अगला विदाई वर्ष और हमारा पवित्र कर्त्तव्य

April 1970

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

पं. लीलापति शर्मा

परम पूज्य गुरुदेव वर्ष जून में अपनी उग्र तपश्चर्या के लिए सदा के लिए हिमालय पर जा रहे हैं। उनके असीम उपकार हम लोगों के ऊपर हैं। भविष्य में तो वे और भी अनेक गुने अनुदान अपने प्रिय परिजनों को देने के लिए अधिक प्रयत्न करने वाले हैं।

इस युग की इस दिव्य आत्मा के संपर्क सान्निध्य में इतनी लम्बी अवधि तक रहे यह हमारा परम सौभाग्य ही है। पर साथ ही उनके स्वरूप और मिशन को ठीक तरह समझ न सकने के कारण उनके स्नेह, प्रकाश एवं मार्गदर्शन का लाभ लेने से कतराते रहे, यह दुर्भाग्य भी कम नहीं है। यही समय है जबकि हम गुरुदेव के प्रति अपनी सच्ची निष्ठा प्रकट करने और उनका अनुगमन करने के लिए कुछ ठोस प्रयत्न करें।

निश्चय किया गया है कि हम गायत्री परिवार, अखण्ड-ज्योति और युग-निर्माण शाखाओं के सदस्यगण सन् 70 से लेकर एक वर्ष तक विदाई वर्ष मनायेंगे। गुरुदेव के इस जन्म का एक मात्र उद्देश्य जन-मानस में परिवर्तन करने के लिए ‘ज्ञान-यज्ञ’ अभियान को ज्योतिर्मय एवं गतिशील बनाना है। हम अगले वर्ष को ‘ज्ञान-यज्ञ’ वर्ष भी कह सकते हैं।

पूज्य आचार्य जी 3 जून 71 को गायत्री जयन्ती मथुरा में मनाकर उसके दो-चार दिन बाद ही सदा के लिए अपनी साधना के लिए चले जायेंगे। अस्तु मई सन् 70 से लेकर मई 71 तक का एक वर्ष-विदाई वर्ष के रूप में मनाया जाय। इसी अवधि में आचार्य जी के शरीर का साठवाँ वर्ष पूरा होता है। 60 और 75 वें वर्ष में “हीरक जयन्ती” मनाये जाने की प्रथा है। इस वर्ष को ‘गुरुदेव का हीरक जयन्ती वर्ष’ भी कह सकते हैं। इसे ‘ज्ञान-यज्ञ वर्ष’ भी कह सकते हैं। क्योंकि आचार्य जी के इस जन्म का एकमात्र प्रयोजन नव-निर्माण के आधार बिन्दु ‘ज्ञान-यज्ञ’ को प्रभावी बनाना ही तो है। उनकी रुचि, इच्छा, आकाँक्षा, अभिलाषा, चेष्टा, क्रिया, साधना, तपस्या सब कुछ इसी केन्द्र बिन्दु के इर्द-गिर्द घूमी है। परिजनों को इस अभियान में सम्मिलित होने की आशा अनिवार्य स्तर पर रखी गई है। यों युग-निर्माण के शत सूत्री कार्यक्रम भी उन्होंने प्रस्तुत किये हैं और अपनी रुचि, सुविधा एवं योग्यता के अनुरूप उन्हें भी कार्यान्वित करने की प्रेरणा दी है। पर प्रथम और अनिवार्य प्रक्रिया के रूप में उन्होंने ज्ञान-यज्ञ की सदस्यता को ही आगे रखा है। नाम जो भी हो हम लोगों के लिए यह इतना आवश्यक है कि आचार्य जी के प्रति अपने संपर्क की सार्थकता सिद्ध करने के लिए इस वर्ष को कुछ निर्दिष्ट कार्यक्रमों के साथ मनाने के लिए आलस्य और प्रमाद छोड़कर तत्परतापूर्वक कदम बढ़ायें।

कार्यक्रम क्या हों, इस सम्बन्ध में गम्भीर विचार विनिमय के पश्चात् एक दस-सूत्री योजना बनाई गई है और आशा की गई है अपना समस्त परिवार इसे पूरा करने के लिए एकबारगी उठ खड़ा होगा और हममें से कोई भी ऐसा न रहेगा जिसके ऊपर इस अवसर पर भी उपेक्षा करने का आरोप लगाया जाय।

दस-सूत्री कार्यक्रम इस प्रकार हैं-

(1) पूज्य आचार्य जी की भावी साधना की सफलता के लिए हममें से प्रत्येक एक माला गायत्री मन्त्र की अतिरिक्त जप प्रारम्भ करें और उसे एक वर्ष तक चालू रखें। गायत्री जयन्ती और बसन्त पन्चमी को दो सामूहिक यज्ञ भी छोटे या बड़े जैसे भी बन पड़ें कर लें।

(2) एक घण्टा समय और दस पैसा प्रतिदिन ज्ञान-यज्ञ के लिये निकालें उससे अपने घर में युग-निर्माण साहित्य का एक घरेलू ज्ञान मन्दिर पुस्तकालय स्थापित करें। इस वर्ष हर महीने एक दिन की आमदनी बचावें और उस पैसे से अब तक का सारा युग-निर्माण साहित्य खरीद कर अपना घरेलू पुस्तकालय पूर्ण कर लें।

(3) नव-निर्माण साहित्य के स्वाध्याय के लिये कुछ नियमित समय नित्य निकालें और एक घण्टा समय जो ज्ञान-यज्ञ के लिए देना है, उसे इस प्रेरक साहित्य के अपने परिवार के सदस्यों और परिचित लोगों को पढ़ाने या सुनाने के लिए लगाने का नियम बनावें।

(4) अपने क्षेत्र में नियमित रूप से युग-निर्माण साहित्य पढ़ाने और बेचने के लिए एक चल पुस्तकालय-बिक्री गाड़ी-का प्रबन्ध करें।

(5) अपने क्षेत्र में एक पाँच कुण्डी छोटे या बड़े गायत्री यज्ञ और युग-निर्माण सम्मेलन का सामूहिक आयोजन करें और उसके माध्यम से उपस्थित लोगों को भावनात्मक नव-निर्माण की विधि व्यवस्था से परिचित करायें।

(6) इस वर्ष 15 मई 70 से 15 अक्टूबर तक चार-चार दिने के लगातार परामर्श शिविर गायत्री तपोभूमि में चलेंगे। इनमें से किसी में सभी परिजनों को सम्मिलित होने की तैयारी अभी से करनी चाहिये।

(7) संगठन, प्रचार, प्रवचन, यज्ञ व्यवस्था आदि ज्ञान-यज्ञ से सम्बन्धित कार्यों के लिए जो अपने को योग्य उपयुक्त समझते हों, वे अपने अवकाश का समय संस्था को दे दें और अपने पूरे परिचय सहित उसकी सूचना भेजें ताकि उस समय का उपयोग करने की व्यवस्था पहले से ही की जा सके।

(8) हिन्दी के अतिरिक्त गुजराती, मराठी, अँग्रेजी, उर्दू, तमिल, बांग्ला आदि अन्य भाषाओं में अखण्ड-ज्योति और युग-निर्माण पत्रिकाओं का साराँश लेकर मासिक पत्रिकायें निकाली जानी हैं और ट्रैक्ट साहित्य प्रकाशित किया जाना है। अन्य भाषा-भाषी अपनी भाषाओं में यह अनुवाद प्रकाशित कराने और फैलाने में योगदान करें।

(9) अखण्ड-ज्योति और युग-निर्माण पत्रिकाओं के लिए नये सदस्य बनाने के लिए अपने क्षेत्र में टोली बना कर भ्रमण करें।

(10) आचार्य जी के संपर्क में आने पर जिसने जो पाया है, उसका विवरण भेजें ताकि ऐसे संस्मरणों का एक विशाल ग्रन्थ प्रकाशित किया जा सके।

उपरोक्त दस कार्यक्रमों का स्वरूप, स्पष्टीकरण इस प्रकार है।

(1) हम 50 लाख व्यक्तियों में से 24 लाख भी प्रतिदिन एक-एक गायत्री महामन्त्र का जप पू. आचार्य जी द्वारा अगले वर्ष आरम्भ की जाने वाली इस युग की उग्रतम तपश्चर्या को सफल बनाने के लिये आरम्भ करें तो हर दिन 24 करोड़ गायत्री जप होता रह सकता है। इससे अन्तरिक्ष की शुद्धि भी होगी और उस तपश्चर्या में आने वाले विघ्नों का भी शमन होगा। इस जप पुरश्चरण में सम्मिलित होने वाले सामूहिक रूप से वर्ष में दो बार गायत्री जयन्ती और बसन्त-पंचमी को 100 आहुतियाँ भी दे लें तो अगले वर्ष 24-24 करोड़ आहुतियों के ही गायत्री महायज्ञ हो सकते हैं। अपना परिवार इस अमृत पूर्ण एक वर्ष साधना क्रम को ठीक तरह चला ले तो उसका सूक्ष्म जगत की परिशुद्धि पर भारी प्रभाव पड़ेगा।

(2) बच्चों के पैसा जमा करने की गुल्लकों की तरह ‘ज्ञान-यज्ञ’ के धर्म घट टीन के बने बहुत सुन्दर छोटे-छोटे बक्स बनाये गये हैं। इन्हें अपने पूजा के स्थान पर स्थापित करें और प्रतिदिन दस पैसा उसमें डालें। कभी नागा हो जाय तो अगले दिनों उसकी पूर्ति कर लें। धर्म घटों की स्थापना में भूल होने की आशंका न रहेगी और यह क्रम निरन्तर चलता रहेगा।

यह बचत 3 रु. मासिक की हुई। इससे अखण्ड-ज्योति और युग-निर्माण पत्रिका का चन्दा 12 रु. वर्ष (एक रुपया मासिक) गया। शेष 2 रु. मासिक से विज्ञप्ति वितरण किया जाय और नये प्रकाशित होते रहने वाले ट्रैक्ट साहित्य को मँगाया जाता रहे। इस प्रकार घरेलू ज्ञान मन्दिर पुस्तकालय की नियमित व्यवस्था इस धर्म घट के माध्यम से दस पैसा रोज निकालने से चलती रहेगी। धर्म घट लगभग 1 रु. के हैं। इन्हें मँगाकर अपने और अन्य परिजनों के घरों में स्थापित करने की व्यवस्था तुरन्त की जाय।

अब तक 200 निबन्ध-ट्रैक्ट 62 जीवन चरित्र, 12 पुस्तकें कविता, 10 कहानियाँ छोटी पुस्तिकाओं के रूप में छपी हैं। 1) सीरीज की 45 पुस्तकें, धर्म-मंच वाली पुस्तकें यह सभी साहित्य अपने घरेलू पुस्तकालय में होना चाहिये। अब तक जो पुस्तकें न आई हों, उन्हें अब मँगा लिया जाय। इसके लिये एक वर्ष तक महीने की आमदनी व्यय करने का संकल्प लेना चाहिये।

अच्छा यह है कि जो साहित्य कम पड़ रहा है उसे इकट्ठा ही रेल-पार्सल से मँगा लिया जाय। उसमें पैसा इकट्ठा लगा दिया जाय और उसकी पूर्ति हर महीने वाली बचत राशि में से कर ली जाय। जिनके पास इकट्ठा प्रबन्ध न हो, वे किसी मित्र से उधार लेकर यह व्यवस्था आरम्भ में ही कर लें और इनका उधार हर महीने की बचत में से चुकाते रहें। पुस्तकालय शीघ्र ही पूरा कर लेने के लिए आरम्भ में ही इकट्ठा साहित्य मँगा लेना उत्तम है। यों दो-दो महीने की बचत इकट्ठी करके धीर-धीरे भी पूरा साहित्य मँगाया जा सकता है। पर अच्छा यही है कि एक बार आरम्भ में ही सब मँगाकर पुस्तकालय पूरा कर लिया जाय।

(3) घर पर रहकर, यात्रा में या काम-धन्धे के बीच फुरसत के समय में नित्य एक घण्टा युग-निर्माण साहित्य का स्वाध्याय करना चाहिये। इससे आत्म-निर्माण होगा। घर के हर वयस्क सदस्य को यह साहित्य पढ़ाने या सुनने का क्रम चलाया जाय। इसके लिये रात्रि को एक परिवार-गोष्ठी चलाई जाय जिसमें घर के लोगों को इकट्ठा करके एक व्यक्ति उन्हें सुनाया करे। पढ़े सदस्य स्वयं पढ़ा करें। यह व्यवस्था परिवार-निर्माण के लिये आवश्यक है। पड़ोस, रिश्तेदार, साथी, सम्बन्धी और परिचितों को इस साहित्य का महात्म्य, महत्व बताकर पहले रुचि जगाई जाय, फिर उनकी रुचि के अनुरूप पुस्तकें दी जायें और वापिस ली जायें। यह कार्य आरम्भ में विज्ञप्तियों से चलाया जाय, जो जिस विषय को पसन्द करें, उन्हें उस विषय की पुस्तकें दी जायें। यह झोला पुस्तकालय क्रम समाज-निर्माण के लिये अति आवश्यक है।

इस प्रयोजन के लिये प्लास्टिक के बने, बहुत ही सुन्दर और सुविधाजनक ‘हैंड-बैग’ बनाये गये हैं, जिन पर ऊपर ‘युग-निर्माण योजना, मथुरा’ और नीचे विचार क्राँति अभियान तथा बीच में हाथ समेत मशाल वाला चित्र छपा है। यह बैग 7 रु. रुपये में गायत्री तपोभूमि से मिल सकते हैं।

(4) चल पुस्तकालयों के लिये ठोस रबड़ चढ़ी बाल वियरिंग वाली बहुत हलकी चलने वाली बड़ी आकर्षक गाड़ियाँ बनाई गई हैं। इनमें सारा साहित्य रखे जाने के लिये और आवश्यक सामान रखने के लिये पर्याप्त स्थान है। तीन ओर प्रचार-बोर्ड लगे हैं। इन गाड़ियों का सूक्ष्म 300 रु. है। 700 रु. का साहित्य लेकर 1000 रु. रुपये में यह एक पूरी संस्था या दुकान बन जाती है।

घर-घर, गली-मुहल्ला में ले जाकर विज्ञप्तियों और पुस्तकें पढ़ाने के लिये यह साधन बहुत ही उपयुक्त है। जिन्हें यह साहित्य पसन्द आये, वे खरीदते भी रहें। इसके लिए विद्यालयों, मन्दिरों, घाटों, दफ्तरों, फैक्ट्रियों, पार्कों में यह गाड़ी ले जाई जा सकती है और कुशल प्रचारक इस आकर्षक एवं उपयोगी साहित्य को बड़ी तादाद में बेचते रह सकते हैं। जहाँ कुशल व्यक्ति वैतनिक रूप से उस गाड़ी को चलाने के लिये मिल जायें वहाँ कमीशन में उसका खर्च चल सकता है। जहाँ अवैतनिक सेवा-भाव से हो सकता हो, वहाँ फुरसत का समय मिल-जुलकर निकालते हुए यह क्रम चलाया जा सकता है। घर-घर, जन-जन तक यह चल पुस्तकालय नितान्त आवश्यक है।

1000 रु. की पूँजी जुटाना कुछ बहुत कठिन काम नहीं है। चूँकि इसमें पैसा सामने है और सुरक्षित है, डूबने का भी कोई खतरा नहीं। इसलिये कोई एक खाता-पिता व्यक्ति या कई मिलकर यह पूँजी उधार के रूप में दे सकते हैं। कोई दानी भी इस ज्ञान-मन्दिर के लिये उदारता-प्रदर्शित कर सच्चा देवालय बनाने का पुण्य लाभ कर सकते हैं। शेयरों से भी यह पैसा जुटाया जा सकता है। सार्वजनिक चन्दा करना हो तो वह भी उचित है।

(5) पाँच कुण्डी गायत्री यज्ञ के लिये धार्मिक जनता आसानी से दान दे सकती है और मितव्ययितापूर्वक हवन करके उसी के साथ ज्ञान-यज्ञ का चिर स्मारक- ‘चल पुस्तकालय’ भी पूरा किया जा सकता है। बड़ी पूँजी से इतना प्रभावशाली माध्यम और कोई हो नहीं सकता। इसलिये नगर एवं क्षेत्र में इन गाड़ियों के लिये पैसे की, कार्यकर्त्ताओं की व्यवस्था की जाय।

इन यज्ञ आयोजनों के साथ युग-निर्माण सम्मेलन भी रखे जायें और समीपवर्ती प्रभावशाली, प्रगतिशील विचारों के वक्ताओं को पहले से ही प्रवचन का विषय बताकर उसके लिये उन्हें तैयार किया जाय, इसके लिये अपने साहित्य में से ही कुछ पुस्तकें उन्हें तैयारी के लिये पहले से ही दी जा सकती हैं। ऊटपटाँग अव्यवस्थित दिमाग के लोगों को इसलिए अपने मंच पर स्थान न मिलना चाहिए कि वे तथाकथित धार्मिक व्यक्ति हैं। प्रतिक्रियावादी नहीं, प्रगतिशाली विचार ही अभीष्ट हैं। इसलिये वक्ताओं को पहले से ही तैयार करना चाहिये तभी यज्ञों के साथ जुड़े हुए युग-निर्माण सम्मेलन सफल होंगे।

विचार है कि जिस प्रकार 1000 कुण्डी यज्ञ सन् 59 वाले व 1 वर्ष के आचार्य जी के अज्ञातवास के प्रारम्भ में किया गया था, उसी प्रकार के पाँच-पाँच कुण्ड वाले 250 गायत्री यज्ञ विभिन्न शाखाओं में इस वर्ष हो जायें तो खण्ड क्रम से 250 5 1250 सवा हजार कुण्डों का 25 लाख आहुतियों का एक पहले जैसा ही महायज्ञ सम्पन्न हो जाय। पहले एक ही जगह यज्ञ था तो 24 लाख आहुतियाँ दी गईं अब की बार खण्ड क्रम होने से 1 लाख आहुतियाँ और बढ़ा दी जायें। इस महापुरश्चरण से सूक्ष्म जगत् में नवनिर्माण के उपयुक्त परिस्थितियाँ उत्पन्न करने में बड़ी सहायता मिलेगी।

इन यज्ञों में बुद्धिमतापूर्वक योजना बद्ध रूप से कुछ बचत का उपरोक्त क्रम बनाया जाय तो 250 ज्ञान यज्ञ चल पुस्तकालय भी इसी योजना के अंतर्गत चल सकते हैं।

(6) पू. आचार्य जी जून ‘71 में गायत्री जयन्ती मनाकर अपना प्रयाण करने जा रहे हैं। सम्भवतः स्नेही-स्वजन उस समय उन्हें अन्तिम विदाई देने आयें। पर इससे सभी कोमल हृदयों पर-आचार्य जी के ममता भरे अन्तःकरण पर भी आघात लगेगा। उस भावनात्मक वातावरण में-बड़ी भीड़ के बीच कुछ काम की बात और परामर्श करना सम्भव न होगा। इसलिये उस समय कुछ उत्सव-आयोजन करने का विचार नहीं है।

किन्तु उत्तम विचार-विनिमय और परामर्श की आवश्यकता तो है ही। इसलिये 15 मई 70 से 15 अक्टूबर ‘70 तक लगातार चार-चार दिन के शिविर रखे गये हैं और सभी सम्बद्ध परिजनों को उनकी अपनी सुविधा वाले शिविर में सम्मिलित होने और उसकी पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने का अनुरोध किया गया है। यह शिविर इस दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं कि आचार्य जी को किसके लिये क्या कहना है और स्वयं अपनी गतिविधियों का क्या निर्धारण करना है। इसकी एक दीर्घकालीन व्यवस्था बना ली जाय। इन शिविरों में प्रातःकाल एक प्रवचन हुआ करेगा। शेष समय में विचार-विनिमय का ही क्रम चलता रहेगा और हर परिजन उनसे अपने भावी जीवन की एक स्पष्ट रूप-रेखा लेकर जा सकेगा। इन शिविरों में 100-100 से अधिक आगन्तुकों को स्वीकृति न मिलेगी। क्योंकि अधिक एक साथ आ जाने पर व्यक्तिगत विचार-विनिमय विस्तृत रूप से नहीं हो सकता। इन शिविरों में सभी भावनाशील परिजनों को आने के लिये आमन्त्रित किया गया है। हर शाखा के लोग टोलियाँ बनाकर आवें। तीर्थयात्रा के लिये, अनुष्ठान के लिये, अधिक दिन रहने के लिये, अधिक बच्चे-कच्चे सहित इन शिविरों में आना निषिद्ध है।

(7) इस वर्ष सभी नये, सभी जीवित एवं सक्रिय आचार्य अपने यहाँ पाँच-पाँच कुण्डी गायत्री यज्ञ एवं युग-निर्माण सम्मेलन के आयोजन करेंगे। कम-से-कम 250 तो निश्चित ही हैं। इन आयोजनों में गायत्री तपोभूमि के प्रतिनिधि भी भेजे जाने आवश्यक हैं। इस प्रयोजन की पूर्ति के लिये ऐसे प्रबुद्ध व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ेगी, जो पू. आचार्य जी का प्रतिनिधित्व वहाँ जाकर कर सकें। इस स्तर के लोगों को इस अवधि में जितना अधिक अवकाश सम्भव हो, उतना लेकर उपरोक्त प्रयोजन के लिये अपना समय देना चाहिये। कितने ही व्यक्ति रिटायर होने के बाद सारा समय आचार्य जी की प्रेरणानुसार लगाने की बात सोचते रहते हैं। मालूम नहीं वह अवसर कभी आये या नहीं पर इस वर्ष एक अनुपम अवसर है। यह सोच लिया जाय कि इस वर्ष हम कुछ महीनों के लिए बीमार पड़ गये हैं और अपने काम-व्यवसाय को दूसरे साथियों के सहारे चलाना पड़ रहा है तो किसी को भी छुट्टी मिल सकती है। नौकरी, कृषि, व्यवसाय कुछ भी करने वाला इस दृष्टिकोण को सामने रखे तो अवकाश मिल ही सकता है। कम-से-कम दो महीने और अधिक-से-अधिक छः महीने या पूरे वर्ष के लिये अवकाश लेकर मथुरा आने वाले इस एक वर्षीय विशेष योजना को सफल बनाने के लिए बहुत काम कर सकते हैं। जिन्हें ऐसी तत्परता हो वे अपनी योग्यता और अनुभव का पूरा विवरण लिखते हुए मथुरा सूचना भेजें ताकि उनके समय का उपयोग किया जा सके।

चूँकि अगले वर्ष पू. आचार्य जी का कार्यक्रम व्यस्त है। मई से अक्टूबर तक उन्हें चार-चार दिवसीय शिविर चलाने हैं। इसके बाद नवम्बर से अप्रैल तक उन्हें अधिकाँश समय हरिद्वार-ऋषिकेश के बीच सप्तर्षियों की तपोभूमि-गंगा तट पर माता भगवती देवी के निवास के लिये जो आश्रम बन रहा है, उसका निर्माण-कार्य कराना है। माता जी को सुनसान जंगल में रहने का अभ्यास भी कराना है। इसलिये वे दोनों अधिकतर उस अवधि में वहीं रहेंगे। बीच-बीच में मथुरा की व्यवस्था देखने के लिये आते-जाते तो रहेंगे पर इन यज्ञ आयोजनों में उनका जा सकना सम्भव न होगा। आयोजनकर्ता स्वभावतः मथुरा से किसी को बुलाने का आग्रह करेंगे। इसकी पूर्ति के लिये प्रतिनिधियों को भेजे जाने की आवश्यकता पड़ेगी। इसी प्रयोजन के लिये प्रतिभाशाली व्यक्तियों की आवश्यकता अनुभव की गई है। यह समय अवैतनिक रूप में ही देना है।

(8) युग-निर्माण योजना एवं ज्ञान-यज्ञ का सारा मिशन अभी तक हिन्दी भाषी लोगों तक ही सीमित रहा है। यह एक सीमित क्षेत्र है। समय आ गया है कि अब उनका मिशन देशव्यापी बने। इसके लिए अन्य भाषाओं का भी सहारा लेना अनिवार्य है। अपनी दोनों पत्रिकाओं में आचार्य जी जो कुछ लिखते हैं उसका साराँश लेकर निकलने वाली एक पत्रिका हर भाषा में होनी चाहिये और सारा साहित्य उन भाषाओं में अनुवादित, प्रकाशित होना चाहिये।

इस वर्ष गुजराती, अँग्रेजी और मराठी में यह कार्य आरम्भ करने का निश्चय किया गया है। अस्तु इन भाषाओं से सम्बन्ध रखने वाले परिजनों के कन्धों पर विशेष जिम्मेदारी आई है। उन्हें अपनी भाषा की पत्रिका के कितनी संख्या में ग्राहक बना देंगे, यह पेशगी वचन देना चाहिए। इन वचनों की संख्या देखकर निकालने का साहस किया जायेगा। फिलहाल इस भाषा से सम्बन्धित स्वजनों के उत्साह के साथ परिश्रम करने और ग्राहक बनाने का उत्तरदायित्व अपने-अपने कन्धों पर उठायें। पत्रिकाओं का चलना ग्राहक संख्या पर ही निर्भर है। इसलिये जिन्हें अपनी भाषा-क्षेत्र में इस मिशन का प्रकाश पहुँचाने की आवश्यकता अनुभव होती हो उन्हें उसके लिए कुछ सहयोग करने के लिए भी तैयार होना ही चाहिये।

अन्य भाषाओं में अच्छी योग्यता रखने वाले अनुवाद कार्य में भी सहयोग दे सकते हैं हर महीने एक दिन की आमदनी अन्य भाषाओं वाले इसी प्रयोजन के लिए भेजते रह सकते हैं। इससे आर्थिक साधन जुटेंगे और उपरोक्त महान् कार्य के लिए व्यवस्था बनेगी। उदार और सम्पन्न लोग कुछ आर्थिक सहायता इस प्रयोजन के लिए दे सकते हैं।

बड़े गायत्री यज्ञों की बचत निश्चित रूप से इसी कार्य के लिए भेजी जानी चाहिए। कई शाखायें यज्ञ-बचत का पैसा अपने धर्मशाला, मन्दिर आदि स्थानीय कार्यों के लिए रोक लेती हैं। उन्हें अपनी स्थानीय शोभा की संकीर्णता से ऊँचा उठकर यह देखना चाहिए कि पहले जड़ को पानी दिया जाना चाहिये, पत्ते पीछे भी सींचे जा सकते हैं। जड़ सूख रही हो, प्यासी हो तब अपने पत्ते पल्लव मात्र की बात सोचना कहाँ तक उचित है, इसे कोई भी विवेकशील सोच सकता है। जहाँ पिछले यज्ञों की बचत जमा है, उनको विशेष ध्यान देना चाहिए और वह पैसा गायत्री तपोभूमि भेज देना चाहिए। अगले एक वर्ष में तो बिलकुल यही किया जाय, स्थानीय निर्माण की बात सोचना अगले वर्षों के लिये स्थगित कर दिया जाये। शाखाएं यह उदारता बरतें तभी अपना मिशन विश्व-व्यापी बन सकेगा और उसकी जड़ें मजबूत होंगी।

(9) इस वर्ष प्रभावशील सदस्यगण टोलियाँ बना कर अपने क्षेत्र के विचारशील लोगों से संपर्क बनाने के लिए निकलने की योजना बनायें और पहले अपनी दोनों पत्रिकाएं उन्हें नमूने के लिए दिखायें-पढ़ायें। पीछे उनकी उपयोगिता समझाकर ग्राहक बनने के लिए जोर दें। यह प्रयत्न हर जगह किए जाने लगें तो अपने मिशन को व्यापक बनाने वाली प्रधान शक्ति - पत्रिकाओं का सेवा क्षेत्र अनेक गुना हो सकता है और युग-निर्माण का प्रकाश अब की अपेक्षा बहुत व्यापक बन सकता है। यह कार्य देखने में नगण्य-सा है पर इसकी उपयोगिता और प्रतिक्रिया इतनी बड़ी है कि देखते-देखते मिशन की गति-विधियाँ अनेक गुनी हो सकती हैं और असंख्य नये व्यक्ति प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए इस दिशा में सर्वत्र तत्परता बरती जाय और हर सदस्य सदा इसके लिए प्रयत्नशील रहे। इस वर्ष यह प्रयोजन पूरी शक्ति के साथ पूरा किया जाय।

(10) पू. आचार्य जी के संपर्क में आकर हर व्यक्ति ने कुछ न कुछ आध्यात्मिक भौतिक लाभ प्राप्त किये हैं पारस को छूने वाले लोहे का काया-कल्प होने की तरह उनके संपर्क का प्रतिफल हर किसी को मिला है। किसी को दोष-दुर्गुणों से मुक्ति मिली है। किसी ने उत्कृष्टता की दिशा में ऐसी प्रगति की है, जिसे जीवन का कायाकल्प ही कहना चाहिए। आर्थिक तंगी से निवृत्ति, कठिन रोगों से छुटकारा, विद्या-बुद्धि में आश्चर्यजनक प्रगति, अवरुद्ध प्रगति पथ का खुलना, विपत्तियों से छुटकारा आक्रमणों और आघातों से बचाव, भयंकर दुर्घटना एवं प्राण संकट में भी बच जाना, सन्तान-हीनों को संतान प्राप्ति आदि लाभ अगणित लोगों को उन्होंने दिए हैं। पर साथ ही उन सबसे चर्चा करने का निर्देश भी कर दिया था, क्योंकि उन्हें अपनी प्रशंसा सुनना और इस प्रकार की चर्चा फैलाने देना अभीष्ट न था। वे लोगों के सामने धर्म प्रचारक और समाज सुधारक के रूप में ही रहना चाहते थे, इसलिए इस चर्चा को फैलाने न देने और उस पर प्रतिरोध लगाना उचित हो सकता था। पर अब वे हम लोगों के बीच से जा रहे हैं। इसलिये स्वभावतः वे प्रतिबन्ध भी समाप्त हो जाते हैं। सर्व साधारण को यह विदित होना लाभदायक ही है कि सच्ची आध्यात्मिकता और तपश्चर्या का मार्ग अपना कर, गायत्री उपासना का अवलम्बन लेकर कोई कितना समर्थ बन सकता है। इस चर्चा से लोगों का आकर्षण और झुकाव आध्यात्मिकता की दिशा में होगा। अतएव आचार्य जी के न रहने पर उनकी पीठ पीछे प्रतिबन्ध को समाप्त हुआ ही समझा जायेगा।

विचार यह है कि एक विशाल ग्रन्थ आचार्य जी के व्यक्तित्व की महानता के संस्मरणों का तथा उनके संपर्क में आने से प्राप्त होने वाले लाभ विवरणों का प्रकाशित किया जायेगा, पत्रिकाओं के विशेषाँक के रूप में भी प्रकाशित हो सकता है। अस्तु ऐसे भी लोगों से जिनने गुरुदेव के संपर्क में आकर भौतिक या आध्यात्मिक कुछ लाभ पाया हो, कुछ प्रकाश प्राप्त किया हो, या अपने में परिवर्तन उत्कर्ष अनुभव किया हो, उसका सारा विवरण विस्तारपूर्वक लिख भेजें। संपर्क से पूर्व की कठिनाई तथा बाद की प्रगति सुविधा दोनों ही पक्ष लिखे जाने से बात पूरी होती है। ऐसे विवरण अपने तथा उन सब लोगों से जिनके पास यह अनुरोध नहीं पहुँच सका है, एकत्रित करके शीघ्र ही भिजवाने चाहियें। अपने क्षेत्र के अनुभवों को इकट्ठा करने का काम उत्साही लोग आसानी से कर सकते हैं ऐसे अनुभव प्रेषकों के आधे शरीर वाले फोटो को भी भेजना चाहिये। जिससे विवरण सचित्र छपवाया जा सके।

इस ग्रन्थ की तैयारी एवं छपाई शीघ्र ही आरम्भ होने वाली है। एक वर्ष के भीतर इस बहुत बड़े काम को पूरा किया जाना है, इसलिये ऐसे अनुभव जितनी शीघ्र भेजे जा सकें, उतना ही अच्छा है। देर से आने वाले अनुभवों को सम्मिलित करने में कठिनाई पड़ेगी।

पीछे जिन दस कार्यक्रमों की चर्चा की गई है, उन्हें कार्यान्वित करने में शीघ्र ही हमें अपनी सारी शक्ति लगा देनी चाहिये। यह सन्देश अपने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिये वरन् अपने संपर्क के सभी स्वजनों को इकट्ठा करके अथवा उनके पास घर-घर जाकर इसे पहुँचाना चाहिये। हममें से प्रत्येक भावनाशील और सजग सक्रिय व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि अपने क्षेत्र में इस योजना की चर्चा जितनी शीघ्र जितनी तरफ पहुँचा-फैला सकते हों, उसमें तनिक भी कमी न रखें।

हमें विश्वास है कि प्रत्येक भावनाशील व्यक्ति- इस योजना को प्रसारित एवं कार्यान्वित करने के लिये अपनी स्थिति के अनुसार इस फिर कभी न आने वाले अवसर पर- अधिक से अधिक तत्परता एवं सक्रियता बरतने में कुछ उठा न रखेगा।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118