मानवी उत्कर्ष में राग-रागनियों की प्रभावी भूमिका

May 1991

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मनुष्य की भावनाओं को जगाकर उन्हें ऊर्ध्वगामी बनाने और परमात्मा की अनुभूति कराने, प्रेम, करुणा, दया, वात्सल्य, साहस आदि गुणों को विकसित कर मनुष्य जीवन को दिव्यता प्रदान करने की अपूर्व शक्ति संगीत में है। संगीत के द्वारा कई प्रकार के शारीरिक, मानसिक रोगों का उपचार किया जा सकता है। दुर्बलता को सशक्तता में बदला जा सकता है। उत्तेजना उत्पन्न करने और भाव-संवेदना जगाने के अतिरिक्त इसके सहारे मनुष्य की आदतों को बदला और स्वभाव में आमूल चूल परिवर्तन किया जा सकता है। इसे उत्कर्ष का माध्यम बनाया जा सकता है।

चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार संगीत के स्वर ताल, लय, रिद्म के अपने विशिष्ट प्रभाव होते हैं। स्वर शास्त्र एवं नादयोग की अपनी स्वतंत्र विद्या है। विभिन्न राग-रागनियों के अलाप से विभिन्न प्रकार के चमत्कारों का वर्णन हमारे शास्त्रों और धर्मग्रन्थों में मिलता है। सामवेद का तो विषय ही संगीत है। उसमें संगीत के सूक्ष्मतम विज्ञान का विवेचन हुआ है जिसका कुछ अंश प्राप्त कर बाद में तत्वदर्शियों ने अनेक चमत्कार पैदा किये। कहा जाता है कि ‘दीपक राग‘ गाने से बुझे हुए दीपक जल उठते हैं। ‘मालकोश’ गाने से पत्थर भी पिघल जाते हैं। तानसेन ने टोड़ी राग गाकर मृगों को संगीत मुग्ध कर अपने पास बुला लिया था। उसके राग की विस्तीर्ण ध्वनियाँ जहाँ तक पहुँची वहाँ तक सारे वन्य मृग मृत्यु का भय भुलाकर राज दरबार में आ गये थे। सुविख्यात संगीतकार बैजू ने मृगरंजिनी टोड़ी गाकर केवल हार पहने हुए एक ही मृग को जंगल से बुलाकर अपने पास बिठा लिया था। भावनापूर्ण तन्मयता से युक्त मेघ- राग का गायन चिलचिलाती धूप में भी तत्क्षण वृष्टि कराने में समर्थ माना जाता था।

आधुनिक अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों ने भी मानव जीवन के लिए संगीत को अत्यन्त प्रभावकारी पाया है। उनके अनुसार शरीरगत पाँच प्राणों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है जिससे शरीर में भरी विषाक्तता के बाहर निकलने की क्रिया तीव्र होता है और प्राण ऊर्जा बढ़ती है। लन्दन के चिकित्सा विशेषज्ञों ने “हॉस्पिटल मैनेजमेंट “ नामक पत्रिका में कहा है कि व्यक्ति संगीत से बड़ी जल्दी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं। इससे मानसिक तनाव दूर होता है, शान्ति मिलती है और स्वास्थ्य स्थिर रहता है। डॉ. वाटर एच. वालेस के कथनानुसार- पीलिया, यकृत रोग और अपच में भी संगीत का सुनिश्चित विधेयात्मक प्रभाव पड़ता है।

चिकित्सकों ने अपने अनुसंधान निष्कर्षों में बताया है कि कुछ रागनियां ऐसी हैं जो शरीर के भीतर इतना कंपन उत्पन्न करती हैं जिससे रक्तप्रवाह की गति तीव्र हो जाती है। इससे शरीर के भीतर जो विषैले पदार्थ चिपके हुए होते हैं, वे उत्तेजित होकर निसर्ग मार्ग से बाहर निकल जाते हैं और रोगी को शीघ्र आराम मिलता है। इन विशेषज्ञों के अनुसार विभिन्न राग-रागनियों एवं वाद्ययंत्रों के माध्यम से मनुष्य की जटिल से जटिल मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान भी संभव है। मानसिक असंतुलन, क्रोध, आवेश, जैसे मनोरोगों का शमन संगीत की मधुर स्वर लहरियों के द्वारा तो होता ही है- साथ ही माइग्रेन, सिरदर्द, उच्च रक्त चाप, अनिद्रा आदि रोगों से भी संगीत चिकित्सा द्वारा सहज ही छुटकारा पाया जा सकता है। चिकित्सकों का मत है कि शरीर में जो तनाव या विकृति पैदा होती है उसका मूलाधार मस्तिष्क के ज्ञान तन्तु है। संगीत से कानों में लगी नैसर्गिक झिल्ली प्रकम्पित होती है, जिससे सम्बद्ध तंतुओं के सजग होने से सम्पूर्ण शरीर में नवीन प्राण चेतना दौड़ जाती है और शक्ति उत्पन्न कर आरोग्य लाभ प्रदान करती है। संगीत से न केवल चित्त को विश्रान्ति मिलती है, वरन् अनाहत चक्र के जागरण द्वारा आत्मिक शक्तियों, अतीन्द्रिय क्षमताओं की जाग्रति भी होती है।

विभिन्न राग-रागनियों तथा वाद्य यंत्रों के आधार पर उत्पन्न हुई ध्वनियाँ अद्भुत प्रभाव छोड़ती हैं। संगीत प्रवाह के माध्यम से न केवल शारीरिक-मानसिक रोगों का उपचार संभव है, वरन् भावना क्षेत्र में भी उपयोगी परिवर्तन किये जा सकते हैं। यह एक अतिशय प्रभावशाली शक्ति है, पर उसे सामान्यतया मनोरंजन के लिए ही प्रयुक्त किया जाता रहा है। यदि इस रहस्य को समझा जा सके कि किस-किस तरह के गानों और रागनियों का मनुष्य के मन-मस्तिष्क पर कैसा-कैसा प्रभाव पड़ता है, तो उससे मानवी प्रगति में चार चाँद लग सकते हैं।


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