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November 1984

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आत्मबल के अभाव में हर कार्य असम्भव ही नजर आता है। अर्जुन, हनुमान, भामाशाह, कर्ण के उदाहरण यही बताते हैं कि अन्तः की सामर्थ्य की जागृति अथवा मूर्च्छना की परिणति क्या हो सकती है। आज की परिस्थितियों में प्रसुप्त मनोबल वाले ऐसे अनेकों हैं जिन्हें यदि जागृति की स्थिति में लाया जा सके तो वे असामान्य पुरुषार्थ कर दिखा सकते हैं। उसी सामर्थ्य को जगाने एवं जन-साधारण के माध्यम से विचारशीलों की पीढ़ी जुटाने का पुरुषार्थ सूक्ष्मीकरण द्वारा सम्पन्न हो रहा है।


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