यह अधिकार नारद को ही था कि वे भगवान कृष्ण के अन्तःपुर तक चले जाते थे। उन्हें टोकने का किसी को साहस न होता था।
एक बार ऐसे ही वे जब द्वारिका पहुँचे तो भगवान् कृष्ण कहीं दिखाई नहीं दिये, नारद सीधे रुक्मिणी के पास पहुँचे और पूछा- “आज यजमान के दर्शन नहीं हो रहे हैं, कहाँ है वे?”
रुक्मिणी ने पूजा गृह की ओर संकेत करते हुए कहा- “वहाँ बैठे जप कर रहे हैं”
नारद को बड़ा आश्चर्य हुआ वे पूजा गृह में पहुँचे तो देखा भगवान् श्रीकृष्ण सचमुच ध्यान लगाये बैठे हैं। नारद की आहट पाते ही उन्होंने आंखें खोल दीं और उनका हंसकर स्वागत किया।
नारद ने आश्चर्य से पूछा- “हे भगवन् आप किसका ध्यान करते हैं।”
भगवान कृष्ण ने गम्भीर होकर उत्तर दिया- “नारद! जो मेरा ध्यान करते हैं, मुझे भी उनका ध्यान करना पड़ता है।”