स्रष्टा का ज्येष्ठ पुत्र (Kahani)

May 1991

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एक बूढ़ा लकड़हारा दिन भर काम करते-करते थक गया था। उससे गट्ठा भी ढोया नहीं जा रहा था। निराश परेशान बैठा था, और कह रहा था कि इससे तो मौत आ जाती तो अच्छा होता।

संयोग वश मौत उसी जंगल में घूम रही थी उसने बात सुनी और पुकारने वाले लकड़हारे के पास जा पहुँची।

मौत को सामने खड़ी देखकर लकड़हारा बुरी तरह घबराया। वह तो ऐसे कुछ कहकर मन हलका कर रहा था। इसका इरादा सचमुच मरने का नहीं था। कुछ देर चुप रहकर लकड़हारे ने कहा। कृपया मेरा गट्ठा उठवाकर सिर पर रखवा दे आपको इतनी भर सहायता करने के लिए कष्ट दिया और कुछ इरादा मेरा नहीं था।

मौत ने गट्ठा उठाकर उनके सिर पर रख दिया और हँसती मुस्कुराती वापस चली गई।

इस प्रकार जब यह प्रमाणित हो चुका कि विचारों का मनुष्य पर बड़ा असर पड़ता है, और हमें प्रभावित किये बिना नहीं रहता, तो मनोवैज्ञानिक इस दिशा में शोधरत हुए कि ऐसे संकल्पों द्वारा मृत्यु को कुछ समय तक टाला जा सकता है क्या? अनुसंधान के दौरान उत्तर सर्वथा सकारात्मक प्राप्त हुआ। शोधकर्मी दल का इस संबंध में कहना है कि व्यक्ति यदि किसी कार्य के प्रति अत्यन्त गंभीर, उत्साही और उसे पूरा कर डालने के प्रति प्रबल आकाँक्षा रखता है, तो आसन्न मृत्यु को भी तब तक टाला जा सकता है, जब तक कार्य पूरा न हो जाय, पर दूसरी ओर वे यह भी कहते हैं कि यह सब आडम्बर स्तर का नहीं होना चाहिए, वरन् मरने वाले की यही तीव्र अभीप्सा होनी चाहिए, तभी वह क्रियान्वित हो सकेगी, अन्यथा उक्त भाव अपना परिणाम प्रस्तुत किये बिना ही रह जायेगा।

अध्ययन के दौरान इस बात की पुष्टि भी हो गई। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी (सैन डियेगी) के समाज शास्त्रियों ने सन् 1960 से लेकर 1987 तक प्रत्येक वर्ष वहाँ के चीनी अमेरिकनों पर इस आशय के अध्ययन और प्रति वर्ष उनका मृत्यु-दर का विशेष अवलोकन किया। उन्होंने पाया कि चीनियों के एक प्रमुख पर्व के ठीक बाद बूढ़ी चीनी महिलाओं की मृत्यु आश्चर्यजनक ढंग से बहुत बड़े पैमाने पर होती है। उल्लेखनीय है कि चीनी समुदाय का यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें परिवार के सभी सदस्य उसे साथ-साथ मनाने के लिए उक्त अवसर पर अवश्य इकट्ठे होते हैं। इस पर्व में परिवार की बूढ़ी महिलाओं पर भोजन एवं व्यंजन-निर्माण का विशेष दायित्व होता है। वे इससे भावनात्मक स्तर पर इतनी गहराई से जुड़ी होती है कि महीनों पूर्व इसकी तैयारियाँ शुरू कर देती हैं और पर्व के दिन अत्यन्त खुश नजर आती हैं, पर इसके उपरान्त एक सप्ताह के अन्दर-अन्दर ऐसी वृद्ध महिलाओं का बड़े स्तर पर शरीरान्त होते देखा जाता है। इस संबंध में अध्ययन दल का कहना है कि इस दौरान परिवार के सभी सदस्यों के देखने की इच्छा और सौंपा गया विशेष दायित्व वृद्धाओं के अवचेतन मन में इतना गहरा उतर जाता है कि वह एक तीव्र स्व संकेत का काम करता है, और यहाँ तक उनके प्राणों को भी शरीर त्यागने से रोके रखता है। पर्व के उपरान्त जब उनकी यह इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं, एवं और कोई आकाँक्षा शेष रह नहीं जाती तो फिर मृत्यु अपनी गोद में सुला लेती है। ध्यातव्य है कि उत्सव के पश्चात् प्रति वर्ष बड़े पैमाने पर मृत्यु सिर्फ वृद्ध चीनी महिलाओं की ही होती देखी जाती है। वृद्ध चीनी पुरुष अथवा गैर चीनी महिलाओं के साथ ऐसी अप्रत्याशित बात अध्ययन के दौरान नहीं देखी गई अथवा देखी गई, तो छिट-पुट सामान्य घटना के रूप में। इस बारे में अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि चूँकि चीनी पुरुषों एवं गैर चीनी महिलाओं का उत्सव से भावनात्मक संबंध नहीं होता, इसलिए उनकी मृत्यु भी उसके लिए रुकी नहीं रहती और पूरे वर्ष स्वाभाविक ढंग से समय-समय पर होती रहती है।

इस प्रकार इस अध्ययन से उसे पहेली का भी उत्तर मिल गया कि क्यों किसी संबंधी के लिए मरणासन्न व्यक्ति के प्राण अटके पड़े रहते हैं। इससे यह भी सुनिश्चित हो गया कि जीवन में यदि कोई महत्वपूर्ण व आवश्यक कार्य शेष रह गया हो, और कर्ता का उसके प्रति सूक्ष्म स्तर का गहन तादात्म्य हो तो उसे पूरा होने तक मृत्यु को टाला भी जा सकता है।

कई अवसरों पर ऐसे समय में देवी सहयोग भी प्राप्त होता है। इसके प्रमाण भी उपलब्ध है। मैडम ब्लेवटस्की जब अपना महत्वपूर्ण ग्रन्थ “सीक्रेट डॉक्टीन्स” लिख रही थी तो वह जीवन के अन्तिम पड़ाव पर थी। दुर्भाग्यवश अभी वह आधा ही ग्रंथ लिख पायी थी कि मृत्यु-शैया पर आ पड़ी। साथ रहने वाली देवात्माओं ने संदेश दिया कि मृत्यु सुनिश्चित है, किन्तु साथ में आश्वासन यह भी था कि घबराये नहीं, आप सत्साहित्य सृजन जैसे पुण्य कार्य में संलग्न है, अतः हम आपका पूरा सहयोग करेंगे। ऐसा ही हुआ। ग्रन्थ जब तक पूरा नहीं हो गया तब तक वह जीवित रही और पूरा होते ही दिवंगत हो गई। इससे यह भी सिद्ध होता है कि कार्य यदि लोकमंगल के निमित्त किया जा रहा हो और दुर्भाग्यवश अधूरा रह जाय एवं लेखक का असामयिक बुलावा आ जाय तो देवसत्ताएं उस बुलावे को भी कार्य के पूरा होने तक टालने में समर्थ सहयोग करती हैं।

इच्छा मृत्यु भीष्म को मिली थी। हर किसी को यह वरदान अपनी इच्छाशक्ति के आधार पर मिल सकता है। यदि हम मरने का चिन्तन करे तो मौत जल्दी आ धमकेगी। यदि सौ वर्ष तक कर्म करते हुए जीने की इच्छा रखे तो मौत दूर ही रहेगी। मनुष्य सदैव ऊँचा सोचे व श्रेष्ठ चिन्तन करे तो वह जीवन मृत्यु का नियंत्रण भी अपने हाथ में ले सकता है। आखिर है भी तो वह स्रष्टा का ज्येष्ठ पुत्र।


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