एक बगीचे में गाय घुस गई उसने कुछ पौधे चर लिए। इस पर मालिक को क्रोध आया, उसने लाठी मारी और गाय मर गई।
पंचायत जमा हुई। बगीचे के मालिक को गौ हत्या का दोषी बना दिया और ब्रह्म हत्या का पाप लगा दिया। उसे बड़ा प्रायश्चित करने का दण्ड दिया।
मालिक चतुर था उसने कहा सभी इन्द्रियों का स्वामी इन्द्र है। पापों का अधिष्ठाता भी वही है। हाथों ने गाय मारी तो उसका पाप इन्द्र को लगेगा।
ब्रह्म हत्या इन्द्र के पास पहुँचा उसने सारा विवरण बताया और इन्द्र को पाप का दंड भुगतने के लिए कहा।
इन्द्र ने धूर्तता समझी और साधारण व्यक्ति का भेष बना कर ब्रह्महत्या के साथ घटना स्थल पर चल पड़े।
जाते ही उसने बगीचे के मालिक से भेंट की और उनकी सद्बुद्धि और मेहनत की प्रशंसा की। प्रशंसा सुनकर वे बड़े प्रसन्न थे।
इन्द्र वेषधारी ने फिर से पूछा तो उस बगीचे का लाभ और श्रम तो आप को ही मिलता होगा? स्वामी ने उत्साह पूर्वक उसे स्वीकारा।
इन्द्र प्रकट हो गये उनने कहा जब हाथों की क्रिया का लाभ और यश आपको मिलता है तो गाय मारने का पाप भी आपको ही क्यों न लगेगा?
स्वामी निरुत्तर था और उसी को ब्रह्महत्या ने पकड़ा और प्रायश्चित के लिए बाधित किया।