शब्द शक्ति के दुरुपयोग का दुष्परिणाम

November 1984

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शब्द की शक्ति सर्व विदित है। उससे भी अधिक है संगीत का प्रभाव। मन्त्र में प्रकारान्तर में शब्द ब्रह्म ओर नाद ब्रह्म का ही चमत्कार है। शब्द ब्रह्म अर्थात् कथन, नाद ब्रह्म अर्थात् गायन वादन। इनकी सामर्थ्य में कोई सन्देह नहीं। प्रश्न यह है कि क्या इनका मात्र श्रेष्ठ परिणाम ही होता है या हानिकार भी। शक्ति माने शक्ति। उसका भला और बुरा दोनों ही प्रतिफल हो सकता है। चाकू कलम बनाने, शाक काटने जैसे उपयोगी कामों ही आमतौर से उसका उपयोग होता है या हो यह भी सकता है कि किसी का अंग भंग करने के लिए उसका कुप्रयोग किया जाय।

कुछ समय पूर्व संगीत सर्व सुलभ नहीं था। कलावन्त कहीं दूर-दूर होते थे। फिर उन्हें भी आजीविका चाहिए। सुनने सुनाने के लिए उन्हें सम्पन्न व्यक्ति तलाश करने पड़ते थे। जिनके पास रोजी-रोटी के अतिरिक्त कलावन्तों को पालने के लिए समय और धन हो, ऐसे कहीं-कहीं जहाँ-तहाँ होते थे। ऐसी दशा में गायक वादक भी थोड़े ही होते थे। लाउडस्पीकर थे नहीं, सो सुनने के लिये दस-बीस की मण्डली ही जम पाती थी। उतनों से ही जिनकी आजीविका पूरी हो जाय, ऐसे गुणी लोग थोड़े ही होते थे।

देहाती भजन मण्डलियों के अतिरिक्त गुणी कलाकार कही-कहीं ही देखने सुनने को मिलते थे। ऐसी दशा में उनकी लाभ-हानि भी थोड़ों तक ही सीमित थी।

अब समय बदल गया। गायन-वादन का यन्त्रीकरण हो गया। ग्रामोफोन रिकार्ड, टेप रिकार्डर, फिल्म संगीत इस कदर व्यापक हुए हैं कि गली-कूँचों में उनकी धूम है। इनका विषय मात्र कामुकता है। प्रेमी, मैत्री, विछोह जैसी निम्न भावनाओं को उत्तेजित करने वाले यन्त्र गायन इतनी अधिक मात्रा विकसित हुए हैं कि रास्ता चलते वे जबरदस्ती कानों में घुस पड़ते हैं।

इस उथले संगीत का बाहुल्य जन-मानस में निरन्तर निकृष्टता भर रहा है। इस सुनने के लिए पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ता। कहीं गली-चौराहे पर खड़े हो जाइए, प्रेम गीत अनायास ही सुनने को मिलेंगे। छोटे, बड़े बच्चे इन्हें याद कर लेते हैं। बड़ों को तो वे भली प्रकार याद हैं। इसका प्रभाव पड़े बिना रहता नहीं। छवि समेत गाने सुनने हों तो सिनेमा मौजूद हैं। रिक्शा चलाने वाले भी दो रुपये का टिकट लेकर ढाई घण्टे अश्लील दृश्य देखते और मजे में गाने सुनते हैं।

लगातार इन गीतों के सुनने का प्रभाव मस्तिष्क को अवाँछनीय ढाँचे में ढालता है। इतना ही नहीं उनसे मनोविकार और मनोरोग भी उत्पन्न होते हैं। चिन्तन, चरित्र और व्यवहार पर असर पड़ता है। कामुकताजन्य अपराधों की इन दिनों धूम है। चोरी ठगी, डकैती जैसे अपराधों की तुलना में कामुकता के अपराध कहीं अधिक बढ़ते जा रहे हैं। यह छूत की बीमारी एक से दूसरे को लगती है। दूसरे से तीसरे को। धीरे-धीरे सारे समाज का मानसिक और नैतिक स्वास्थ्य बिगड़ता जाता है।

सिनेमा के गायकों को प्रत्यक्ष देखने और उनके मुँह से गाने सुनने के लिए महंगी टिकट वाले संगीत सम्मेलन की धूम रहती है। निकृष्ट चिन्तन का प्रतिफल मनोविकार और मनोरोगों के रूप में बढ़ता जा रहा है। कामुकता के विचार इतने सुलभ और सस्ते मिल रहे हैं। इसके साथ-साथ अन्याय अपराधों के घटनाक्रम और दृश्य देखने को मिलते हैं। इसका प्रभाव चारित्रिक अधःपतन के रूप में सामने आता ही है। इसके साथ-साथ मनोरोगों की अभिवृद्धि का सिलसिला भी चल पड़ता है। तनाव, अनिद्रा, मृगी, सिर दर्द, दुःस्वप्न, जैसी मानसिक बीमारियाँ बढ़ते-बढ़ते कितने ही शरीर रोग उत्पन्न करती है। प्रमेह मधुमेह बहुमूत्र, रक्तचाप, हृदय की धड़कन जैसी बीमारियों का सिलसिला चलने के बाद लोग ऐसी बीमारियों से ग्रसित होते हैं जो अब असाध्य रोग बनकर जीवन की अवधि घटाती और आदमी को बेमौत मरने के लिए विवश करती है।

संगीत सुनने सुनाने, गाने और बजाने का भी शौक चलता है। इन दिनों संगीत सुनने के साथ-साथ गाने बजाने और गायकों की मंडलियां देखने का प्रचलन चलता और बढ़ता जा रहा है। इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि शब्द ब्रह्म और नाद ब्रह्म जिसके प्रभाव से आत्मा का उत्कर्ष, चरित्र का अभ्युत्थान और शारीरिक, मानसिक विकास के सुयोग मिलते थे। वही अब व्यक्ति के चरित्र, चिन्तन और व्यवहार को नीचे गिराता जा रहा है। इस स्थिति को बदलने में ही कल्याण है।

संगीत के स्कूल खुल रहे हैं। गायन-वादन का शौक बढ़ रहा है। यदि यह कलाकारिता के अभ्युदय की दिशा में हुआ होता, गायन वादन के साथ-साथ चिन्तन की उत्कृष्टता का भी समावेश हुआ होता तो कितनी प्रसन्नता की बात रही होती।

हर वस्तु भली और बुरी है। सदुपयोग करने पर वह भली बनती है। दुरुपयोग होने पर वही बुरी बन जाती है। नाद ब्रह्म संगीत का यदि सदुपयोग हो तो उसी का प्रतिफल अमृत सदृश होता है। बुरे उपयोग में वही विष बन जाती है। संगीत का दुरुपयोग कामुकता भड़काने के निमित्त हो तो शरीर और मन दोनों का सर्वनाश कर देती है। उसी को यदि मन्त्र विनियोग में- सृजनात्मक प्रयोजनों में किया जाय तो परिणाम कितना श्रेयस्कर होता है, यह प्रत्यक्ष है।


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