मारने की बात बहुत हो चुकी, कुछ जिलाने की भी हो (1)

April 1970

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6 अगस्त 1945 को जापान के प्रमुख नगर हिरोशिमा पर जो बम गिराया गया था, उसकी शक्ति 20 हजार टी. एन. टी. के विस्फोट के बराबर थी। इस बमों के समाज में पिद्दी समझे जाने वाले बम ने एक लाख जापानियों को पल भर में ढेर कर दिया था। आज संसार में जितनी मारक शक्ति है, उससे तो सारी पृथ्वी को कम से कम 103 बार मारा जा सकता है।

संसार में जन्म लेने और जीवित रहने की आकाँक्षा प्रत्येक जीवनधारी को रहती है। चींटी, दीमक, गिलहरी, साँप, बिच्छू जैसे निरन्तर असुविधाओं का सामना करने वाले जीव-जन्तु भी मृत्यु की विभीषिका को देखकर बिलबिला उठते हैं। जीवन हमारी मूल-आकाँक्षा है, संसार भर के व्यापार उसी के लिए चलते हैं। माना आज मानवीय संकट इतने बढ़ चुके हैं कि सारे विश्व में प्रतिदिन 1000 आत्म-हत्यायें होती हैं, फिर भी इस समय कुल जनसंख्या 3 अरब 80 करोड़ व्यक्तियों में से प्रतिवर्ष 1000&360=360000 (तीन लाख 60 हजार व्यक्ति ही जीवन से ऊबे हुये होते हैं शेष 3 अरब 79640000 व्यक्ति तो भी वे चाहे कितने ही वृद्ध और अपाहिज क्यों न हों जीवित रहना चाहते हैं, यदि इनमें प्रति 3 घण्टे में जन्म लेने वाली 10000 की दर भी जोड़ दी जाये तो जीवन की इच्छा रखने वालों का औसत और भी अधिक हो जाता है।

बहुमत की इस अन्तिम आवश्यकता को ठुकरा कर केवल मृत्यु, हत्या के लिए जो सरंजाम जुटाये जा रहे हैं वह बताते हैं कि आज के मनुष्य की बौद्धिक दिशायें सही नहीं हैं। ऊपर वह चाहे जितना पढ़ा-लिखा हो पर उसने मानवीय भावनाओं का आदर नहीं, तिरस्कार ही किया है।

टी. एन. टी. पूरा नाम- ‘टाइनाइट्रोटोल्युएन’ एक प्रकार का पीले वर्ण का स्फटिक की तरह का ठोस पदार्थ है और तारपीड़ो, सुरंग व बम आदि में विस्फोटक (एक्सप्लासिव) के रूप में प्रयुक्त होता है। इसका आविष्कार आल्फ्रेड नोबल नामक वैज्ञानिक ने किया था। हिरोशिमा में बम गिराने के बाद इस शक्ति का तेजी से विकास हुआ। सन् 1963 तक अकेले रूस और अमेरिका के पास क्रमशः 24075 मेगाटन, 21970 मेगाटन शक्ति के परमाणु बम विद्यमान थे। एक मेगाटन बम की क्षमता दस लाख टी. एन. टी. के बराबर होती है, तात्पर्य यह कि 1963 तक इन दोनों के पास क्रमशः 2407500000 टी. एन. टी. व 2197000000 टी. एन. टी. कुल 4604500000 टी. एन. टी. क्षमता के बम थे। यह क्षमता हिरोशिमा में गिराये गये बम की अपेक्षा 230225 गुनी अधिक थी, अर्थात् वह 23022500000 (तेईस अरब दो करोड़ पच्चीस लाख) व्यक्तियों को मारने वाली थी पर तब तक पृथ्वी की जनसंख्या कुल तीन अरब थी अर्थात् वह विस्फोटक क्षमता सारी पृथ्वी को भून डालने में प्रयुक्त हो तो पृथ्वी के लोगों को सात बार मारा जा सकता था।

यह बताता है कि मनुष्य ने अपनी बुद्धि का प्रयोग भौतिक विज्ञान की प्रगति में करके अच्छा नहीं किया। यदि यही प्रयत्न सद्भावनाओं को उभारने, आन्तरिक करुणा और मनुष्य-मनुष्य में प्रेम भाव जागृत करने के लिए किये गये होते तो आज का मनुष्य समाज न केवल इस विस्फोटक विध्वंसक विभीषिका से काँप रहा होता वरन् वह शाँति और प्रसन्नता का जीवन जी रहा होता। धर्म और संस्कृति की आवश्यकता को भुलाकर केवल पदार्थ की क्षमता बढ़ाने में आज के बुद्धिजीवी ने जो भूल की है, सम्भवतः उसे भविष्य में एकाएक सुधारा भी न जा सके। यदि किसी तरह कुछ प्रयत्न किये भी जायें तो कई एक शताब्दियाँ भी उसके लिए कम ही पड़ेंगी।

लन्दन की इन्स्टीट्यूट आफ स्ट्रेटेजिक स्टडीज की रिपोर्ट पर आधारित एक तालिका अमेरिकी काँग्रेस ने 16 जनवरी 1963 को प्रकाशित की थी, उसमें अमेरिका की अणु शक्ति का ब्योरा इस प्रकार दिया गया था-

बी. 47 बमवर्षक कुल शक्ति 6000 मेगाटन और उन्हें ढोने वाले नभयानों की संख्या 600, बी-52 बमवर्षक 12000 मेगाटन बम, 600 शस्त्रवाहक, बी-58 बमवर्षक 2000 मेगाटन, शस्त्रवाहक व 100 एटलस मिसाइल 110 मेगाटन, 120 शस्त्रवाहक टाइटन एक मिसाइल 50 मेगाटन 50 शस्त्रवाहक (एक जहाज में एक ही मिसाइल जा सकता है।) टाइटन दो मिसाइल तीस मेगाटन बम, तीस शस्त्रवाहक, मिनिटमन मिसाइल 500 मेगाटन बम, 500 शस्त्रवाहक, स्काईहाक ए- 4 डी (नौसेना के लिए) 1000 मेगाटन 1000 शस्त्रवाहक, स्काई वारियर ए-3 डी (यह भी नौसेना के उपयोग के लिए थे) 150 मेगाटन, 150 शस्त्रवाहक, पोलारिस पनडुब्बियाँ जिनमें से 15 में 16-16 मिसाइल भी फिट थे, 120 मेगाटन बम की शक्ति के थे और उन्हें ढोने के लिए 240 शस्त्रवाहक विमान थे। इस तरह 21970 मेगाटन शक्ति के बम और उन्हें खींचने और दूर ले जाकर गिराने के लिए 3390 विमान केवल अमेरिका के पास थे।

इस समय तक संसार में एक लाख या इससे अधिक जनसंख्या वाले शहरों की संख्या 2000 थी और उनमें 60 करोड़ स्त्री-पुरुष रहते थे। अब यदि यह बम गिराने में लगभग एक तिहाई बम भी बेकार हो जाते तो भी अमेरिका इन सभी शहरों को 125 बार नष्ट करने में समर्थ था। कदाचित इतनी शक्ति इन शहरों के लोगों को भोजन देने में प्रयुक्त होती तो अकेले इतनी ही शक्ति से प्रत्येक नागरिक को वर्ष भर पूरा पेट अन्न, वस्त्र और चिकित्सा का प्रबन्ध बड़ी आसानी से हो सकता था। उस समय तक साम्यवादी देश रूस और चीन के 370 बड़े शहर थे, उन्हें अमेरिका 500 बार नष्ट कर सकता था और अकेले सोवियत संघ से यदि वह लड़ता जो उसका एकमात्र जानी दुश्मन है तो वह उसे 1250 बार नष्ट कर सकने में तब समर्थ था, जब उसके आधे बम ही सही माने में काम देते।

इसी अवधि में रूस के पास अंतर्महाद्वीपीय मिसाइलों की शक्ति 1875 मेगाटन और उन्हें ले जाने वाले शस्त्रवाहक 75 थे, लम्बी मार करने वाले बमवर्षक 4000 मेगाटन और 200 शस्त्रवाहक, पनडुब्बियाँ 200 मेगाटन 200 शस्त्रवाहक, मध्यम मार वाली मिसाइलें 3500 मेगाटन और 700 शस्त्रवाहक, मध्यम मार के बमवर्षक 14000 मेगाटन, 1400 शस्त्रवाहक और अंतर्महाद्वीपों से दूर मार करने वाली मिसाइलें 500 मेगाटन थीं। कुल 24075 मेगाटन और 2475 शस्त्रवाहकों की शक्ति इतनी थी कि वह इन दो हजार शहरों को 160 बार नष्ट कर सकता था। नाटो संधि वाले देशों के 404 शहरों को वह 450 बार में तब नष्ट कर सकता था, जब उसके भी एक तिहाई हथियार बेकार हो जाते। अमेरिका के 192 शहरों को वह अपने आधे बमों से ही 145 बार में मार सकता था।

यदि यही शक्ति छोटे-छोटे कुटीर उद्योग-धन्धे खोलने में प्रयुक्त कर दी गई होती तो आज संसार में एक भी व्यक्ति आजीविका की खोज में न भटक रहा होता। इतनी धनराशि केवल दूध के विकास पर लगा दी गई होती तो संसार का 5 वर्ष से कम आयु का एक भी बच्चा ऐसा न शेष रहता, जिसे दोनों वक्त भर पेट शुद्ध दूध न मिल जाता। यदि यही शक्ति साक्षरता के विकास में लगा दी गई होती तो संसार का प्रत्येक व्यक्ति आज शिक्षित होता, जब कि संसार के दो तिहाई लोग अभी भी निरक्षर हैं और सुधरे हुये जीवन में बाधायें सिद्ध हो रहे हैं, किसी भी रचनात्मक कार्यक्रम में इस मारक शक्ति को स्थानान्तरित कर दिया गया होता तो आज संसार उम्दा परिस्थितियों में सुख और शान्ति, हास और उल्लासपूर्वक जी रहा होता।


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