आज की परिस्थितियों में सबसे बड़ी आवश्यकता है- जन साधारण के नैतिक स्वास्थ्य में सुधार की। जब तक उस दिशा में प्रखर प्रयास नहीं किये जाते, सारे बहिर्मुखी उपचार व्यर्थ हैं। दुर्भावना एवं कुविचारों का घुन समाज को धीरे-धीरे नष्ट करता चला जा रहा है। सूक्ष्मीकरण साधनाजन्य तीसरा वीरभद्र उस प्रचण्ड पुरुषार्थ में जुटेगा जिसे विचारों की विचारों से काट, नैतिक बौद्धिक क्रान्ति नाम दिया गया है।
आवेश में आदमी एक बार कुछ भी कर सकता है किन्तु निरन्तर छोटे-बड़े कामों में आदर्शों का समावेश करते रहना मात्र सिद्धान्तवादियों का काम है।