महाराज अज के समय की बात है, एक दिन महर्षि वशिष्ठ किसी यज्ञ में पुरोहित बनकर जा रहे थे। मार्ग में मंकी नामक एक व्यक्ति मिला। उसने अपना दुःख प्रकट करते हुए कहा- “देव मैंने सदैव सदाचरण किया है तो भी आज तक किसी ने न तो मेरी प्रशंसा की न ही प्यार।”
वशिष्ठ ने कुछ विचार किया फिर बोले-”आज से सदाचरण के साथ वाणी से सदा सुन्दर बोलने का भी अभ्यास करो तो तुम्हें सर्वत्र सम्मान मिलेगा।” प्रिय बोलने के अभ्यास से मंकी कुछ ही दिनों में सर्वप्रिय बन गया।