लोकांतरों के अन्तरिक्ष यान- भूलोक में

September 1984

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

ग्रह नक्षत्रों का परिवार भी मानवी परिवार की तरह नियति की एक विशिष्ट शृंखला में बंधा हुआ है। इन पिण्ड गोलकों में दृश्य और अदृश्य स्तर के पारस्परिक आदान-प्रदान क्रम अनेकानेक रूपों में चलते रहते हैं। अपना सौर-मण्डल भी एक सद्गृहस्थ की तरह मिल-जुलकर निर्वाह करता और मिल बाँट कर रखा है। विशाल ब्रह्मांड में विद्यमान अगणित सौर मण्डल अपने-अपने ध्रुव केंद्रों की प्रदक्षिणा करने के साथ-साथ किसी अविज्ञात किन्तु महान लक्ष्य की ओर अनवरत क्रम से बढ़ते चले जाते हैं।

अकल्पनीय दूरी पार करके धरती पर ग्रह-नक्षत्रों का आदान-प्रदान अदृश्य स्थिति में शक्य है। ऊर्जा किरणें ही प्रकाश की गति से भी तीव्र चाल से दौड़ लगाती हुई सीमित अवधि में धरती तक सतत् आती रहती हैं। यदि उनका आकार अन्तरिक्ष यानों जैसा ठोस दृश्यमान हो तो निश्चय ही लोक-लोकांतरों के बीच आदान-प्रदान अति कठिन ही बना रहेगा। यही कारण है कि प्रकृति सम्पदा का अंतर्ग्रही आदान-प्रदान तरंग स्तर का होने के कारण अदृश्य ही बना रहता है।

ब्रह्मांड में अधिकाँश ग्रह गोलक निर्जीव हैं। इतने पर भी इस विशाल परिकर में अगणित ऐसे भी लोक हैं जिनमें जीवन विद्यमान हैं, जिनमें धरती जैसी ही सजीवता विद्यमान हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी है जिनकी सभ्यता, सम्पदा एवं वैज्ञानिक विभूति मनुष्य लोक की तुलना में कही अधिक विकसित है। सजातियों के मध्य आकर्षण एवं सद्भाव होना स्वाभाविक है। विकसित सभ्यता वाले लोक-लोकांतरों के निवासी निश्चय ही इस भूलोक से परिचित हों और सम्पर्क, सद्भाव एवं आदान-प्रदान के लिए आतुर रहते हों तो कोई आश्चर्य नहीं।

प्रमाण मिलते हैं कि अन्य लोकों के चैतन्य प्राणी जो संभवतः बुद्धि और विज्ञान के क्षेत्र में कुछ अधिक आगे बढ़े होंगे, भूलोक से सम्पर्क स्थापित करने के इच्छुक एवं प्रयत्नशील हैं। इस संदर्भ में अधिक प्रामाणिक साक्षी ऐसे अन्तरिक्ष यानों की हैं जो धरती तक आते एवं अपना अस्तित्व का प्रमाण-परिचय देते रहते हैं। संभवतः पिछली शताब्दियों में भी उनका आवागमन रहा हो और उपेक्षा के कारण उसे नोट न किया गया हो पर इस शताब्दी में उन्हें बड़ी संख्या में अधिक व्यापक क्षेत्र में देखा गया है। इन्हें ‘उड़न तश्तरी’ (यू.एफ.ओ.) के नाम से जाना जाता है। पर हैं वे दृश्यमान अन्तरिक्ष यान ही। किसी विकसित सभ्यता ने लम्बी यात्रा करने वाले- द्रुतगामी वाहनों का आविष्कार कर लिया प्रतीत होता है। उड़न तश्तरियों की सता को इसी रूप में मान्यता मिल रही है।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय में जीवन विज्ञान के प्राध्यापक डा. जार्ज वाल्ड के अनुसार हमारी आकाश गंगा में ही एक अरब ग्रह हैं इससे परे एक अरब अन्य आकाश गंगायें हैं जिनमें से प्रत्येक में एक अरब ग्रह हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इन सभी ग्रहों में एक से पाँच प्रतिशत तक ग्रहों में जीवन अवश्य विद्यमान है।

अमेरिका के मैरीलैंड विश्वविद्यालय के रासायनिक विकास संस्थान के निर्देशक डा. सिरिल पोन्नेमपेरूमा ने भारतीय विज्ञान काँग्रेस में बताया कि ब्रह्मांड से संदेश प्राप्त करने का प्रयास निरन्तर चल रहा है। वैज्ञानिकों की मान्यता है कि हमारे ही नभ मण्डल में दस लाख सभ्यताएँ अस्तित्व में हैं जिनका अध्ययन करने के लिए विशाल कंप्यूराइज्ड उपकरणों का प्रयोग वे कर रहे हैं।

सन 1947 में अमेरिका के पश्चिमी तट रार्कामा के निकट मोटर बोट में बैठे दो रक्षक एच.ए. डहल तथा फैड एल. क्रैसवेल समुद्र तट की निगरानी कर रहे थे। अचानक आकाश में दो हजार फुट की ऊँचाई पर गोल आकृति की प्रकाशमान छह मशीनें दिखाई दीं। पाँच मशीनें एक के चारों ओर घूम रही थीं। धीरे-धीरे नीचे उतरकर 500 फुट की ऊँचाई पर ही रुक गई। तभी डहल ने अपने कैमरे निकाल फोटो लेने के लिए कैमरे का स्विच दबाया ही था कि अचानक बीच वाली मशीन फट गई। दोनों अंगरक्षक तुरन्त छलाँग लगाकर पास की एक गुफा में घुस गए पर उनके साथ का कुत्ता वही मर गया। कुछ देर बाद बाहर निकलने पर देखा कि विस्फोट से फटे मशीन के टुकड़े तट पर बिखरे थे जो चमकीले एवं गरम थे। उनकी बोट में लगे ट्रान्समीटर भी जाम हो गए थे।

निरीक्षक दल ने वाशिंगटन के उक्त टापू पर फैले 20 टन धातु के टुकड़ों को एकत्र कर परीक्षण किया तो ज्ञात हुआ कि ये टुकड़े सोलह धातुओं के सम्मिश्रण से बने हैं जिन पर कैल्शियम की मोटी चादर चढ़ी है। वैज्ञानिक के लिए आश्चर्य यह रहा कि इन 16 धातुओं में से एक भी धातु पृथ्वी पर नहीं पाई जाती। वैज्ञानिक इनके नाम बता पाने में असमर्थ रहे एवं अभी तक उनका विश्लेषण संभव नहीं हो पाया है।

‘मेलबोर्न’ 24 अक्टूबर 78 को बीस वर्षीय युवा विमान चालक फ्रेडरिक वाके ने आस्ट्रेलिया एवं तस्मानियां के बीच चार्टर्ड उड़ान भरी। उसने अधिकारियों को बताया कि वह 137 मीटर की ऊँचाई पर किंग आईसलैण्ड के पास से उड़ रहा है और उसके विमान के ऊपर बहुत तेज गति से एक तश्तरी जैसी आकृति की लम्बी वस्तु उड़ रही है जिसके भीतर हरी रोशनी का प्रकाश आ रहा है। यान सहित लुप्त होने के पूर्व फ्रेडरिक के अन्तिम शब्द थे “मेरे विमान के इंजन में रुकावट आ रही है तथा वह विचित्र यान अब भी मेरे विमान के ऊपर छाया है।” इसके बाद रेडियो पर धातु के जोरों से टकराने का शोर सुनाई पड़ा तथा विमान का नियंत्रण कक्ष से सम्पर्क टूट गया। मेलबोर्न हवाई अड्डे से अनेक जहाजों ने खोज के लिए उड़ान भरी लेकिन दुर्घटना का कोई चिन्ह न मिला।

ऐसे अनेकों उदाहरण अमेरिका के अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों द्वारा गठित यू.एफ.ओ. विभाग में संग्रहित देखे जा सकते हैं जिनमें यान चालकों, वायरलेस आपरेटरों के अन्तिम शब्द टेप रिकार्डेड हैं एवं जिनका कोई चिन्ह निश्चित स्थान पर न मिला, मात्र रेडियो धर्मिता से भरे वातावरण को छोड़कर। कई हैलिकाप्टर चालक सहित इस तलाश में गायब हो चुके हैं। वे कहाँ, किस लोक में गमन कर गए, कोई जानकारी वैज्ञानिकों के पास इस सम्बन्ध में नहीं है।

25 अगस्त 1976 की बात है। अमेरिका के नार्थ डकोटा प्रान्त में एक वायु सेना अधिकारी को रेडियो तरंगों द्वारा संदेश भेजने में अचानक बाधा का सामना करना पड़ा। खोजबीन करने पर पता चला कि इसी समय एक उड़न तश्तरी गहरे लाल रंग के प्रकाश बिखेरती ऊपर नीचे उड़ रही थी। इस समय रैडार ने भी दस हजार फीट की ऊँचाई पर उड़ती हुई एक गोल तश्तरी की सूचना दी। थोड़ी देर बाद यह उड़न तश्तरी दक्षिण की ओर मुड़ गई और यह अनुमान लगाया गया कि कोई 15 मील की दूरी पर वह पृथ्वी पर उतर गई है। उस स्थान पर वायु सेना की टुकड़ी पहुँची तो वह आठ मिनट पहले ही वहा से गायब हो चुकी थी। इस बीच दूसरी तश्तरी उत्तर की ओर दिखाई दी, उसे भी राडार ने देखा पर जब तक दस्ता उधर दौड़े वह भी गायब हो गई। इस आँख मिचौनी को राडार पर तो देखा जाता रहा, लेकिन इस सम्बन्ध में कोई सूत्र वैज्ञानिकों के हाथ नहीं लगा।

24 अक्टूबर 1977 की शाम को कनाडा के समुद्री तट पर शागहार्बर के सैकड़ों निवासियों ने आकाश में कोई चमकदार उड़ती हुई वस्तु देखी। देखते ही देखते वह समुद्र सतह पर जाकर विलीन हो गई। 20 मिनट के भीतर ही पुलिस कर्मचारी एक जहाज और आठ नावों सहित उस स्थान पर निरीक्षण करने पहुँच गए, जहाँ उड़न तश्तरी विलीन हुई थी। वहां ‘सर्चलाइट’ के तेज प्रकाश में वे केवल समुद्र के एक स्थान से पीला झाग निकलता देख सके। दो दिनों तक सैनिक गोताखोर उस स्थान पर गोता लगाते रहे पर वहाँ किसी वस्तु या उड़न तश्तरी का कोई प्रमाण नहीं मिला।

ये घटनाक्रम अभी ही नहीं, काफी पूर्व से घटते रहे हैं। 13 मई 1917 का दिन था। फातिमा नगर लिस्बन (पुर्तगाल) से कोई 62 मील दूर। “कारवां द इरिया” नामक झरने के समीप तीन बालक लूसिया, फैकिस्कोमार्तो और जेसिन्तोमार्तो अपने जानवर चरा रहे थे कि एक यान से अन्तरिक्ष यात्री उतरे और उन बच्चों से बातचीत की। बालक भाषा तो समझ न सके। यह घटना उन्होंने अपने अभिभावकों को सुनाई किन्तु इससे वे सहमत नहीं हुए। किन्तु ठीक एक माह बाद 13 जून को फिर एक अन्तरिक्ष यान आया उसमें से कुछ यात्री उतरे अबकी बार सम्मोहन किरणें जैसी फैंकी। बालकों से कुछ कहा। बालक समझे तो नहीं पर हाव-भाव से ऐसा लगा कि कह रहे हों कि “तुम बहुत अच्छे लगते हो। फिर 13 जुलाई को इस घटना की पुनरावृत्ति हुई।” अब यह बात सारा नगर जान चुका था। जो हजारों दर्शक उस स्थान पर जमा हो गये थे, उन्हें निराशा हाथ लगी। कुछ नहीं दिखाई दिया। अब अगली 13 तारीख के इंतजार में 70000 नगर निवासी नदी के किनारे जमा हो गये। थोड़ी ही देर में बादलों के बीच से कोई चौंधियाने वाली वस्तु आकाश से पृथ्वी की ओर आती दिखाई दी वह तेज घूमती तश्तरी नुमा कोई चाँदी जैसी धातु से निर्मित वस्तू थी। भीड़ के समक्ष उस दिन वह ठहरी नहीं। सूरज की तरफ जाकर लुप्त हो गई। देखने वालों का कहना था कि उसकी गति प्रकाश से भी अधिक थी। उन दिनों वैज्ञानिक प्रगति इतनी नहीं हुई थी अतः शोध की दिशा में कोई विशेष कदम नहीं उठे।

सन 1930 में प्लूटो ग्रह की खोज करने वाले अन्तरिक्ष विज्ञानी क्लाइड डब्लयू टाम्बा ने कहा था “मैंने व मेरी पत्नी ने उड़न-तश्तरियां आकाश में उड़ती देखी हैं। मैं उन पर, अंतर्ग्रही सभ्यता के अस्तित्व पर पूरा विश्वास रखता हूँ।” इंग्लैण्ड के अन्तरिक्ष विज्ञानी एच. पर्सी विल्किस ने भी 1935 में 500 फीट व्यास की उड़न तश्तरी देखने का विवरण ‘साईंस पत्रिका’ में दिया था।

अब वैज्ञानिकों के पास अन्तरिक्ष के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध है। अपने सौर-मण्डल में विद्यमान अनेकानेक ग्रहों पर वे जीवन की संभावनाएँ बताते हैं। यह अकारण नहीं हो सकता कि विकसित सभ्यता वाले अन्यान्य ग्रहवासी इस छोटे से ग्रह पृथ्वी के बारे में जानने को उत्सुक न हों। जब मनुष्य चन्द्रमा पर जा सकता है एवं चैलेन्जर, सोयुज-सैल्यूत यानों द्वारा अन्तरिक्ष में प्रयोगशाला खड़ी कर सकता है, अन्य ग्रहों के निवासी अपने यान यहाँ क्यों नहीं भेज सकते? अभी-अभी ‘नेचर’ एवं ‘साइंस’ पत्रिका में छपे प्रख्यात एस्ट्रोफिजीस्ट प्रो. कोनाल्ड ब्रेस के एक लेख के अनुसार “आने वाले रेडियो संदेशों से निश्चित ही पता लगता है कि दिक्-काल की परिधि से ऊपर विकसित सभ्यता वाले ग्रह पिण्ड हैं, जहाँ जीवन है। बरमूडा त्रिकोण जैसे स्थानों से संभवतः नमूने के रूप में पृथ्वी वासियों को- उनके यानों को परीक्षण के लिये वे ले जाते हैं।” कुछ भी हो, हमें अकेले के ही सौर मण्डल वासी होने का गर्व नहीं करना चाहिए अभी जानकारी नहीं मिली तो अर्थ तो निकलता नहीं कि ऐसी एक और पृथ्वी का या कई जीवनधारी ग्रहों का अस्तित्व ही नहीं है। ये घटनाएँ इसी की साक्षी हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118