शाकाहार और निद्रा का पारस्परिक सम्बन्ध

November 1984

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महाचुसेट्स इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी, के ‘सेन्टर फॉर ब्रेन साइन्सेज एण्ड मेटाबॉलिज्म’ प्रभाग द्वारा शाकाहार और माँसाहार पर किये गये अध्ययनों से ज्ञात होता है, कि माँसाहार हमारे शरीर फिजियोलॉजी के अनुकूल नहीं है, यह शरीर को बुरी तरह अस्त-व्यस्त व सुस्त बना देता है। शरीर के अंतर्गत स्रवित होने वाले विभिन्न प्रकार के हारमोनों तथा एन्जाइमों पर यह प्रतिकूल प्रभाव डालता एवं उनकी मात्रा को असामान्य बना देता है, जिससे तरह-तरह की गड़बड़ियाँ फैलने लगती हैं, जो अन्ततः रोग का निमित्त कारण साबित होती हैं।

प्रयोगों के दौरान पाया गया है कि माँस-भक्षण से हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा असामान्य रूप से बढ़ जाती है, जो अंततोगत्वा हृदय रोग का कारण बनती है।

अध्ययनों में देखा गया है कि आहार न सिर्फ शरीर को प्रभावित करता है वरन् मस्तिष्क से स्रवित होने वाले हारमोनों की मात्रा को प्रभावित कर शरीर के अन्दर चलने वाली विभिन्न प्रकार की फिजियोलॉजिकल गतिविधियों को भी प्रभावित करता है। इस संदर्भ में अध्ययन फिलाडेल्फिया विश्वविद्यालय के डॉ. बर्टमन व उनके साथियों ने आज से दस वर्ष पूर्व आरम्भ किया था। पशुओं पर किये गये प्रयोगों में उनने पाया कि आहार की प्रकृति मस्तिष्क के जैव रासायनिक तत्वों यथा- सेरोटोनिन, डोपामिन, नारएपिनेफ्रिन, एसिटाइलकोलिन, हिस्टामिन तथा ग्लाइसिन के संश्लेषण को बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है। प्रयोगों में देखा गया है कि विभिन्न शरीर-क्रिया-प्रणाली के अतिरिक्त माँसाहार निद्रातंत्र को भी प्रभावित करता है तथा व्यक्ति में उनींदापन लाता है।

हार्वड विश्वविद्यालय के बोनीस्प्रिंग एवं उनके सहयोगियों ने एक प्रयोग के दौरान 184 व्यक्तियों में से आधे को उच्च कार्बोहाइड्रेट युक्त पदार्थ का शाकाहार तथा शेष आधे को माँसाहार दिया। भोजन के कुछ काल पश्चात सभी व्यक्तियों को कुछ विशेष निर्देश दिये गये और उन्हें पालन करने का उनको आदेश दिया गया। प्रयोग के मध्य पाया गया कि जिन व्यक्तियों ने उच्च कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार ग्रहण किया था, उनमें से 85 प्रतिशत लोग निर्देश परिपालन में असफल रहे, जबकि माँसाहार लेने वाले शत-प्रतिशत व्यक्तियों को प्रयोग में सफलता मिली। प्रयोग के उपरान्त जब उनसे असफलता का कारण पूछा गया, तो उनने एक स्वर से कहा कि भोजनोपरान्त उन्हें अत्यन्त शान्ति का आभास हुआ, जम्हाई आने लगी और तदुपरान्त निद्रा ने धर दबोचा। इसी कारण वे निर्देश का पालन नहीं कर सके। इसके विपरीत जब माँसाहारियों से तत्सम्बन्धी पूछताछ की गयी, तो उनका कथन इसके ठीक विपरीत पाया गया। सभी ने उनींदेपन व थकावट की शिकायत की। इस पर वैज्ञानिकों ने जब माँस पर परीक्षण किया, तो पाया कि माँस में पाया जाने वाला प्रोटीन की उच्च मात्रा ही इसके लिए जिम्मेदार है।

ज्ञातव्य है, कि माँस में विद्यमान प्रोटीन दाल में पाये जाने वाले प्रोटीन से कुछ भिन्न होता है, जिससे इसका पाचन भली-भाँति नहीं हो पाता। साथ ही माँस प्रोटीन की अति उच्च मात्रा के कारण रक्त व मस्तिष्क में एक विशेष रसायन की अभिवृद्धि होने लगती है। ‘टायरोसिन’ नामक यह रसायन मस्तिष्क की क्रियाशीलता को बढ़ा देता है, अस्तु नींद में बाधा उत्पन्न होती है और व्यक्ति उनींदापन महसूस करता है।

सन् 1970 में कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोध विज्ञान हर्टमन ने इस तथ्य को परखने के लिए एक प्रयोग किया। सन्ध्याकाल में स्वस्थ व्यक्तियों के दो दलों पर प्रयोग किया। कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार सेवन करने वाले व्यक्ति माँसाहारियों की तुलना में दो घण्टे अधिक व गहरी नींद सोये। उठने के बाद वे तरोताजा थे।

हार्वड मेडिकल स्कूल के माइकल योगमन महिलाओं के दूध पर शोध कार्य कर इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं, कि भिन्न-भिन्न महिलाओं के दूध में विद्यमान कार्बोहाइड्रेट की भिन्न-भिन्न मात्रा शिशुओं की निद्रावधि को उसी अनुपात में प्रभावित करती है।

एल-ट्रिप्टोर्फेन के माध्यम से शरीर तन्त्रिका कोशाओं में एक अन्य रसायन का निर्माण करता है। यह ‘सेरोटोनिन’ कहलाता है। सेरोटोनिन तन्त्रिका तन्त्र के सम्पूर्ण क्रिया-कलापों को नियन्त्रित करने के साथ-साथ मानसिक क्षमताओं को भी प्रभावित करता है। चूँकि न्यूरान सेल्स ही नींद नियंत्रक रसायन सेरोटोनिन स्रवित करते हैं, इसलिए नींद नहीं आने की बीमारी न्यूरान सेलों की क्षति से सीधे सम्बद्ध है। इसकी क्षति पूर्ति सेरोटोनिन की अतिरिक्त मात्रा लेकर की जा सकती है जो दूध एवं शाकाहार से पूरी हो सकती है।

एक प्रयोग के दौरान शोधकर्मी वैज्ञानिकों ने जब पशुओं के मिडब्रेन रेफ की न्यूरान कोशिकाओं को नष्ट कर दिया तो उनकी निद्रावधि में काफी कमी पायी गई। जब वैज्ञानिकों ने पशुओं को एक ऐसे रसायन का इन्जेक्शन दिया, जो सेरोटोनिन संश्लेषण को अवरुद्ध करता था, तो निद्राकाल और भी कम होता देखा गया।

इस प्रकार अब यह निर्विवाद रूप से साबित हो चुका है, कि नींद को नियन्त्रित करने वाला पदार्थ मस्तिष्क में स्रवित होने वाला सेरोटोनिन ही है। अध्ययनों से यह भी ज्ञात हुआ है कि सेरोटोनिन एक अच्छा दर्द निरोधक रसायन भी है। यह एनकेफेलीन समूह के तनाव शामक एन्जाइमों का सहयोगी है। टेम्पल विश्वविद्यालय के डोरोथी डीवर्ट व उनके सहयोगियों ने सिर व गर्दन के चिरकालिक दर्द से पीड़ित रोगियों को जब टिप्टोफैन प्रदान किया, तो दर्द में आश्चर्यजनक कमी पायी गयी।

इस तरह सेरोटीनिन नींद व दर्द नियंत्रण की दोहरी भूमिका सम्पादित करता है। प्रयोग-परीक्षणों में देखा गया है कि माँसाहार में विद्यमान प्रोटीन की अति उच्च मात्रा इस रसायन को उद्दीप्त नहीं कर पाती। जबकि चावल, रोटी, आलू एवं विभिन्न प्रकार की हरी शाक-सब्जियों का कार्बोहाइड्रेट सेल्युलोज युक्त आहार इस कमी की भली भाँति पूर्ति करता है और शरीर के लिए आवश्यक परिणाम में सेरोटोनिन संश्लेषित करता है।

शाकाहार का दूसरा लाभ यह है कि इससे पाचन संस्थान पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता और विभिन्न प्रकार के तत्वों का सरलतापूर्वक पाचन हो जाता है। इससे शरीर को सभी आवश्यक तत्व भी मिल जाते हैं और सभी शरीर तन्त्र सन्तुलित नियन्त्रित बने रहते हैं। इसी कारण आहार शास्त्री निरामिष आहार पर जोर देते देखे जाते हैं। इसी कारण हमारे प्राचीन ऋषियों ने इसका अवलम्बन लिया और उनके सुखी-स्वस्थ जीवन का यही राज था। आज के बढ़ते माँसाहार प्रचलन एवं मनोरोगों का उपचार एक ही हो सकता है कि शाकाहार के समर्थन में जनमत जुटाया जाए।


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