बापू का उस दिन मौन व्रत था। वे प्रातःकाल आश्रम के बच्चों को साथ लेकर टहलने गए।
रास्ते में एक तीन इंच लम्बा सुई का टुकड़ा पड़ा दिखाई दिया। गाँधीजी ने एक छोटी लड़की से उसे उठा लेने का इशारा किया।
लड़की ने उसे उठा तो लिया पर उलट-पुलट कर देखने पर उसे निरर्थक पाया और आगे चलकर फेंक दिया।
शाम को मौन टूटा तो गाँधीजी ने लड़की से वह टुकड़ा माँगा। पर वह तो उसे निरर्थक समझकर फेंक चुकी थी। गाँधीजी नाराज हुए और ढूंढ़ लाने के लिये उसे भेजा।
टुकड़ा मिल गया और उसे साफ करके गाँधीजी ने सूत काता। और कहा- वस्तुओं का पूरा सदुपयोग करने की आदत सभी को डालनी चाहिए। बर्बादी हम तनिक भी न करें।