अभागा हीरा

November 1984

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कोहिनूर हीरे की अभिशप्त कथा सर्वविदित है। वह जहाँ भी रहा है वहाँ सर्वनाश के बीज बोकर आगे बढ़ा है। अब दूसरे ऐसे ही एक ओर हीरे की गाथा सामने आई है। वह भी दुर्भाग्यपूर्ण होने में कोहिनूर से किसी प्रकार कम नहीं है।

इसे अब से 500 वर्ष पूर्व किसी ने नर्मदा तट पर वेंकट भगवान के मुकुट में लगाने के लिए चढ़ाया था। पुजारी के मन में लालच आया। उसने उसे उड़ा लिया। भक्तजनों को पता चला तो उनने पत्थर मार कर उसके प्राण ले लिए।

इसके बाद तस्करों द्वारा उसे फ्राँस पहुँचा दिया गया। जिनके हाथ में वह पड़ा वे एक दिन जंगल में फँस गये और जंगली कुत्तों के शिकार बन गये। फ्राँस के राजा के पास यह हीरा था। एक दिन दरबारी ने उसे पहनने के लिये उधार माँगा। घर से बाहर निकला ही था कि एक षड़यंत्र का शिकार हो गया और जान गंवा बैठा। इसके बाद वह लुई 14 फ्राँस के बादशाह के हाथ आया। वह भी ज्यादा दिन उसे पहन न सका। राजकुमारी को उसे पहनने का शौक था। वह भी कुछ ही दिनों में षड्यंत्रकारियों के चंगुल में फंस गई और मारी गई।

वहाँ से हीरा दूसरे ने उड़ाया। वहाँ भी वह बहुत दिनों तक पहना नहीं जा सका और षड्यंत्रकारियों का शिकार हो गया। यहाँ से एक जौहरी के हाथ लगा। उसने ऊँची कीमत पर बेचा। पर जिसने खरीदा था वह भी उसे अपने कब्जे में बहुत दिन न रख सका। शत्रुओं ने उसे भी बन्दूक का निशाना बना दिया।

इसके बाद यह हीरा घूमते-घूमते फ्राँस के राजा लुई 16 के हाथ पहुँचा। उसे उसने अपनी बीवी को दे दिया। दोनों के बीच भारी मुहब्बत थी। पर वह मुहब्बत जरा सी तू-तू मैं-मैं होने पर समाप्त हो गई और राजा ने रानी को गोली मार दी।

इसे राजकुमारी बड़े चाव से पहनती थी कि उसे भी प्रेम प्रसंग में जान गंवानी पड़ी। अब यह हीरा महारानी कैथराइन के हाथों पहुँचा। सन् 1980 की राजक्रान्ति में इसके समूचे परिवार का कत्ल कर दिया गया।

इसके बाद एक दो जगह और यह बिका अन्त में एक ऐसे जौहरी के पास पहुँचा जो उसे बहुत प्यार करता था। उसकी खूबसूरती पर मुग्ध था। दिनभर आँखों के आगे रखता। उसकी सुन्दरता थी ही ऐसी।

किन्तु जब से उसे हीरे का इतिहास मालूम पड़ा तो वह डर गया। उसने उसे अमेरिका के राष्ट्रपति संग्रहालय में सुरक्षित रखवा दिया। अब वह होप डायमण्ड के नाम से वहीं सुरक्षित है।

जिन वस्तुओं के साथ जितने लोभ, लालच, अपहरण, षड्यंत्र जुड़ते हैं वह उतनी ही उन भावनाओं से अभिशप्त हो जाती है। कोहिनूर हीरे का इतिहास ऐसी ही है। वह जितने भी लोगों के पास गया और रहा है उसको बेमौत मरना पड़ा है। होप डायमंड का दूसरा इतिहास ठीक उसी प्रकार का सामने आया है। बहुमूल्य होने के कारण हर किसी का मन उसे कब्जे में रखने के लिए ललचाता रहा है। ऐसी कीमती वस्तुएं प्रायः खरीदी बेची नहीं जातीं, उसका अपहरण किया जाता है, वह भी चुपचाप उसे सौंपता कहाँ है? जान रहते वह भी उसे अपने कब्जे में बनाये रखना चाहता है।

षड़यंत्र, दुरभि सन्धियाँ जुड़ते-जुड़ते वह वस्तु अभिशप्त हो जाती है। दुर्भावनाएं उस वस्तु से भी जुड़ जाती हैं। फलतः वह वस्तु जहाँ भी रहती है ऐसे ही कुचक्र आरम्भ कर देती है।

अन्तिम जौहरी ने बुद्धिमत्ता का काम किया कि उसे किसी के अधिकार में नहीं रहने दिया, राष्ट्रीय संग्रहालय में जमा कर दिया। वस्तु भी सुरक्षित रही और उसके कारण जो आये दिन दुर्घटनाएं होती थीं, उससे भी बचाव हो गया।


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