर दिया गया है। लड़के की चाल-ढाल तो लड़कियों जैसी थी पर छोटा मूत्र मार्ग लड़की जैसा था। अस्पताल के सर्जन फणीन्द्र त्रिपाठी ने केस अपने हाथ में लिया और शल्य क्रिया द्वारा उसे पूर्ण नारी बना दिया गया।

आस्ट्रेलिया में ऐसी कितनी ही घटनाएँ प्रकाश में आई हैं और किए गए यौन आपरेशनों के उपरान्त वे परिवर्तित लिंग के अनुरूप जीवन क्रम बनाने तथा विवाह करने में सफल रहे हैं।

लंदन के पुलिस विभाग में नर के नारी बन जाने का नया घटनाक्रम सामने आया है। वजपार्ट नगर का एक पुलिस अधिकारी बीमारी की लम्बी छुट्टी लेकर अस्पताल में पड़ा रहा। उसे जननेंद्रियों में अवरोध और सूजन की शिकायत थी। निदान आपरेशन हुआ। उसमें नारी जननेन्द्रिय उभर कर प्रकट हो गईं। उसे नारी घोषित कर दिया गया और नाम मेरी दिया गया। पुलिस में उसकी नौकरी बनी रही पर ड्यूटी बाहर न जाकर दफ्तर में ही रहने की दी गई है।

समलिंगी विवाहों का प्रचलन अब बढ़ रहा है। ऐसे केसों से उनमें से एक का रुझान भिन्न लिंग जैसा पाया गया है। ऐसे लोग इस प्रकार के अनुबंध में संतोष भी अनुभव करते हैं। न्यूयार्क की एक घटना है। बच्चे को जन्म देकर एक व्यक्ति की पत्नी मर गयी। उस पुरुष की छाती से दूध आने लगा। बच्चे को वह पिलाने भी लगा। स्थिति और भी अधिक ठीक करने के लिए उसने डॉ. लियोवेलियन के अस्पताल में दाखिला लिया और दूध ग्रंथियों को अधिक जागृत करने का आपरेशन कराया। वह अब नारी की तरह बच्चे को दूध पिलाता है पहले की अपेक्षा दूध की मात्रा बढ़ गई है। इस व्यक्ति का लिंग परिवर्तन तो नहीं हुआ पर अपने बच्चों के लिए माता और पिता दोनों की आवश्यकता पूरी करता रहा।

इस प्रकार के घटनाक्रमों में नर का नारी बनने के प्रसंग अधिक देखने को मिलते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि नारियाँ नर बनती ही नहीं पर तुलनात्मक दृष्टि से नर के नारी बनने जैसे उदाहरण ही अधिक देखने में आते हैं।

मनोवैज्ञानिक इसका कारण यह बताते हैं कि नर के मन पर नारी का सौन्दर्य आकर्षण अधिक छाया रहता है। वह उसकी निकटता के लिए अधिक आतुर पाया जाता है जबकि नारी में नर के प्रति आकर्षण एक सीमा में ही एवं संयत होता है। गृहस्थ प्रवेश के उपरान्त वह नाम मात्र का रह जाता है। वह गृह लक्ष्मी या माता होने में गौरव अनुभव करती है और रमणी-कामिनी की भूमिका अन्यमनस्क भाव से ही निभाती है। कितनी ही विधवाएँ अपना वैधव्य बिना किसी दाग धब्बे के बिता लेती हैं। कितनी ही सधवाओं का दाम्पत्य जीवन उतना सरस संतोषजनक न होते हुए भी पतिव्रत धर्म भली प्रकार निभता रहता है। इससे प्रकट है कि नारी का नर के प्रति न तो उतना आकर्षण होता है और न सतत् चिन्तन। जबकि आम आदमी के सिर पर अवसर न मिलने पर भी कामुक कामनाओं का भूत चढ़ा रहता है। यह ललक ही अचेतन मन में पड़ी रहने पर उसे शिखण्डी स्तर की ओर धकेलते-धकेलते अन्ततः लिंग परिवर्तन जैसी स्थिति तक पहुंचा देती है। यह शरीर परिवर्तन भर है।

आत्मा का जाति-लिंग से ऊपर होने का तथ्य स्पष्ट है। चिन्तन और व्यवहार का अभ्यास ही उसे किसी वर्ग विशेष में रहने का आदी बनाता है। यदि संकल्प उलटे तो परिवर्तन तत्काल न सही देर-सवेरे में होने की संभावना रहेगी ही। इसी प्रकार लिंग विशेष के आधार पर किसी को वरिष्ठ-कनिष्ठ मानने की मान्यता भी भ्रामक है, यह स्पष्ट हो जाना चाहिए।


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