सत्प्रवृत्तियों को अपनाने पर मनुष्य सहज ही ऐसे कामों में लगेंगे जिनके सहारे मनुष्य की बहुमुखी क्षमताएँ सत्कार्यों में अनायास ही नियोजित होने लगे इसलिए किसी को दबाव डालने, भिक्षा माँगने, तर्क प्रस्तुत करने की आवश्यकता न पड़ेगी। मनुष्य की प्रतिभा का कोई ठिकाना नहीं। यदि उन्हें सत्प्रयोजनों में लगाने की आकाँक्षा जग पड़े तो समझना चाहिए कि सतयुगी वातावरण बनने में देर नहीं रह गई।
सूक्ष्मीकरण के महाप्रयोग में एक वीरभद्र विचार संशोधन में लगेगा दूसरे को साधन जुटाने का काम सौंपा गया है। यों देखने में यह कार्य दो प्रतीत होते हैं, पर वस्तुतः वे एक ही पेड़ की दो शाखायें हैं। जहाँ एकाकी दाल गलेगी वहाँ दूसरा भी अपना चमत्कार दिखाने लगेगा। आदर्शवादी उत्कृष्ट विचार जहाँ भी जिनके पास भी होंगे वे साधनों के अभाव में अपना प्रयास रोके रहें ऐसा नहीं हो सकता। वे अपने स्वल्प साधनों से भी महत्वपूर्ण कार्य कर सकेंगे। अपने पास न होंगे तो कहीं अन्यत्र से आवश्यक साधन खिंचते हुए चले आवेंगे। साधु ब्राह्मणों के पास कोई निजी सम्पदा नहीं थी किन्तु उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व ने दूसरे पर प्रभाव डाला और उन्हें आवश्यक साधन जुटाने के लिए प्रबन्ध कर दिया। आद्य शंकराचार्य का मन चार धाम स्थापित करने का हुआ उनके पास निजी पूँजी एक पैसे की नहीं थी, पर मांधाता के अन्तराल में उनने इतनी उत्कट उमंग उत्पन्न की कि वह बहुमूल्य निर्माण आखिर बनकर ही रहा।
बंगाल से चैतन्य महाप्रभु वृन्दावन आये। उनने अपनी ध्यानमुद्रा में यह देखा कि कृष्ण भगवान ने कब कहाँ क्या लीलाएँ की थीं। जब वे सब पता लगा चुके तब उन्होंने समर्थ भक्तों से कहा कि उनके स्मारक लीलाओं के आधार पर बनने चाहिए। भक्तों ने अपनी जेबें खाली कर दीं और ऐसे शानदार देवालय बनाये जिन्हें आज भी कोई देखता है आश्चर्यचकित रह जाता है कि करोड़ों रुपये इतनी जल्दी कैसे जुट गये?
भगवान बुद्ध के पास घर का एक चीवर भी न था, पर उनने सारे एशिया में- सारे संसार में बौद्ध मिशन के विस्तार की योजना बनाई। इसके अंतर्गत सैंकड़ों विहार और संघाराम बनने थे। इससे अतिरिक्त दो विश्वविद्यालयों की भी विशाल योजना थी। इसके लिए एक-एक रुपया चन्दा नहीं किया गया वरन् उस विशालकाय योजना को दो व्यक्तियों ने ही सम्पन्न कर दिया। अशोक ने नालन्दा और हर्षवर्धन ने तक्षशिला विश्वविद्यालय बना दिए। वे न केवल शानदार इमारतें खड़ी हुई वरन् तीस-तीस हजार छात्रों और अध्यापकों के निर्वाह की भी स्थायी व्यवस्था हो गई।
रानी अहिल्याबाई को प्रेरणा हुई कि नर्मदा तट के देवालयों का जीर्णोद्धार किया जाय और गंगा तट के जो विशाल मन्दिर बनने शेष थे वे भी उन्होंने बनवाये। महाराजा रणजीत सिंह ने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए अमृतसर के प्रसिद्ध मन्दिर पर स्वर्ण चढ़वाया, वह स्वर्ण मन्दिर कहलाया।
दक्षिण भारत के बालाजी, वेंकट आदि मन्दिरों की शोभा तथा लागत कितनी बड़ी है, इसका विवरण वे लोग जानते हैं जिन्होंने उन्हें आँखों से देखा है। सुदामा की गरीबी सर्वविदित है। किन्तु जब उन्हें आवश्यकता पड़ी तो द्वारिकापुरी उठकर सुदामा पुरी के वैभव में बदल गई। यह आख्यान सर्वविदित है।
रामकृष्ण परमहंस काली मन्दिर में पुजारी थे। पर जब उनकी इच्छा हुई तो रामकृष्ण मिशन के अस्पताल हिन्दुस्तान भर में और विदेशों में बनकर खड़े हो गये। विवेकानन्द का कन्याकुमारी वाला स्मारक और दक्षिणेश्वर का नवीन मन्दिर विवेकानन्द के इशारों पर बनकर खड़ा हो गया।
बाबा जलाराम के सदावर्त में अभी हजारों व्यक्ति नित्य भोजन करते हैं। काली कमली वालों का सदावर्त धर्मशालाएँ, चट्टियाँ जिन्होंने देखे हैं वे इस बात से चकित हैं कि जो बाबा अपना शरीर काली कमली भर से ढ़ककर रहते थे उनकी इच्छा के अनुरूप इतने धर्म स्थान किस प्रकार बनकर खड़े हो गये? अशोक ने कितने कीर्ति स्तम्भ, शिलालेख बनवाये यह सभी जानते हैं।
यह थोड़े से प्रमाण हैं जिनसे प्रतीत होता है कि अध्यात्म का आकर्षण जहाँ भी संकेत करता है वहाँ क्या से क्या इमारतें बनकर खड़ी हो जाती हैं। बुद्ध गया, साँची के स्तूप, कितने कीमती हैं। कम्बोडिया का अंगकोरवाट इन दिनों बुद्ध विहार का खण्डहर है, पर उसकी लागत ताजमहल के समतुल्य मानी जाती है। रंगून का स्वर्ण मन्दिर बुद्ध स्मारकों में अपने ढंग का अनोखा है।
भारत के एक सिरे से दूसरे सिरे तक भ्रमण करने तक धर्म स्थानों की सूची बनाने पर प्रतीत होता है कि इनमें से अधिकाँश का निर्माण किन्हीं सन्त महात्मा की इच्छानुसार हुआ है। अभी भी ढेरों देवालय ऐसे हैं जिनका मासिक खर्च लाखों रुपये मासिक का है। वृन्दावन का रंगजी का मन्दिर और त्रिपदा बालाजी के भोग प्रसाद का खर्च इतना बड़ा है जितना राजा महाराजाओं का भी न रहा होगा।
ईसाई मिशन का इंग्लैण्ड, इटली, अमेरिका का मिला हुआ खर्च अरबों रुपया मासिक का है। अपनी युग निर्माण योजना के अंतर्गत 2400 प्रज्ञापीठें बनी हैं और प्रत्येक के पीछे न्यूनतम पाँच कार्यकर्ता काम करते हैं तो पूरा समय देने वाले कार्यकर्त्ताओं की संख्या साढ़े बारह हजार हो जाती है। हर एक का निर्वाह व्यय 100 रु. भी हो तो साढ़े बारह लाख रुपये माह का खर्च बैठता है।
यह थोड़े से संकेत हैं कि अध्यात्म आकर्षण में साधन किस प्रकार खिचे चले आते हैं। युग निमार्ण के लिए कितने साधन चाहिए इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। युग बिगाड़ने के लिए धन कुबेरों का प्रचुर धन लगा है। अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी मकान को बिगाड़ने में जितना धन लगेगा उसकी तुलना में यदि उसे फिर से नये सिरे से बनाना हो तो उसमें कितने पूँजी लगेगी। सौ पशु नित्य काटने के बूचड़ खाने में जितनी लागत आती है। उसकी तुलना में सौ पशु पालने में डेयरी फार्म में सम्भवतः कहीं अधिक खर्च की आवश्यकता होगी।
यह प्रश्न सहज ही उठता है कि युग निर्माण में कितने अधिक साधनों की आवश्यकता पड़ेगी। पानी रोकने के बाँध, नहर, सड़क, पुल आदि यदि अच्छी किस्म के बनाये जायें तो उनका बजट करोड़ों का बैठता है। नव निर्माण में सब कुछ नया ही नहीं बनना है। जो कुछ अभी बना हुआ है वह ऐसा है जिसने बनाव कम बिगाड़ अधिक किया है। अब जब इससे ठीक उलटा करना है तो उसकी लागत का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। इस नवीनीकरण में कितने साधनों की आवश्यकता पड़ेगी इसका अनुमान लगाना किसी के लिए कठिन नहीं होना चाहिए।
बाँध बनाने के लिए जितने इंजीनियर चाहिए, उसकी तुलना में उसमें लगने वाले श्रमिकों की संख्या, साधनों का मूल्य कितना हो सकता है, यह अनुमान लगाने की आवश्यकता है। अब प्रश्न यह उठा है कि इतने साधन आवेंगे कहाँ से? लायेगा कौन? एकत्रित करने के लिए पूँजी कितनी चाहिए और कितने प्रयास करने पड़ेंगे?
सूक्ष्मीकरण द्वारा उत्पन्न दूसरे वीरभद्र के जिम्मे यही काम सौंपा गया है कि नवनिर्माण के लिए जितने प्रचुर साधनों की आवश्यकता है उन्हें कहीं से भी, किसी भी कीमत पर जुटाया जाना चाहिए। इतने साधन जो जुटा सके सो कितना समर्थ होगा यह अनुमान लगाने में किसी को भी चूक नहीं करनी चाहिए। थोड़े से साधन जुटाने के लिए लोगों को एड़ी से चोटी तक का पसीना एक करना पड़ता है। धूम-धमाके भरी शादी में खर्च होने वाली रकम- एक अच्छा कोठी, बंगला खड़ा करने की जुगाड़ जिन्हें बिठाना पड़ता है उनसे पूछा जाय कि इस हेतु उन्हें अपनी पराई जेब किस प्रकार खाली करनी पड़ी है सूक्ष्मीकरण द्वारा उत्पन्न किये गये दूसरे वीरभद्र के सम्बन्ध में भी अनुमान होगा कि उसकी शक्ति कितनी प्रचण्ड होगी, वह कितने महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करेगा।