तप साधना के फलितार्थ एवं परिजनों की अनुभूतियाँ

November 1984

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

रामकृष्ण परमहंस के बारे में जितना भी ज्ञात है, ग्रन्थों में पढ़ने को मिलता है उससे विदित होता है कि उन्होंने कभी जमा पूँजी को संग्रहित नहीं किया। जितना भी उन्हें देवी अनुकम्पा से पात्रता के अनुरूप मिला उसे उन्होंने सुपात्रों में बाँट दिया। सबके कष्ट अपने ऊपर लेने व निरन्तर वितरण करने के बावजूद जो भी कुछ बचा, वह तपोबल उन्होंने सीमित छोटे नरेन्द्र को देकर उन्हें विवेकानन्द के रूप में विस्तृत विशाल बना दिया व स्वयं कष्ट ओढ़कर प्रकृति विधान के अनुरूप मृत्यु का वरण किया। महर्षि रमण मौनरत हो दृष्टिपात से आगन्तुकों को, जिज्ञासुओं को परखते थे। जिसकी आकाँक्षा, अभिलाषा जैसी होती थी, वह महर्षि के आशीष से पूरी होती थी, साथ ही उसे उच्चस्तरीय प्रेरणाएँ भी सूक्ष्म रूप में मिलती थी ताकि वह देवी अनुदानों की कीमत चुका कर ही बदले में कुछ पाएं। योगीराज अरविन्द 20 वर्ष से भी अधिक पांडिचेरी की अपनी कोठरी में एकान्त साधना करते रहे। प्रारम्भ में वर्ष में यदाकदा व बाद में वर्ष में मात्र दो बार दर्शन देने का क्रम चला, वह भी अन्तिम वर्षों में माताजी तक सीमित होकर रह गया था। वहाँ जाने वालों के कोई मनोरथ अधूरे रहे हों, वे महर्षि दर्शन न कर पाने से क्षुब्ध हो लौटे हों, यह बात भी नहीं। सभी यह पाते थे सूक्ष्मरूप में उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली गयी।

गुरुदेव को सूक्ष्मीकरण साधना उनके पिछले समस्त तप उपक्रमों से भिन्न है। परिस्थितियों की विषमता को सभी भली-भाँति समझते हैं। जून व जुलाई के अखण्ड ज्योति अंकों ने परिजनों को झकझोरा, सोये से जगाया है तो अगस्त के अंक ने एक लताड़ सी लगायी है व इस एकाकी तप साधना के फलितार्थों से भी भली−भांति अवगत करा दिया है। सूक्ष्म रूप में गुरुदेव के प्रत्यक्षीकरण को, उन्हें परोक्ष मार्गदर्शन की परिजनों को बड़ी विलक्षण अनुभूतियाँ हुई हैं। चूँकि आह्वान किया गया था, ढेरों पत्र ऐसे विवरणों से भरे इन दिनों शान्तिकुँज आ रहे हैं। परिजनों ने पाया है कि अब शान्ति-कुँज आने पर उन्हें जिस प्राण ऊर्जा युक्त वातावरण का सम्बल मिला है, वह अभूतपूर्व है। इससे पूर्व कभी भी उन्हें इतना सान्निध्य-सामीप्य गुरुदेव का नहीं मिला था, जितना इन दिनों। गुरु पूर्णिमा के बाद क्षेत्रों में तेजी से नव जागृति आयी है। परिजनों को अपने क्रिया-कलापों में, रोजमर्रा की गतिविधियों में सतत् ऐसी अनुभूति होती रही है कि वे शान्ति-कुँज भले न जा पाये हों, उनके ऊपर एक अदृश्य सत्ता का साया है जो किसी भी विपत्ति से उन्हें उबार लेगा, नयी दिशा देगा। उन्हें नव सृजन की दिशा में आगे बढ़ने की एक नयी प्रेरणा मिली है। ऐसे कर्मठ निष्ठावान परिजनों के साथ गुरुदेव हर क्षण हर पल हैं, यह अनुभूति उन्हें सतत् होती रही है। भौतिक मनोकामनाओं, इच्छाओं महत्वकाँक्षाओं की पूर्ति हो, तब हम मिशन का काम करें ऐसा सोचने वालों को सूक्ष्मीकृत सत्ता ने एक झलकी अपनी सामर्थ्य की दिखाई व यह सोचने पर विवश किया है कि कुछ पाना है तो उसके लिये सुपात्र भी बनना पड़ेगा।

इन पंक्तियों के लिखे जाने तब चौबीस टोलियों में चौबीस जीप गाड़ियों में 120 वरिष्ठ कार्यकर्त्ताओं के जत्थे सारे भारत को आन्दोलित करने हेतु रवाना होने की तैयारी में हैं। सूक्ष्मीकरण साधना में जाने से पूर्व गुरुदेव ने लिखा था, वे अपने को अनेकों गुना अधिक सामर्थ्यवान एवं विस्तृत बना लेंगे। इन सौ व्यक्तियों के माध्यम से नव-जागरण का शंखनाद बजाने स्वयं गुरुदेव ही जन-जन तक स्थूल रूप में पहुँच रहे हैं। इन केन्द्रीय प्रतिनिधियों के, जो गुरुदेव-माताजी का सन्देश लेकर पहुँचेंगे, क्षेत्रों में पहुँचने पर जो जन चेतना जागेगी, युगान्तर चेतना के दिव्य सन्देश से जो गर्मी आयेगी, उसकी अभी कल्पना मात्र की जा सकती है। परिजन क्षेत्रों में इसे अनुभव करेंगे कि सूक्ष्मीकरण साधन रूपी युग अनुष्ठान की पूर्णाहुति रूप में आयोजित ये प्रज्ञा आयोजन अपने उद्देश्य में कितने सफल रहे।

व्यक्तिगत रूप से अखण्ड-ज्योति पाठकों, प्राणवान परिजनों को जो अनुभूतियाँ सूक्ष्म रूप में हुई हैं, उन सभी को इन पृष्ठों में देना सम्भव नहीं। कुछ ऐसी हैं जिनके रहस्योद्घाटन के बारे में शुरू से ही प्रतिबन्ध रहा है, अब और कड़ा हो गया है। कुछ खुले अध्याय की तरह है अतः उन्हें प्रकाशित करने में कोई संकोच आड़े नहीं आता। ऐसे अनेकों पत्र आये हैं जिनमें किन्हीं परिजनों ने दुःख भरी परिस्थितियों में, विषम वेला में अपनी व्यथा लिखकर पत्र या तार से शान्ति कुँज भेजी व उसी दिन उन्हें उससे मुक्ति मिल गयी। उनके ऐसे पत्रों के बाद दूसरे पत्र जो पीछे-पीछे चले हैं उससे प्रतीत होता है कि उन्होंने सोचा, अपनी व्यथा गाथा संरक्षक सत्ता तक पहुँचाने का विचार किया व तत्क्षण ही परिस्थितियां ऐसी बदली कि वे स्वयं हतप्रभ होकर रहे गये।

तराना के श्री रामनारायण कछवाहा सतत् असमंजस में रहते कि अभी बच्चे छोटे हैं, शान्ति-कुँज जाने व स्थायी रूप से कार्य करने की अन्दर से उमंग उठती है। कैसे जाना हो सकता है, परिस्थितियाँ कैसे अनुकूल बनें, यही मन सोचता रहता था। एक दिन पत्र शान्ति-कुँज डाला ही था कि रात्रि को स्वप्न आया। पूज्य गुरुदेव स्वप्न में दिखाई पड़े। सन्देश मिला अभी क्षेत्र सोया पड़ा है। वहाँ के बच्चों को संभालो। उचित समय आने पर शान्ति-कुँज रहने का भी सुयोग मिलेगा। उनका समाधान हो गया। वे पूरी कर्मठता से अपनी साधना में जुट गये। इसी प्रकार अनपरा मिर्जापुर के एडवोकेट श्री डी.एन. कुशवाहा, जो वर्षों से आने का ताना-बाना बुन रहे थे, शान्ति-कुँज से बुलावे की प्रतीक्षा में हैं क्योंकि इसी वर्ष उनकी सभी पारिवारिक समस्याएँ देखते-देखते स्वतः हल हो गयीं।

गायत्री मॉडल स्कूल मण्डी आदमपुर हिसार के प्राध्यापक श्री रघुनाथ शर्मा के जीवन क्रम में गत 6 वर्षों में जो घटनाक्रम घटित हुए व उनका पटाक्षेप इस वर्ष जिस प्रकार हुआ, उसे वे एक चमत्कार मानते हैं। स्थूल रूप से उन्होंने गुरुदेव के मात्र दो बार दर्शन किए जबकि सूक्ष्म रूप से सदैव उनका वरद्हस्त अपने ऊपर पाते हैं। 6 वर्ष पूर्व जब वे अध्यापक नहीं थे, जीवन में संघर्ष कर रहे थे तब उन्हें गुरुदेव द्वारा अध्यापक कहकर सम्बोधित किया गया था। परिवार जनों का तिरस्कार, आर्थिक तंगी की स्थिति में नितान्त अपरिचित स्थान पर घर से कोसों दूर डेरा डाला व गुरुदेव की प्रेरणा से एक संस्कार शाला खोली जो आज विशाल रूप ले चुकी है। जून अंक पढ़ने के बाद से वे पाते हैं कि उनके हर क्रिया-कलापों में गुरुदेव साथ हैं, उन्हें मार्गदर्शन दे रहे हैं। राणापुर (म.प्र.) के श्री अम्बालाल जोशी जो पेशे से शिक्षक हैं, मात्र यह लिखकर निश्चिन्त हो गए कि उनका स्थानान्तरण गृह नगर में गुरुदेव के आशीर्वाद से हो जाये। जून के उत्तरार्द्ध में ही उन्हें शासन के इस आदेश ने चौंका दिया। राणापुर आये तो पाया कि वर्षा न होने से बड़ा संकट है। म नहीं मन प्रार्थना कर सो गए कि वर्षा अवश्य होना चाहिए नहीं तो सूखा पड़ जाएगा। रात्रि को स्वप्न में गुरुदेव को देखा व फिर एक दृश्य कि क्षेत्र के सारे नदी नाले उफान पर हैं। निष्कर्ष वे निकाल नहीं पाए। दूसरे ही दिन से जो झड़ी लगी तो अगस्त मध्य उनके पत्र लिखने के समय तक थमी नहीं थी।”

खण्डवा के सुरेशचन्द्र पटेल मिशन के क्रिया-कलापों में सक्रिय रूप से भाग नहीं ले पाते थे, साधना में अनियमितता थी, घर में वातावरण सुख-शान्ति भरा नहीं था। जून के उत्तरार्द्ध की बात है। उन्हें रात्रि में भोर 3 बजे गुरुदेव ने थपथपाकर उठाया व कहा- “उठकर उपासना करो, साधना का समय हो गया है।” वे तब से नियमित रूप से प्रातः जल्दी उठने लगे, देखते-देखते वातावरण बदल गया। सारा घर उपासना करने लगा है। अब वे कार्यकर्ता के रूप में भी सक्रिय होने का प्रयास कर रहे हैं।

कटंगी के शिक्षक श्री के.आर. सेन की उन्हीं के कार्यालय सहयोगियों ने शिकायत कर दी थी कि वे किताबें, फोल्डर दूसरों को पढ़ाते रहते हैं, काम नहीं करते। शिकायत ऊपर पहुँची। इन्क्वारी हेतु जिला शिक्षा अधिकारी आए। पूछताछ हुई। जब इनसे सारा साहित्य दिखाने को कहा गया तो माहौल ही बदल गया। स्वयं वे अधिकारी महोदय इन्हें आरोप से मुक्त कर वह साहित्य पढ़ने को ले गए व पीठ थपथपा गए कि “यह काम उत्तम है। निश्चित होकर करो।” अन्यान्य जाति के लोग शिकायत करते हैं, पर उनका मनोबल बना हुआ है। अब उन्हें प्रेरणा मिली है कि पूर्ण रूप से आने की तैयारी करें। तद्नुसार अपनी मनोभूमि बना ली है, बुलावे की प्रतीक्षा में हैं।

सरसा जिला खेड़ा (गुजरात) के श्री नित्यानन्द जी पटेल को गुरुदेव के सूक्ष्म रूप की जो अनुभूति हुई, उसे वे अपने जीवन का एक नया मोड़ मानते हैं। उन्हें लन्दन होकर अमेरिका जाना था। गुरुदेव से उपासना में आदेश मिला कि वहाँ वे भाई के यहाँ ही ठहरें। लन्दन पहुँचे तो आई का तार मिला कि वहाँ बर्फ गिर रही है, अतः वहाँ न आकर वे बहिन के यहाँ जाएं। उन्होंने जो आदेश सुना था उसी के अनुसार वे सीधे भाई के घर ही पहुँचे 5 सदस्यों का काफिला साथ था। भाई ने उन्हें आश्चर्य से बताया कि वे प्रातः से यही कामना कर रहे थे कि वे सीधे यहीं आएं, बहिन के यहाँ न जाएं क्योंकि उनके तार देने के बाद उनके यहाँ बर्फ गिरना बन्द हो गयी व बहन के यहाँ इतनी जल्दी व इतनी अधिक बर्फ गिरी कि रास्ता, सड़कें सब बन्द हो गयीं। भाई व बहन के बीच 3500 किलोमीटर की दूरी है। नित्यानन्द जी के भाई इसी पर आश्चर्यचकित थे कि किस अन्तःप्रेरणा ने उन्हें 15 दिन पूर्व भारत में ही यह संकेत दे दिया कि उन्हें सीधा वहीं आना चाहिए।

कानपुर के श्रीरामसुन्दर दुबे गुरुपूर्णिमा पर शान्ति कुँज ही थे। 2 दिन बाद ही मुकदमे की पेशी में उन्हें जाना था। सींखचों के पीछे मात्र पादुकाओं के दर्शन हुए पर यह संकेत मिला कि अभी 4 दिन वे यहीं रुकें। मुकदमें की कोई परवाह न कर वे रुक गये। 16 जुलाई को कानपुर वापस पहुँचे, पाया कि मुकदमा स्वतः आगे बढ़ गया था, अगले दिन पेशी थी, वह उन्हीं के पक्ष में गया था। तब से बराबर मिशन के काम में लगे रहने की प्रेरणा उन्हें मिल रही है।

अलीगढ़ के श्री जी.एस. सारस्वत का भानजा संजीव मलिक जो जम्मू मेडिकल कॉलेज में पढ़ता था, उस अपहृत विमान में था जिसे अगस्त माह में दुबई ले जाया गया। पूरा परिवार उपासना में बैठ गया। 24 अगस्त को शाम को उन्हें गुरुदेव के सूक्ष्म रूप में दर्शन हुए। सन्देश मिला कि आज रात्रि को वह व सारे विमान यात्री सकुशल लौट आएंगे वे दिल्ली पहुँचे व विमान तल पर इसी सूचना को उद्घोषक के मुंह से सुना। भिलाई के श्री रामकुमार श्रीवास 22 अगस्त को पूजा स्थली पर निराश मनःस्थिति में आकर बैठे ही थे कि एक लम्बा काला करैत सर्प उनके सामने आकर बैठ गया। देखकर वे भयभीत तो हुए पर गुरुदेव का ध्यान करते ही उनका भय भाग गया। थोड़ी देर में सर्प स्वतः ही चला गया। स्वप्न में तब से कई बार प्रेरणाएं- संदेश उन्हें मिल चुके हैं। वे इसे नया जीवन मानकर सक्रिय हैं। व अब पूर्णतः समर्पित हैं। इसी प्रकार सांडा जिला सीधी (म.प्र.) के पीताम्बर प्रसाद शर्मा का एक अनुभव अगस्त उत्तरार्द्ध का है। उस दिन शाम उनके घर पर एकाएक बिजली गिरी। लेकिन घर में उस समय उपस्थित सभी सम्बन्धी जन बच गए। बिजली एक नाँद को अपना परिचालक बनाती हुई पृथ्वी में समा गयी। जिनने भी उस दृश्य को देखा वे जन-धन की क्षति को बचाने में दैवी सत्ता का हाथ मानते हैं।

ऐसे अनेकानेक पत्रों के आने का क्रम जारी है। सबके विषय में लिखना सम्भव भी नहीं। यहाँ तो कुछ की झलक भर दी गयी है। आत्म सत्ता के अनेकों गुने होकर विराट् हो जाने की गुरुदेव की घोषणा को हर परिजन ने अनुभव किया है। हर व्यक्ति को यह परोक्ष आश्वासन मिला है कि जो भी इस देवी तन्त्र से जुड़ा है, वह कहीं भी हो, उसके संरक्षण व समग्र प्रगति की व्यवस्था का दायित्व उसने स्वयं अपने हाथ में लिया है। ऐसे में किसी को किसी प्रकार का भय, एकाकीपन का अहसास हो भी कैसे सकता है? नवरात्रि ने अभिनव प्राण परिजनों में फूँके हैं। विपन्नता-विषमता भरी इस बेला में हर जागृतात्मा ने अपने अन्दर नयी चेतना का संचार अनुभव किया है। इस दैवी संरक्षण का ऋण वे कभी चुका तो नहीं सकते पर अपनी पूरी सामर्थ्य लगाकर यथाशक्ति नव जागरण के पुण्य प्रयोजन में निरत रहने का संकल्प हर परिजन ने अभिव्यक्त किया है।  


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118