भूत-प्रेतों के कहानी किस्से मूलतः अन्ध विश्वासियों द्वारा कहे सुने जाते हैं, इसलिए वे अविश्वसनीय एवं किम्वदंती जैसे माने जाते हैं। किन्तु कई बार सुशिक्षित समझदारों एवं सम्भ्रान्त व्यक्तियों की साक्षी में ऐसी घटनाएं सामने आती हैं तो इनकी यथार्थता पर अविश्वास करना कठिन हो जाता है।
अमेरिका के पश्चिमी छोर पर लॉस ऐंजेल्स महानगर में हालीवुड नामक सुप्रसिद्ध फिल्म नगरी है। यहाँ कितने कलाकारों एवं संचालकों का बाहुल्य है। सभी सुशिक्षित एवं सुसम्पन्न वर्ग के हैं एवं कला की सुरुचिपूर्ण महत्ता के पक्षधर हैं। वे लोग झूठे किस्से कहानियां गढ़ेंगे, भ्राँतियाँ फैलाएंगे ऐसा मानने को जी नहीं करता।
इस नगरी में कई मकान अभिशप्त माने जाते हैं एवं प्रेतों के उत्पात के कारण उनमें रहने को बहुसंख्य व्यक्ति सहमत नहीं होते। उनमें आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं जिन्हें प्रेतों की करतूत के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता। इस अच्छे खासे मोहल्ले में मकान ढेरों खाली पड़े हैं। जिस उपनगर में स्थान प्राप्त करने के लिए लोग तरसते हैं, उसमें कुछ मकान मात्र इसी कारण लावारिस पड़े रहे कि उनमें प्रेतों का निवास है, सचमुच आश्चर्य की बात है।
इस नगरी में एक नृतत्वविज्ञानी रहते हैं। नाम है- रिचर्ड सीमेट। उन्होंने ऐसे अभिशप्त मकानों में घटित होने वाली असाधारण घटनाओं का स्वयं अन्वेषण किया है और साक्षी में ऐसे लोगों को लिया है जिन्हें अन्धविश्वासी या अप्रामाणिक नहीं का जा सकता। इन मकानों में यदा-कदा घटित होने वाले घटनाक्रमों की जानकारी इन लोगों के माध्यम से वैज्ञानिक जगत के समक्ष प्रस्तुत की है और इस बात की जाँच-पड़ताल कराई है- कि कोई छल-कपट तो इसके पीछे नहीं है। कई बार कौतूहल फैलाने के लिए भी कुछ व्यक्ति ऐसी अचम्भे वाली घटनाओं की चर्चा करने लगते हैं। किन्तु जब इनकी बारीकी से जाँच पड़ताल की जाती है तो पोल खुल जाती है और कोई प्रपंच रच गया होता है तो वह खुलकर सामने आ जाता है। इस सम्भावना के स्पष्टीकरण हेतु श्री सीमेट ने अपने साथ लॉस ऐंजेल्स के प्रामाणिक अखबारों के पत्रकार भी साथ लिए और हालीवुड के कई मकानों में समय-समय पर घटित होने वाली प्रेत लीलाओं की तर्क सम्मत जाँच पड़ताल आरम्भ की।
ऐसे मकानों में 911, आक्सफोर्ड, 10001 नार्थ आक्सफोर्ड ड्राइव, 1143 सम्मिट ड्राइव, 10050 सीपली ड्राइव, 1433 वेलाड्राइव 9820 ईस्टर्न ड्राइव आदि कई हैं, जिनमें रात्रि के समय, प्रत्यक्ष कोई प्रतिभाएं न दीखते हुए भी उनके द्वारा किये जाने वाले कृत्यों को प्रत्यक्ष आभास मिलता है। हंसना, रोना, उछलना, कूदना, धमाचौकड़ी, वस्तुओं का उठना-गिरना, सामान को बिखेरना- समेट देना- बटोर लेना जैसी घटनाएं यह बताती हैं कि यहाँ अदृश्य मानवों की उपस्थिति काम कर रही है। वे या तो आपस में लड़ते-झगड़ते हैं, मद्यपान करते दिखाई देते हैं अथवा गाली गलौज देते, अवाँछनीय कृत्यों में निरत देखे जाते हैं। सभी कृत्य ऐसे है जिन्हें असभ्य, अनगढ़, बेतुके व्यक्ति शिष्टाचार का उल्लंघन करते देखे जाते हैं। उनकी उपस्थिति एवं हरकत का परिचय इस आधार पर मिलता है कि वस्तुएं हिलती डुलती हैं, विचित्र आवाजें आती हैं, छतों या दीवारों पर धमाचौकड़ी होने से इमारतों में हलचल का आभास होता है। फर्नीचर तथा छोटी-बड़ी वस्तुएं लड़खड़ाती इधर-उधर हटती, इकट्ठी होती हैं। यह सब बिना मनुष्यों की उपस्थिति तथा हरकत किए बिना नहीं हो सकता। इतने पर भी आश्चर्य इस बात का है कि हरकतें करने वाले मनुष्यों की उपस्थिति का आभास मिलते हुए भी उनका दृश्य आकार नहीं प्रत्यक्षीकृत होता एवं परोक्ष पर विश्वास न करने वालों को हतप्रभ कर देता है।
मात्र इन्हीं मकानों में ये उपद्रव किसलिए होते हैं, इसका इतिहास ढूंढ़ निकालने पर विदित हुआ है कि इन मकानों में प्रकारान्तर से भूतकाल में कभी न कभी हत्याएं, आत्म-हत्याएं, मारधाड़, उपद्रव, चोरी, डकैती, बलात्कार, व्यभिचार जैसे दुष्कर्म होते रहे हैं। कुख्यात अपराधियों के ये अड्डे बने रहे हैं। सम्बन्धित व्यक्ति इन दुष्कर्मों के कारण पीड़ित होते रहे हैं। उन घटनाओं की पुनरावृत्ति करने अथवा बदला चुकाने, रिहर्सल करने जैसी कोई बातें रही होंगी, जिस कारण उस प्रकार की उठा-पटक का आभास मिलता है।
जो व्यक्ति इस उठा-पटक को देखने उन मकानों में जाते हैं, उन्हें डराने-भगाने के उद्देश्य से उपद्रवों की गतिविधियाँ तेज हो जाती हैं और जब दर्शक लोग वहाँ से चले जाते हैं, तो उठा-पटक धीमी पड़ जाती है और लगता है कि अब वे लोग निर्भय होकर शान्तिपूर्वक अपनी हरकतें कर रहे हैं।
जब-जब भी किन्हीं साहसी व्यक्तियों ने इन मकानों को स्थायी निवास हेतु लेने का प्रयत्न किया है, तब तब उपद्रव बढ़ गए हैं और ऐसा लगा है कि उन्हें अज्ञात उपद्रवियों द्वारा जिनकी धूमिल आकृति सामान्य मनुष्यों जैसी ही मिलती-जुलती है, उठाया-धकेला या खदेड़ा जा रहा है। ऐसे उपद्रवों के बीच किसी का ठहरना कठिन पड़ता है और जैसे-तैसे करके जान-बचाते हुए भागते ही बनता है। इन परिस्थितियों में वे मकान मुद्दतों से खाली पड़े हैं। कुछ हिम्मत वालों ने चार-चार छह-छह की मण्डली बनाकर वहाँ पैर जमाने का प्रयास किया है, पर हर बार असफलता ही हाथ लगी है। फलतः सर्वत्र यह बदनामी हो चुकी है कि इन मकानों में रहना खतरे से खाली नहीं है।
इन मकानों में होने वाली हरकतों और सम्बन्धित पूर्व घटनाओं की खोज करने हेतु इतिहास विशेषज्ञ, नृतत्व विज्ञानी प्रो. रिचर्ड सीमेट बड़ी दिलचस्पी के साथ इन्हीं मकानों के इर्द-गिर्द डेरा डाले रहते हैं। जिन्हें भूत प्रेतों की लीलाओं को देखने की दिलचस्पी होती है, उन्हें इनमें से किसी मकान की चाबी मालिकों से प्राप्त कर जितनी देर हरकतें देखने की इच्छा हो, दिखाकर वापस लौटा देते हैं। प्रवेश करने वाले हिम्मत वाले रहे हैं तो बिना घबराए सब कुछ देख-सुनकर लौट आए हैं जो डर के मारे परेशानी होती है, वह बात दूसरी है पर धक्का-मुक्की-मारपीट जैसी हानि किसी को नहीं उठानी पड़ी।
एक बार उनके साथ एक पत्रकार एक प्रेत ग्रस्त मकान में गए और उन्होंने जो कुछ वहाँ देखा, उसे थोड़ी देर के अनुभव को अपने अखबार में छापा भी। पढ़ने वालों के अनेकों पत्र रिचर्ड के पास आए जिनमें से अधिकाँश प्रत्यक्षतः इस प्रेत लीला को देखना चाहते थे एवं परोक्ष जगत मरणोत्तर जीवन पर विश्वास रखते थे। प्रो. रिचर्ड सीमेट के लिये तो प्रेत विद्या शोध का विषय है। दिलचस्पी रखने वालों को वे अपने अनुभव सुनाते हैं तथा प्रेतों के क्रिया-कलापों के माध्यम से अपने वर्तमान जीवन को सुधारने की शिक्षा भी देते हैं। प्रेतों से संपर्क साधना उनकी हॉबी के रूप में विकसित हो गया है।
अमेरिका की तुलना में इंग्लैण्ड में प्रेतों पर विश्वास रखने वालों की संख्या अधिक है। राजघराने के समस्त पुराने किले (कैसल्स) वहाँ अभिशप्त बताये जाते हैं। 9 वीं से लेकर 18 वीं शताब्दी तक बने ऐसे अनेकों किले हैं जिनमें प्रेत लीला का ताण्डव नृत्य देखा- अनुभव किया गया है। ऐसा ही चिलहम नामक 12 वीं शताब्दी का बना एक किला उ. इंग्लैण्ड में है जहाँ अक्सर फिल्मों की शूटिंग हुआ करती है। रात्रि में सामान्यतया वहाँ कोई नहीं ठहरता। एक बार एक नर्तकी किमनोवाक रात्रि विश्राम हेतु वहीं रुक गयी। उस दिन रात्रि को उन्होंने एक विचित्र धुन सुनी और ऐसा लगा बलात् कोई उन्हें पकड़कर नृत्य करने पर विवश कर रहा हो। घबराकर वे बीच शूटिंग से लौट आईं। आस-पास वालों ने बताया कि इस किले का शासक किंग जान द्वितीय था जो दुश्मनों द्वारा पीछा किये जाते समय यहीं खाई में डूबकर 11 अक्टूबर 1216 ई. को मर गया था। तभी से ऐसे घटनाक्रम होते रहते हैं।
मरणोत्तर जीवन पर विश्वास रखने वालों के लिये तो ऐसे लीला प्रसंग अविश्वसनीय नहीं लगते। विज्ञान जगत के लिये ये चुनौती अवश्य बन जाते हैं। अभी उस आयाम की जानकारी वैज्ञानिकों को नहीं हो पायी है, जिसमें ऐसी प्रेत लीलाएं घटती रहती हैं।