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November 1984

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आयुर्वेद ऋषि प्रणीत चिकित्सा विधा है, जो आज उपेक्षा के गर्त्त में पड़ी सिसक रही है। वैज्ञानिकता के इस युग में इसका पुनर्जीवन अपरिहार्य है ताकि पीड़ित मानवता को विराट वनौषधि समुदाय के माध्यम से राहत दी जा सके। रोग के निदान एवं औषधि के परीक्षण हेतु आधुनिक एवं चिकित्सा हेतु पुरातन सिद्धान्तों का समन्वय कर निश्चित ही एक तथ्य सम्मत प्रामाणिक चिकित्सा पद्धति विकसित की जा सकती है जो मनुष्य को सर्वांगपूर्ण विकास की ओर अग्रसर करे।


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