आहार और विहार के सम्मिश्रण से ऊर्जा उत्पन्न होती है। उसे कहीं न कहीं नियोजित करना पड़ता है। न करने पर व्याकुलता उत्पन्न होती है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर ये छह द्वार ऐसे हैं जो मन पर आच्छादित होते हैं और शरीर द्वारा इन कृत्यों को किसी न किसी प्रकार पूरा करा लेते हैं। सामर्थ्यवान व्यक्ति यदि विचार ऊर्जा को किन्हीं उत्कृष्ट कार्यों पर व्यय न करें तो फिर उन्हें इन्हीं आकर्षक कामों में अपने शारीरिक क्रिया-कलापों को नियोजित करना होता है। कलुष-कषाय प्रत्येक सामर्थ्यवान के भीतर कुलबुलाते रहते हैं।
इनका निष्कासन किसी न किसी प्रकार किये बिना चैन नहीं पड़ता। निष्कासन किस प्रकार किया जाये इसके तीन उपाय हैं- भोग, प्रताड़ना और रेचन। स्वेच्छाचारी आधुनिक मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मनोविकारों को भोगने की पूरी छूट दी जाये। जो जिस प्रकार अपनी वासना तृप्त कर सके, करे। इसमें रोकथाम न लगाई जाये। रोकने से मानसिक ग्रंथियां बनती हैं, मनोविकार बढ़ते हैं। फलतः शारीरिक और मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं। उनके अनुसार निरोग होने के लिए कामुकता आदि विकारों को तृप्त करने का अवसर निकालना चाहिए।
इसके अतिरिक्त दूसरा उपाय है- प्रताड़ना। बुरे विचार सोचने या कुकर्म करने के लिये आतुर व्यक्ति को राजनैतिक या सामाजिक प्रताड़ना का प्रबन्ध किया जाये। उनके भय से व्यक्ति डरता है। प्रताड़ना की पीड़ा भी व्यथित करती है। बेइज्जती होने, इच्छित प्रयास में व्यवधान पड़ने से अक्ल ठिकाने आ जाती है और कुकर्म करने की इच्छा चली जाती है। वैसे विचार मन में से उतर जाते हैं। इतना ही नहीं, दूसरे लोग भी जो इस मार्ग पर चलना चाहते हैं, उस प्रताड़ना के दंड से भयभीत होकर वैसा विचार छोड़ देते हैं। पर कठिनाई एक ही है कि अदालत में अपराध सिद्ध हो अथवा समाज का संगठित प्रताप ऐसा हो जो कुकर्मी को उपयुक्त दण्ड दे सके। आमतौर से चतुर व्यक्ति इन दोनों ही तरीकों से अपने को बचा ले जाते हैं।
तीसरा उपाय है- रेचन। रेचन जुलाब को कहते हैं। दस्त होना अर्थात् विरेचन। मन में कुविचार चढ़ रहे हों तो स्वाध्याय या सत्संग से ऐसे विचार मन में लाए जायें जो कुविचारों की प्रतिक्रिया समझा सकें और मन को उन्हें त्यागने के लिए स्वेच्छापूर्वक सहमत कर सकें। अन्यान्यों द्वारा कुमार्ग पर चलने में जो हानियां उठाई गईं, उसकी घटना उदाहरण सामने प्रस्तुत करने पर विवेक पूर्वक भी मनुष्य अपना रास्ता बदल लेता है। जिन लोगों ने कुमार्ग के स्थान पर सन्मार्ग में शक्ति का नियोजन किया और प्रशंसा प्राप्त की, उन घटनाओं को समझने या समझाये जाने से भी मनुष्य विचार बदल देता है। इसी का नाम रेचन है।
कुमार्ग की तरफ सामान्य जनों की ऊर्जा अनायास ही उमड़ पड़ती है। पानी का स्वभाव नीचे की ओर बहना है। पर प्रयत्न करने पर ऊँचा भी उठाया जा सकता है और उपयोग में भी लिया जा सकता है। यह उपाय भी सम्भव है। शक्ति का जैसे ही भीतर से उभार हो, वैसे ही यह सोचना आरम्भ कर दिया जाये कि इसका श्रेष्ठ काम में नियोजन करके यशस्वी और मनस्वी लोगों की गणना में अपने को कैसे बिठाया जा सकता है। चिन्तन की दिशा यदि इस ओर मोड़ी जा सके तो कुकर्म करके जितना पुरुषार्थ प्रकट किया जा सकता है, उससे भी अधिक यश अच्छे कामों में अपनी आन्तरिक ऊर्जा को नियोजित करके लाभान्वित हुआ जा सकता है। अपने को लाभान्वित करने व सम्पर्क क्षेत्र में आने वालों को लाभ देने के लिए यही श्रेष्ठ तरीका है। पर तैयारी पहले से ही कर लेनी चाहिए। पराक्रम हेतु जब शरीर और मन में उमंग उठे तो तभी से यह सोचना होगा कि इस ईश्वरीय वरदान को सत्प्रयोजन में लगाने की योजना बनायी जाये।