जब तक मैं हरा था, मुझमें फूल लगते थे, फल आते थे तब यही लोग मेरे पास झोलियाँ लेकर आते थे, सेवा और सत्कार करते थे और आज जब मैं सूख गया हूँ, तब देखो यही लोग कुल्हाड़े लिये मुझे काटने आ रहे हैं। एक वृक्ष ने अपने साथी वृक्ष को दूर से आते हुये लोगों की ओर उंगली उठाकर कहा।
“ऐसा सोचने की अपेक्षा”- दूसरे वृक्ष ने उत्तर दिया- आप यह सोचते कि मेरी तो मृत्यु भी सार्थक हुई जो अब भी मैं लोगों की आवश्यकतायें पूरी कर सकता हूँ तो मित्र इस समय भी तुम्हें कितनी शक्ति कितना सन्तोष मिलता?