क्रोध की चुनौती (kahani)

November 1984

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

वन बिहार के लिये वासुदेव, बलदेव और सात्यकि अपने घोड़ों पर चढ़कर निकले। रास्ता भटक जाने से वे एक ऐसे वन में जा फंसे जिसमें न पीछे लौटना सम्भव था, न आगे बढ़ना। निदान रात्रि एक पेड़ के नीचे बिताने का निश्चय किया। घोड़े बाँध दिये गये। तीनों ने एक-एक प्रहर पहरा देने का निश्चय किया ताकि सुरक्षा होती रहे और दो साथी होते रह सकें।

पहली पारी सात्यकि की थी। वे जागे, दो सो गए। इतने में पेड़ से एक पिशाच उतरा और मल्लयुद्ध के लिए ललकारने लगा। सात्यकि ने उसके कटु वचनों का वैसा ही उत्तर भी दिया और घूँसे का जवाब लात से देते रहे। पूरे प्रहर मल्लयुद्ध होता रहा। सात्यकि को कई जगह चोट लगी, पर उस समय साथियों से उस प्रसंग की चर्चा न करके सो जाना ही उचित समझा। अब बलदेव के जगने की बारी थी पिशाच ने उन्हें भी चुनौती दी। जवाब में वैसे ही गरमागरम उत्तर मिले। प्रेत का आकार और बल पहले की तरह ही बढ़ता रहा और बलदेव की बुरी तरह दुर्गति हुई। दूसरा प्रहर इसी प्रकार बीत गया।

तीसरी पारी वासुदेव की आई। उन्हें भी चुनौती मिली। वे हंसते हुए लड़ते रहे और कहते रहे- बड़े मजेदार आदमी हो तुम। नींद और आलस से बचाने के लिए मित्र जैसा मखौल कर रहे हो।

पिशाच का बल घटता गया आकार भी छोटा होने लगा। अन्त में वह झींगुर जैसा छोटा रह गया तब वासुदेव ने उसे दुपट्टे के एक छोर से बाँध लिया।

प्रातः नित्यकर्म से निपटकर जब चलने की तैयार होने लगी तो सात्यकि और बलदेव ने पिशाच से मल्लयुद्ध होने की घटना सुनाई और चोटों के निशान दिखाये। वासुदेव हंसे और पिशाच को दुपट्टे के छोर में से खोलकर हथेली पर रख लिया।

आश्चर्यचकित साथियों को देखकर वासुदेव ने बताया- वह प्रेत पिशाच और कोई नहीं ‘क्रोध’ था। जो वैसा ही प्रत्युत्तर देने पर बढ़ता और उग्र होता है पर जब उपेक्षा की जाती है तो दुर्बल और छोटा हो जाता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles