अपनी-अपनी पात्रता

April 1970

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

शिष्य ने प्रश्न किया- “गुरुवर! जब संसार में सभी मनुष्य एक ही तत्व के एक से बने हैं तो यह छोटे-बड़े का भेद-भाव क्यों है?”

गुरु ने उत्तर दिया- “वत्स! छोटा-बड़ा संसार में कोई नहीं, यह सब अपने-अपने आचरण का खेल है, जो सज्जन होते हैं, वह बड़े हो जाते हैं, जबकि नेकी और सज्जनता के अभाव में वही छोटे कहलाने लगते हैं।” गुरु ने बात ठीक समझा दी पर शिष्य की समझ में अच्छी तरह जमी नहीं।

कुछ दिन पीछे राजा की सवारी निकली। गुरु अपने शिष्य को लेकर राज-पथ के बीचों-बीच जा बैठे। पहले पहल सैनिकों का दल आया। एक सिपाही ने आगे बढ़कर वृद्ध संन्यासी को धक्का मारा और कहा-”मूर्ख! मार्ग में आ बैठा, पता नहीं, महाराज की सवारी आ रही है।” सैनिकों के पीछे प्रधान सेनापति था, उसने धक्का तो नहीं दिया, हाँ वहाँ से हटने के लिए साधु को डाँट अवश्य बतलाई।

इसके बाद मन्त्री निकले, उन्होंने बिना कुछ कहे अपना रथ एक ओर से निकाल लिया और आगे बढ़ गये। सबसे पीछे आ रहे महाराज ने संन्यासी को देखा तो रथ से उतर कर उनके पास आये और पूछा- “भगवन्! यहाँ बैठे हैं, कोई कष्ट तो नहीं। हम आपके सेवक हैं, कोई कष्ट हो तो कहें।” संन्यासी ने उत्तर में केवल आशीर्वाद दिया और महाराज को भी वहाँ से जाने दिया।

शिष्य बगल में खड़ा यह सब देख रहा था। गुरु के पास आकर उसने कहा- “सच है गुरुदेव! व्यक्ति अपने आपमें न छोटा है न बड़ा। गुणों के आधार पर ही कुछ बड़े हो जाते हैं, जबकि दूसरे छोटे के छोटे बने रहते हैं।”


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118