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April 1970

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अद्भिर्गात्राणि शुद्धियन्ति मनः सत्येन शुद्धयति।

विद्यातपोभ्याँ भूतात्मा तुद्धिर्ज्ञनेन शुद्धयति॥

जल से शरीर शुद्ध होता है और मन सत्य से शुद्ध होता है, विद्या और तप से प्राणियों की आत्मा शुद्ध होती और बुद्धि ज्ञान से शुद्ध होती है।

डॉ. हर्टलाइन ने सन् 1967 में पहली बार नेत्र कोशिकाओं में उत्पन्न विद्युत आवेगों को इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों से रिकार्ड करके बताया कि प्रत्येक कोश में उस बिंब की सारी बारीकियों अर्थात् रंग आकार उभरी-धंसी रेखायें आदि निहित होती हैं, प्रत्येक कोश एक सेकिण्ड के भी करोड़वें हिस्से में उस प्रतिबिम्ब को अगले कोश को पार कर देता है और इस प्रकार सामने दिखाई देने वाले बिंब की सूचना प्रकाश की गति के हिसाब से मस्तिष्क के दृश्य स्थान (ओप्टिक सेन्टर) में पहुँच जाता है।

इस दृश्य को मन के द्वारा प्रकृति के प्राण विद्युत प्रवाह में घोल कर वह दृश्य जो हमारे मस्तिष्क में है किसी भी दूरवर्ती व्यक्ति को भेज सकते हैं। उपग्रह-संचार पद्धति के विकास में इस मान्यता को भी पुष्ट कर दिया है, अब लंदन में होने वाली शल्य चिकित्सा को हजारों मील दूर के अस्पतालों में देखा जा सकेगा अभी रॉयल फ्री हॉस्पिटल के सर्जनों द्वारा संपर्क परीक्षणों को मैनचेस्टर का बर्मिंघम स्थित मेडीकल स्कूल के विद्यार्थियों ने देखा। इसमें भारतीय विद्यार्थियों सहित 2000 विद्यार्थी सम्मिलित थे। इस प्रणाली से किसी भी दृश्य को फोटो सेल्स के माध्यम से आठ संचार उपग्रह (टेलस्टार) जो पृथ्वी की परिक्रमा लगा रहे हैं, को भेजा। संचार उपग्रह ने उसे एक नियत फ्रीक्वैन्सी पर सारे संसार में फैला दिया। इस तरह एक ही दृश्य का सारे संसार में पहुँचना तक सम्भव है दूरदर्शी दृश्यों को देखने के पीछे प्रकाश-परमाणुओं पर पड़े बिम्बों को ऊर्जा की एक धारा में बहाकर लाना या ले जाना होता है, जिसे नियंत्रित मन से पूरा किया जा सकता है। हम किसी के मन में अचानक सन्देश और दृश्य भेज ही नहीं-सुन और देख भी लेते हैं, वह सब इन प्रकाश अणुओं और उसमें व्याप्त चेतना की ही करामात होती है।

अपनी उपस्थिति को कोई व्यक्ति और यंत्र न पकड़ सके, प्रकाश अणु के नियंत्रण में ऐसी भी शक्ति है। ‘देहरादून उपकरण अनुसंधान एवं विकास संस्थान’ ने एक ऐसे उपकरण का आविष्कार किया है, जो अवरक्त प्रकाश (इन्फ्रारेड लाइट ) उत्पन्न करके प्रकाश किरणों के मार्ग में इन किरणों का जाल फैला देता है, फलस्वरूप आपका यह शरीर ही दुश्मन के पास खड़ा हो तो वह भी आपको देख न सकेगा, जबकि आप उसे अच्छी तरह देख रहे होंगे।

प्रकाश के यह जादू ही मन के वह चमत्कार हैं, जिसका प्रयोग योगियों ने चेतना के स्तर पर किया और बिना पाँव गमन, बिना आँखों देखना तथा बिना कान के सुनना, जैसे चमत्कारों का स्वामित्व प्राप्त किया। मन की यह शक्तियाँ आत्मिक स्तर पर बड़ी स्थूल है। मन की सामर्थ्य उससे हजार गुना अधिक है, उसे अच्छी प्रकार साध लिया जाये तो मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चारण, ईशत्व, वशीत्व जैसी दुर्लभ सिद्धियाँ भी मनुष्य इस शरीर में रहकर ही प्राप्त कर सकता है।


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