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Akhand Jyoti
Year 1984
Version 2
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November 1984
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व्यक्ति का अन्तःकरण वह न्यायालय है, जिसमें परमेश्वर न्यायाधीश बनकर विराजमान रहता है।
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Page Titles
परकाया प्रवेश की सूक्ष्मीकरण साधना
VigyapanSuchana
मौनं सर्वार्थ साधनम्
सद्विचारों का प्रेरणा तंत्र
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साधना संग्रह करने की क्षमता
वृत्रासुर हनन का इन्द्रवज्र
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मुक्तिदायिनी गुफा में स्थिर प्रवेश
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सामर्थ्य एवं सुरक्षा देने वाली शक्ति
स्थूल शरीर की वर्तमान एकान्त साधना
भगवान को प्राप्त करने का सुनिश्चित मार्ग
झोलियों की अदला-बदली (kahani)
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ईश्वरार्पण अर्थात् श्रेष्ठता को अपनाना
सम्पदा महानता के पीछे-पीछे चलती है।
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कार्लमार्क्स का साम्यवाद
जो दीन है सो प्रेमी कैसा?
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वैज्ञानिक अध्यात्मवाद बनाम वैज्ञानिक मानसिकता
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मानवी मन का मायावी ‘रसायन शास्त्र’
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लक्ष्य सिद्धि का चरम सोपान
आइए! आपका प्रेतों से साक्षात्कार करायें।
“स एको मानुष आनन्दः”
बाँटने वालों की मिठास सराही जाती है (kahani)
युग-ऋषि “आइन्स्टाइन”
आयुर्वेद की गौरव-गरिमा अक्षुण्ण रहे
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प्रतिकूलताएँ (kahani)
बड़ों के बड़े अन्धविश्वास
मूक, किन्तु विलक्षणता सम्पन्न ये पशु-पक्षी
सुख और बड़प्पन की खोज (kahani)
“संगत बुरी असाधु की- आठों पहर उपाधि”
अभागा हीरा
नर और नारी के मध्यवर्ती अनुदान प्रतिदान
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शब्द शक्ति के दुरुपयोग का दुष्परिणाम
क्रोध की चुनौती (kahani)
शाप और वरदान का दैवी उपक्रम
यह सितारे गिनने के लिए नहीं (kahani)
मुस्कराना सीखें- सदा स्वस्थ रहें
पुजारी का सपना (kahani)
पशु-पक्षियों पर मुकदमे
शाकाहार और निद्रा का पारस्परिक सम्बन्ध
वस्तुओं का पूरा सदुपयोग (kahani)
गायत्री और सावित्री का देवता सविता
वांछापूरक- गौ दुग्ध कल्प
इस शताब्दी के अन्त में भारी उथल-पुथल की संभावना
तप साधना के फलितार्थ एवं परिजनों की अनुभूतियाँ
पू. गुरुदेव प्रणीत अध्यात्म विद्या के अमूल्य ग्रन्थ रत्न
तपोमय जीवन (kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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