एक सिद्ध पुरुष नदी में स्नान कर रहे थे। एक चुहिया पानी में बहती हुई आई। उनने उसे निकाल लिया। कुटिया में ले आये और वहीं वह पलकर बड़ी होने लगी।
चुहिया सिद्ध पुरुष की करामातें देखती रही, सो उसके मन में भी कुछ वरदान पाने की इच्छा हुई। एक दिन अवसर पाकर बोली- मैं बड़ी हो गई, किसी बड़े से मेरा विवाह करा दीजिए।
सन्त ने उसे खिड़की में से झाँकते सूरज को दिखाया और कहा- इससे करा दें। चुहिया ने कहा- यह तो आग का गोला। मुझे तो ठंडे स्वभाव का चाहिए। सन्त ने बादल की बात कही- वह ठंडा भी है और सूरज से बड़ा भी। वह आता है तो सूरत को आँचल में छिपा लेता है। चुहिया को यह प्रस्ताव भी रुचा नहीं। वह इससे बड़ा दूल्हा चाहती थी।
सन्त ने पवन को बादल से बड़ा बताया जो देखते-देखते उसे उड़ा ले जाता है। इससे बड़ा पर्वत बताया जो हवा को रोककर खड़ा हो जाता है। जब चुहिया ने यह दोनों भी अस्वीकार कर दिये तो सिद्ध पुरुष ने पूरे जोश के साथ कहा- चूहा पर्वत से बड़ा है, वह बिल बनाकर पर्वतों की जड़ खोखली करने और उन्हें इधर से उधर लुढ़का देने में समर्थ रहता है।
चुहिया रजामन्द हो गई। एक मोटा चूहा बुलाकर सन्त ने शादी रचा दी। उपस्थित दर्शकों को सम्बोधन करते हुए सन्त ने कहा- सुख और बड़प्पन की खोज लोग अपने स्तर और दृष्टिकोण के अनुरूप ही करते हैं।