संग्रह का अन्त बिखराव है। अभ्युदय के अनन्तर अवसान आता है। संयोग की परिणति वियोग है। इस परिवर्तन चक्र पर घूमते हुए संसार में स्थिर तो एकमात्र “धर्म” ही है।
कार्य संचालन के मूल में क्रियाशील सात मुख्य प्रवृत्तियों में से सहकारिता, संघर्ष, सामंजस्य इन तीन पर पिछले अंक में प्रकाश डाला जा चुका है। शेष चार-पराक्रम, प्रत्यावर्तन, अनुशासन एवं एकात्मभाव पर इस अंक में चर्चा की जा रही है। इन प्रेरणाओं को समझ कर तथ्यों पर ध्यान देने वालों को यह समझने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि जीवन मात्र हलचलों का जमघट नहीं, आदर्शों का प्रयोग परीक्षण एवं निर्वाह बनकर रहता है।