ब्रह्मा जी सृष्टि का संविधान लिख रहे थे। उनने सभी प्राणियों का एक एक प्रतिनिधि बुलाया समिति का कार्य ठीक प्रकार चल पड़ा, जो निश्चय होता वह पीपल के पत्ते पर लिख दिया जाता। कागज का अविष्कार उस समय तक हुआ न था।
रात्रि होने पर सभी सभासद अपने-अपने निवास स्थान पर लौट जाते। एक गधा ही था जो छिपकर किसी कोने में बैठ जाता ताकि आराम से पड़ा रहे। व्यर्थ इधर उधर न घूमना पड़ा।
रात्रि को भूख लगी। गधे ने वे सभी पीपल के पत्ते खा लिए जिन पर बहुत दिनों से संविधान लिखा जाता था।
प्रातः जब गोष्ठी आरंभ हुई तो पत्ते तलाशे गये। मालूम हुआ कि उन्हें गधे ने खा डाला।
देवताओं को उसकी मूर्खता पर बड़ा क्रोध आया। उठा कर स्वर्ग से धरती पर पटक दिया। उसे थोड़ी चोट लगी पर कुछ ही दिन में चंगा हो गया।
गधे ने सब प्राणियों से कहना शुरू कर दिया कि समस्त धर्म शास्त्र तो उसके पेट में भरे हैं। सुनने वाले हँसकर रह जाते।
उस गधे की औलाद अभी भी बौद्धिक अहंकार से ग्रस्त लोगों के रूप में जहाँ तहाँ देखी जाती है। उनका दावा भी सही होता है और ज्ञान का भण्डार हमारे मस्तिष्क में भरा है। पर वे चरित्र की दृष्टि से शून्य होते हैं गधे की तरह।