बिना पतवार- सिद्धि के द्वार (2)

April 1970

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पीटर हरकौस की ख्याति सामान्य घटनाओं से प्रारम्भ हुई थी और विस्तृत यहाँ तक हुई कि देश-विदेश के धनी-निर्धन, सरकारी-गैरसरकारी, साधारण नागरिकों से लेकर बड़े राज-परिवारों तक उन्हें बुलाकर और कठिन समस्याओं में उनकी सहायता ली जाने लगी। सिद्धि का स्वरूप ही ऐसा है कि उसका उपयोग करके धनी को निर्धन और रंक को महाराजा तक बनाया जा सकता है। जहाँ सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँच सकता। योनी की सूक्ष्म-गति वहाँ भी पहुँच सकती है और वहाँ का सारा भेद खोल सकती है। हरकौस आकस्मिक शक्ति पाकर यही सब करने में लग गया।

सन 1850 में इंग्लैण्ड की ‘वेस्टमिंस्टर एबी’ से स्कोन नामक मणि चोरी चली गई। ‘वेस्टमिंस्टर एबी’ एक ऐसा संग्रहालय है, जहाँ इंग्लैण्ड के राज-दरबार और राजनैतिक नेताओं को विदेशों में मिलने वाले उपहार और राष्ट्रीय महत्व की वस्तुओं का संग्रह रहता है। स्कोन मणि के बारे में कहा जाता है कि स्काटलैण्ड की थी और चुराकर इंग्लैण्ड लाई गयी थी। यह एक ऐसी चोरी थी जिसने सारे इंग्लैण्ड में तहलका मचा दिया। बड़े-बड़े सी. आई. डी. उसमें जूझे, मणि का फलक तो किसी तरह लन्दन की टफटन स्टीट में पा लिया गया, बस उसके अतिरिक्त चोरों को उसकी पूँछ का भी कहीं पता नहीं चला।

अंत में पीटर हरकौस की सहायता ली गई। अपनी धर्मपत्नी के साथ हरकौस ने लन्दन की यात्रा की। लोहे की शलाखा से ‘एबी’ का दरवाजा तोड़ा गया था। उसे हाथ में लेते ही हरकौस एक क्षण के लिये ध्यानावस्थित सा हुआ, मानो उस घटना को पढ़ने के लिये उतना समय आवश्यक था। थोड़ी देर चुप रहकर पीटर हरकौस हँसे जैसे उनके लिये यह घटना बिलकुल सामान्य हो। जिन घटनाओं पर साधारण व्यक्ति थोड़े में बुरी तरह व्यथित हो उठते हैं, दूरदर्शी व्यक्ति उन्हें एक खेल की तरह टरका देते हैं, यह बात उस दिन देखने में आई। जिस घटना पर सारा इंग्लैण्ड स्तब्ध था, हरकौस की दृष्टि में वह एक खेल जैसा था। सचमुच खेल- उसने बताया- मणि पाँच लड़कों ने चुराई है, वे उसे कार में रखकर ग्लासगो ले गये हैं। उसने मणि जहाँ-जहाँ होकर गयी उसका ‘स्केच’ बनाकर भी समझा दिया और बताया कि एक महीने में मणि मिल जायेगी। पीछे एक दिन मणियों सम्बन्धी पुस्तक पढ़ती हुयी एक महिला द्वारा उस रहस्य का पता चल गया। चोरी सचमुच खिलवाड़ में विद्यार्थियों द्वारा की गई थी। विद्यार्थी पाँच ही थे। इस मामले में हरकौस को मिला तो कुछ नहीं पर उसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अवश्य मिली।

फूल की सुगन्ध मीलों दूर की मधुमक्खियों, भ्रमरों तितलियों को ऐसे आकर्षित कर लेती है, जैसे मेले में रग-बिरंगे खिलौने बच्चों के मन। सद्गुणों की सुगन्ध और सिद्धि के प्रकाश में कुछ ऐसी मादकता है कि वह हजारों-लाखों व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। गुणी व्यक्ति की ओर श्रेष्ठ सम्भ्रान्त भी ऐसे आकर्षित हो जाते हैं जैसे चुम्बक लोहे के परमाणुओं को दूर-दूर से अपनी ओर समेट लेता है और उन्हें अपनी ही तरह का चुम्बकत्व प्रदान करता चला जाता है। देने की यह निष्काम साधना व्यक्ति की शक्ति और महत्व को हजार गुना बढ़ा देती है। जबकि स्वार्थ से सने व्यक्ति भी कालान्तर में छूछे हाथ खोखली झोली रह जाती है। पीटर हरकौस के इस चमत्कार ने एक बार तो सारे संसार को चमत्कृत कर दिया, धीरे-धीरे वह उसका व्यवसाय बन गया। वह इस शक्ति को मनुष्य जीवन में बढ़ते हुये पाप और दुर्भाव को रोकने में लगाकर ईश्वरीय प्रयोजन भी पूरा कर सकता था पर स्वार्थवश ऐसा कुछ न हुआ, चमत्कार तो चमत्कार ही होता है, थोड़ी नामवरी भले ही मिल ले पर उससे आत्म-शान्ति, आत्म-कल्याण का महान उद्देश्य कहाँ से पूरा हो पाता है।

इंग्लैंड के इस समाचार को फ्रान्स में अति उत्सुकता से सुना गया। जहाँ कुछ लोग आश्चर्यजनक घटनाओं को मात्र मनोरंजन समझकर थोड़े ही समय में भूल जाते हैं, वहाँ कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो उनकी गहराइयों में प्रवेश करते हैं और महत्वपूर्ण अनुभव प्राप्त करते हैं। जिज्ञासाओं की यह प्रबलता ही ज्ञान-विज्ञान के आश्चर्य प्रकट करने में समर्थ हुई है। जिज्ञासा ही आत्मा-परमात्मा जैसी सूक्ष्म सत्ताओं की शोध ओर प्राप्ति की जननी है। जिज्ञासा हो तो फिर इन रहस्यों की प्राप्ति के लिये केवल मार्गदर्शन और पराक्रम ही शेष रह जाता है और वह भी कहीं न कहीं मिल ही जाता है। पेरिस की पुलिस ने इस अतीन्द्रिय सत्ता को जाँचना और उसका उपयोग करना चाहा। इसके लिये पीटर हरकौस को पेरिस बुलाया गया। एक सभा आयोजित की गयी, जिसमें 20 न्यायाधीश और कई पुलिस कर्मचारी भी थे। उन्होंने हरकौस को पाँच वस्तुयें देकर कहा- हम यह नहीं जानते मामला क्या है यह तो आपकी परीक्षा है कि इन वस्तुओं के आधार पर सारे मामले का पता भी आप ही लगायें और निर्णय भी आप ही दें। हरकौस के जीवन में यह एक कठिन परीक्षा थी। यहाँ यह सिद्ध होना था कि सचमुच अतीन्द्रिय क्षमतायें याँत्रिक शक्तियों से भी अधिक सूक्ष्म, संवेदनशील और सशक्त होती हैं।

यह पाँच वस्तुयें थीं- (1) कंघा, (2) कैंची, (3) घड़ी, (4) सिगरेट लाइटर और (5) बटुआ (पर्स)।

पीटर हरकौस ने प्रारम्भिक जाँच के तौर पर उन्हें स्पर्श किया और बताया कि इनमें से तीन वस्तुयें इस मामले में आवश्यक हैं। दो से कोई सम्बन्ध नहीं। सभी उपस्थित व्यक्ति चुप थे।

इसके बाद पीटर हरकौस ने बटुआ हाथ में लिया और कहना प्रारम्भ किया-सफेद कोट पहने एक गंजा आदमी दिखाई दे रहा है, यह सब एक पहाड़ी के पास एक छोटे से मकान में है, जहाँ से रेलवे लाइन गुजरती है। थोड़ी ही दूर पर एक कोठार दिखाई दे रहा है, इस मकान और कोठार के बीच एक व्यक्ति मरा पड़ा हुआ है। इस हत्या का सम्बन्ध ‘निकोला’ नामक व्यक्ति से है, उसने दूध में विष मिलाकर पिलाया है। यह गंजा व्यक्ति ही निकोला लगता है, वह इस समय जेल में है, मृत व्यक्ति एक स्त्री है और यह गंजा व्यक्ति भी जेल में मर चुका है। इतना कहते-कहते पीटर हरकौस ने उन सारी परिस्थितियों का एक पेन्सिल-चित्र भी कागज पर खींच दिया।

अब तक सभी उपस्थित व्यक्ति बिलकुल चुप थे। सब बता देने के बाद सबने तालियाँ पीटीं। हरकौस ने सारी घटना सच-सच कही थी। अलबत्ता उससे एक भूल हुयी थी, वह यह कि अधिकारियों के अनुसार हत्यारा जेल में है मरा नहीं। लेकिन अधिकारियों के आश्चर्य का तब कोई ठिकाना न रहा, जब उन्हें यह समाचार मिला कि सचमुच ‘निकोला’ ने अब से कुछ दो घण्टे पूर्व जेल में आत्म-हत्या कर ली है और वह सचमुच मर चुका है। इस सफलता ने पीटर हरकौस की ख्याति सारे विश्व में फैला दी।

इधर पीटर की ख्याति बढ़ रही थी, उधर उसके जीवन की अशान्ति भी। वह यह अनुभव करता था कि वह परमात्मा के दिये हुए इस वरदान का दुरुपयोग कर रहा है।


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