प्रामाणिकता की कसौटी पर खरे उतरे सज्जनता के पक्षधर महान व्यक्तियों को सम्पदा के लिए कभी तरसना नहीं पड़ा। वह तो उनके पीछे छाया की तरह साथ चली और सम्पन्न बनाती चली गयी। दारिद्रय का चोला तो वे स्वेच्छापूर्वक ओढ़े रहते हैं। सम्पन्नता का नशा आम आदमी को बदहवास कर देता है, दुर्व्यसनों का उसे गुलाम बना देता है, पर समझदार जानते हैं कि परमार्थ नियोजन में ही उनका स्वयं का भी हित साधन है।