गड़रिये ने भेड़ को बड़े प्यार से कन्धे से उतारा उसने स्नान कराया, बाल सुखाये और हरी घास खाने को दी जब भेड़ उस घास को खा रही थी, तब गड़रिये का आह्लाद देखते ही बनता था। महापुरुष ईसा उस गड़रिये की पर्णशाला के समीप बैठे विश्राम कर रहे थे। उन्होंने इस प्रसन्नचित गड़रिये को देखकर पूछा- वत्स! आज तुम इतने प्रसन्न क्यों हो रहे हो?
महात्मन्! यह जंगल में प्रायः हमेशा भटक जाती है मेरे पास सौ और भी भेड़ें हैं पर वह सब सीधे घर आती हैं, इसे इतना प्यार इसलिये दिया कि यह फिर कहीं न भटके।
और तब ईसा ने अपने शिष्यों से कहा जो अपने राह से भटक गये हैं उन मनुष्यों को प्यारपूर्वक ही सीधे मार्ग पर लाना चाहिये।