एक पुजारी ने रात को सोते समय सपना देखा कि देवता ने प्रसन्न होकर मन्दिर के कोठे को लड्डुओं से भर दिया। सोते-सोते वह सोचना लगा- इतने लड्डुओं का क्या होगा? निर्णय हुआ कि सारे गाँव को दावत दी जाय। मजा आयेगा। भोर होते-होते नींद खुली तो वह आंखें मलता हुआ, गाँव के गली-कूँचों में दौड़ पड़ा और घर-घर दोपहर का भोजन मन्दिर में करने का निमंत्रण देता चला गया।
पुजारी की प्रसन्नता का ठिकाना न था। देवता का अनुग्रह और प्रीति भोज का गौरव यह दो ही बातें उसके सिर पर सवार थीं। सपने मिथ्या भी हो सकते हैं, उतावली के निर्णय उपहास भी करा सकते हैं। यह बात उसे सूझी ही नहीं। दोपहर को सारा गाँव जमा हो गया। पर खाने को कुछ भी नहीं था। मन्दिर खाली पड़ा था। पुजारी को भूल समझ में आई तो गाँव वालों से बोला आप लोग थोड़ी देर कुछ और काम कर लें। मैं अभी अभी फिर से सोने का प्रयत्न करता हूँ ताकि देवता अबकी बार सचमुच ही लड्डुओं से कोठे भर सकें।